फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
देखेंगे जिसे, नज़र आएगा वही


Nov 22, 2021
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
देखेंगे जिसे, नज़र आएगा वही !!!
‘इंसानियत और ईमानदारी नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं बची है इस दुनिया में। जिसको देखो अपना मुनाफ़ा बनाने में लगा है।’ इंदौर-उज्जैन रोड पर अरबिंदो हॉस्पिटल के पास वाले टोल पर डबल टोल अर्थात् पहले नगद और फिर फ़ास्टटेग़ से पैसे कटने पर मित्र ने बड़े ग़ुस्से के साथ यह शब्द कहे। मैंने तुरंत उसे टोकते हुए कुछ मिनटों पहले घटी अच्छी घटना की याद दिलायी जिसमें एक छोटे बच्चे द्वारा एक भूखे और जरूरतमंद व्यक्ति को अपने टिफ़िन में से खाने के लिए खाना दिया था।
मेरे इतना कहते ही मित्र लगभग चिढ़ते हुए बोले, ‘यार तुझे हमेशा अच्छा ही अच्छा नज़र आता है। वह एक छोटा सा बच्चा था, जब दुनियादारी सीखेगा तब वह भी ऐसा ही हो जाएगा।’ मित्र के ग़ुस्से को देखते हुए मैंने कुछ देर चुप रहना ही मुनासिब समझा। लेकिन मैं मन ही मन सोच रहा था कि हमने अपने अंदर कितनी नकारात्मकता इकट्ठा कर ली है कि हमें अच्छाई नज़र ही नहीं आती या कहीं दिख भी जाए तो हम उसके पीछे भी कोई ना कोई कारण खोज ही लेते हैं। विचारों की इसी ऊहापोह में मुझे ‘ओ हेनरी’ की लिखी कहानी ‘ईश्वर की तस्वीर’ याद आ गई, जो इस प्रकार थी-
एक प्रसिद्ध और वरिष्ठ चित्रकार के मन में अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ कृति बनाने का विचार आया। उसने सोचा इस सृष्टि में ईश्वर ही सर्वश्रेष्ठ हैं तो क्यूँ ना उन्हीं की तस्वीर बनाई जाए? ईश्वर की तस्वीर बनाने का निर्णय लेते ही उसके समक्ष एक नई समस्या थी, ‘ईश्वर की यह तस्वीर कैसी हो?’ सोचते-सोचते जाने कैसे उसके मन में विचार आया कि बालक रूपी ईश्वर को एक शैतान हंटर से मार रहा है। काफ़ी कोशिश करने के बाद भी वह चित्रकार अपने विचार को काग़ज़ पर उकेर नहीं पा रहा था। उसकी आँखों में ईश्वर की जो तस्वीर बसी थी उसने वैसे बालक को खोजने का निर्णय लिया।
एक दिन शाम के समय बगीचे में टहलते-टहलते उसकी नज़र सामने अनाथालय में खेल रहे एक बच्चे पर पड़ी। उस भोले से बच्चे को देखते ही उसे लगा इस बालक की छवि तो बिलकुल ईश्वर की उस छवि से मिलती है जो मेरी आँखों में बसी है। उसने तुरंत अनाथालय के शिक्षक से विनती करी और उस बालक को अपने साथ स्टुडियो ले आया और उसका चित्र बनाने लगा। ईश्वर रूपी बालक का चित्र पूर्ण होने के पश्चात उसने बालक को वापस अनाथालय छोड़ दिया।
अब चित्रकार के सामने अगली समस्या ईश्वर को हंटर मार रहे शैतान की तस्वीर बनाने की थी। वह फिर से एक क्रूर चेहरे की तलाश में निकल पड़ा। मगर उसे कोई ऐसा चेहरा ही नहीं मिला जिसे वह अपनी तस्वीर के लिए काम में ले सके। इसी ऊहापोह में लगभग 14-15 वर्ष निकल गए। एक दिन जेल के सामने से निकलते हुए उसका ध्यान जेल से बाहर आते क़ैदी पर गया। सांवले रंग के इस क़ैदी की दाड़ी और बाल बढ़े हुए थे। चेहरे से ही वह बहुत ख़ूँख़ार लग रहा था। चित्रकार उसे देखते ही ख़ुशी से उछल पड़ा, उसे लगा जिस शैतान की उसे इतने सालों से तलाश थी वह यही है।
वह तुरंत उस क़ैदी के पास गया और उसे एक बोतल शराब के बदले चित्र बनाने तक रुकने के लिए राज़ी कर लिया और बड़ी लगन के साथ ‘ईश्वर को हंटर से मारते हुए शैतान’ के अपने चित्र को उसने पूरा कर लिया। अचानक ही वह क़ैदी उस चित्रकार से बोला, ‘महोदय क्या मैं आपके द्वारा बनाया गया चित्र देख सकता हूँ?’ चित्रकार ने तुरंत ही अपने चित्र का मुँह उसकी ओर कर दिया। चित्र देखते ही उस व्यक्ति के माथे पर पसीने की बूँद उभर आई। उसे परेशान देख चित्रकार ने जब इसका कारण पूछा तो वह लगभग हकलाते हुए बोला, ‘क्षमा कीजिएगा, आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं ही आपका ईश्वर हूँ। आज से लगभग 14 वर्ष पूर्व आप मुझे अनाथालय से लाए थे और मुझे देखकर ही आपने ईश्वर का चित्र बनाया था।’ क़ैदी के शब्द सुनते ही कलाकार हतप्रभ था।
दोस्तों चित्रकार को जिस तरह एक ही इंसान के अंदर ईश्वर और शैतान दोनों मिल गए ठीक उसी तरह हम सभी के अंदर अच्छाई और बुराई, सकारात्मकता और नकारात्मकता, पुण्य और पाप, ईश्वर और शैतान सब बसे हैं। बस यह हमारे ऊपर निर्भर रहता है कि हम उन दोनों में से किसको अपने विचारों और कर्म से बलवान बनाते हैं और हाँ साथियों इन सभी विचारों में हम जिस विचार को बलवान बनाते हैं वही हमें पूरी दुनिया में, सभी लोगों में नज़र आता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर