फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
आप है जहाँ ख़ुशियाँ है वहाँ


Oct 2, 2021
आप है जहाँ ख़ुशियाँ है वहाँ!!!
‘ख़ुशी’ एक ऐसा भाव है दोस्तों, जिसको पाना अकसर कठिन मान लिया जाता है और इसके पीछे मेरी नज़र में सबसे बड़ा कारण इस शब्द को सही ढंग से ना समझ पाना है। इसी वजह से हम इसे तमाम भौतिक चीजों अथवा लोगों या किसी विशेष उपलब्धि से जोड़ कर देखते हैं जबकि यह तो हमारे अंदर ही मौजूद रहती है। इसे मैं आपको एक सच्ची घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ -
एक सज्जन ने अपनी शिक्षा पूर्ण कर, पारिवारिक व्यवसाय को सम्भालना शुरू किया। व्यवस्थित व्यवसाय को देख परिवार के वरिष्ठ सदस्यों ने उनकी शादी एक सुयोग्य लड़की देखकर दी। शादी के बाद धीरे-धीरे ज़िंदगी ने गति पकड़ना शुरू की, ओर परिवार में दो बच्चों का जन्म हुआ।
जैसे ही यह लगने लगा कि अब सब सेट है और ईश्वर के आशीर्वाद से जैसा सोचा था जीवन उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है, तभी वक्त ने पलटी ली और कुछ ही वर्षों में उनकी पत्नी और बेटा एक गंभीर बीमारी का शिकार हो इस दुनिया से चले गये। अब परिवार में शेष वे और उनकी बेटी ही रह गए थे।
बेटी को देख इन सज्जन ने फिर से अपने जीवन को पटरी पर लाने का प्रयास करा, लेकिन ईश्वर ने तो उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। उनकी बिटिया को भी बहुत कम उम्र में बोन कैन्सर डिटेक्ट हुआ। बिटिया तवलीन बड़ी होनहार थी, वह अपने बीमारी के दिनों में हमारे देश के उस वक्त के राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम को पत्र लिखा करती थी। डॉक्टर कलाम भी उसके पत्रों का बराबर जवाब दिया करते थे। अच्छे इलाज के बाद भी वर्ष 2008 में तवलीन बिटिया भी यह दुनिया छोड़, अपनी माँ और भाई के पास चली गई।
परिवार के तीनों सदस्यों के जाने की वजह से यह सज्जन पूरी तरह टूट गये। लेकिन वर्ष 2010 में उन्हें एक बार फिर हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम से मिलने का मौक़ा मिला। इस मुलाक़ात में उन्होंने तवलीन के इस दुनिया से जाने का समाचार उन्हें दिया और पूछा, ‘अब मेरे जीवन का मक़सद क्या?’ तो डॉक्टर कलाम बोले, ‘तुम उसकी याद में ऐसी संस्था बनाओ, जो दुनिया में ख़ुशियाँ फैलाए।’
डॉक्टर कलाम का उत्तर सुन वे हैरान थे और बोले, ‘सर, मेरे पास तो सिर्फ़ दुःख ही दुःख हैं, मैं कैसे लोगों तक ख़ुशियाँ पहुँचाऊँ?’ डॉक्टर कलाम ने उन्हें कुछ लोगों से मिलने का कहा और बोले, ‘मुझे पता है तुम यह कार्य कर सकते हो।’
दोस्तों मुझे ऐसा लगता है कि डॉक्टर कलाम कहना चाह रहे होंगे कि ‘तुमने दुःख की अधिकतम सीमा देखी है इसलिए तुम ख़ुशी की अहमियत और क़ीमत दोनों जानते हो, इसलिए इसे तुम ही लोगों तक फैला सकते हो।’
ख़ैर, डॉक्टर कलाम के कहने के पीछे कुछ भी कारण रहा हो लेकिन उनके इस विचार ने इन सज्जन के जीवन को एक नई दिशा दी और आने वाले कुछ ही वर्षों में, स्वयं को सबसे दुखी और परेशान मानने वाले यह सज्जन “ मैन ऑफ़ हैपीनेस “ के नाम से पहचाने जाने लगे।
जी हाँ दोस्तों आप सही पहचान रहे हैं, मैं बात कर रहा हूँ तवलीन फ़ाउंडेशन के संस्थापक श्री गुर्मीत एस नारंग जी की। दोस्तों सोचकर देखिए, क्या उनके जीवन में कम चुनौतियाँ थी? क्या उनका जीवन पथ फूलों से सजा हुआ था? बिलकुल नहीं!, फिर उन्हें ख़ुशियाँ कहाँ से मिली? किसी बाहरी घटना से? नहीं!, किसी वस्तु के मिल जाने से? नहीं!, तो फिर शायद किसी इंसान की वजह से? बिलकुल भी नहीं दोस्तों!
उन्हें ख़ुशियाँ मिली जीवन में तमाम दुखों और परेशानियों के बाद भी, की गई खुद के अंदर की यात्रा की वजह से। जी हाँ दोस्तों, जब आप तन से ऊपर उठकर मन के स्तर पर जीवन जीना शुरू करते हैं तब आप असली जीवन कहाँ से शुरू होता है और उसका असली उद्देश्य क्या है? यह समझ पाते हैं और तब यात्रा शुरू होती है ‘आत्म तत्व ज्ञान’ की, जो अंततः आपको खुश रहना सिखा देता है।
वैसे दोस्तों बिलकुल सादे शब्दों में कहूँ तो खुश रहने का मतलब यह नहीं है कि सब कुछ ठीक है। इसका मतलब यह है कि आपने अपने दुखों से ऊपर उठकर जीना सीख लिया है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर