दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
अच्छी नींद के लिए किसी के दिल की बात सुनें


June 8, 2021
अच्छी नींद के लिए किसी के दिल की बात सुनें
पिछले हफ्ते जब मैंने घंटी बजने पर दरवाजा खोला तो करीब 40 वर्ष की उम्र वाले डिलीवरी बॉय ने हाथ बढ़ाकर पार्सल दिया और चेहरा जरा दूर रखा, इसलिए मैं उसे देख नहीं पाया। पार्सल देने में प्रोटोकॉल के पालन से ज्यादा परवाह उसे दरवाजे से भागने की थी। हालांकि मुझे उससे धन्यवाद या अन्य शिष्टाचार की उम्मीद नहीं थी, लेकिन जब उसने नजरें नहीं मिलाईं तो मुझे चिंता और शंका हुई। मैंने पार्सल लिया और इससे पहले कि चश्मा पहनकर देख पाता कि किसने भेजा है, डिलीवरी बॉय गायब हो गया। चूंकि पार्सल दोस्त ने भेजा था, मैं उसे खोलने में व्यस्त हो गया। लगभग 20 मिनट बाद जब मैं सोसायटी बिल्डिंग के नीचे गया, तो उसी लड़के को ग्राउंड फ्लोर की लॉबी से जल्दबाजी में जाते देखा। पूछने पर पता चला कि वह अपना मोबाइल चार्ज कर रहा था क्योंकि बैटरी खत्म हो गई थी।
इस रविवार की शाम जब मैं मोबाइल पर खबर पढ़ रहा था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है, ‘अगर पिज्जा-बर्गर, स्मार्टफोन और कपड़ों की होम डिलिवरी हो सकती है तो राशन की क्यों नहीं’, तभी उसी डिलीवरी बॉय ने घंटी बजाई। संयोग से उसने वही टी-शर्ट पहनी थी, इसलिए मुझे उसका पिछला व्यवहार याद आ गया। चूंकि शाम थी, मैंने संवाद शुरू कर उसका चेहरा देखने की कोशिश की, ‘कुछ खाओगे?’ उसने हामी भरी। जब मैंने कहा कि पैक करने में कुछ मिनट लगेंगे, तो वह बोला, ‘सर, तब तक क्या मैं बिल्डिंग के सिक्योरिटी केबिन में फोन चार्ज कर लूं?’ मैंने उसे डांटा कि वे इतनी खराब योजना क्यों बनाते हैं कि बैटरी अक्सर खत्म हो जाती है। उसने कहा, ‘सर लगातार फोन आते रहने और मैप पर ग्राहकों की लोकेशन देखते रहने के कारण बैटरी खत्म हो जाती है।’ जब मैंने कहा कि अगर ठीक लगे तो मैं उसे बैटरी (पावर) बैंक दे सकता हूं, जो मैं इस्तेमाल नहीं करता, तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए। जब तक मैंने पावर बैंक दराज में खोजा, वह धैर्य से इंतजार करता रहा।
उसके साथ छोटे से संवाद ने मुझे उसके जैसों की जिंदगी और अनकही कहानियों के बारे में बताया। वे ही हर लॉकडाउन में पूरे शहर में घूमे हैं और इससे जो कमा पाते हैं वह उनके परिवार के पालन और सिर पर छत बनाए रखने के लिए काफी नहीं होता। देर से आने वाले कम वेतन के बावजूद वे बिना शिकायत काम पर जाते हैं। वायरस के खतरे और तपती धूप के बीच रोज ज्यादा से ज्यादा घर जाने की कोशिश करते हैं। वे अच्छी टिप के लिए बुजुर्गों के लिए सब्जियां और दवाएं भी खरीदते हैं, जिससे उस दिन की जरूरतें पूरी होती हैं। शायद इसीलिए वे ज्यादातर शाम को 5 बजे के बाद लंच करते हैं और कई सड़क पर मुफ्त बंटने वाले खाने पर निर्भर होते हैं। लेकिन उन्हें पावर बैंक की भी जरूरत है, जो उन्हें रोजगार के अवसर देता है। उनमें से कुछ ने स्थानीय नगर पालिकाओं के लिए बतौर ‘सर्विलांस बॉय’ भी काम किया और 12,000 रुपए के लिए तंग इलाकों में जाकर नागरिकों का बुखार जांचा, जिसमें रोज करीब 200 घरों जाना होता है। इस कारण कुछ संक्रमित भी हुए और पूरा परिवार प्रभावित हुआ।
फंडा यह है कि अगली बार जब कोई किराना, कपड़े या खाना देने आए तो एक पल रुककर उन्हें देखें और उन्हें दिल की बात कहने दें। यकीन मानिए, आपको रात में बेहतर नींद आएगी।

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