दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
अच्छे को बेहतर बनाने का जश्न मनाएं


Oct 17, 2021
अच्छे को बेहतर बनाने का जश्न मनाएं
कल हमने रावण दहन किया। सदियों पुरानी यह प्रथा सिर्फ यह दिखाने के लिए नहीं है बुराई पर अच्छाई की जीत हुई, बल्कि यह बताने के लिए भी है सभी को व्यक्तिगत, सामाजिक और वैश्विक स्तर पर सही काम करने का, सही रास्ते पर चलकर सही संतुलन पाने का अधिकार है। इस तरह सिर्फ अच्छाई ही बुराई को नहीं खत्म करती। जब आप इस तरह सोचते हैं, तब वास्तव में दशहरा ऐसा त्योहार बन जाता है, जो सिर्फ कुकर्मों को ही सामने नहीं लाता, बल्कि प्रगतिशील और सकारात्मक बदलाव के कर्मों को आगे लाता है। इसका मतलब है अच्छाई उस बेहतर को सामने लाती है, जिसे हमें अपने अंदर पैदा करने की जरूरत है।
यही कारण है कि मुझे यह जानकर खुशी हुई कि कैसे हैदराबाद के पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने 130 किमी यात्रा कर एक गाय को बचाया, जो एक 60 फीट गहरे, बेकार पड़े कुंए में फंस गई थी। ‘एनिमल वॉरियर्स कंजर्वेशन सोसायटी’ के प्रदीप नायर को एक स्थानीय किसान नेनावथ बालू ने रात 10.30 बजे फोन कर हादसे के बारे में बताया। नायर और उनकी आठ सदस्यीय टीम तुरंत बाइक पर उपकरण लादकर निकल पड़ी, जबकि बालू से ट्रैक्टर या जेसीबी की व्यवस्था करने कहा, ताकि गाय को रस्सी से खींचकर निकाल सकें।
जब वे आधी रात के बाद वहां पहुंचे, उन्हें अहसास हुआ कि वे सुबह तक इंतजार नहीं कर सकते क्योंकि गाय पानी में आधी डूबी हुई थी और कांप रही थी। एक वॉलंटियर संतोषी ने टीम को बताया कि लंबे समय तक ठंडे पानी में रहने पर जानवर को हायपोथर्मिया हो सकता है। इसलिए उन्होंने तुरंत कुछ करने का फैसला लिया। लेकिन चुनौतियां बहुत थीं। कुएं की गहराई उम्मीद से ज्यादा थी, जो गाय को रबर की चटाई में बांधने के लिए नाकाफी थी। रोशनी अपर्याप्त थी और ट्रैक्टर कीचड़ में फंस गया था। परिस्थिति और बिगड़ गई जब गाय कुएं की मुंडेर पर ऊबड़-खाबड़ पत्थरों में आकर अटक गई। हालांकि वॉलंटियर कमजोर गाय को बचाने में सफल रहे।
लेकिन वहां मौजूद लोगों की आंखों में आंसू आ गए, जब उन्होंने देखा कि अलसुबह गाय को बचाने के बाद जैसे ही उसके पैरों की मालिश की गई, गाय तुरंत उठकर पास ही मौजूद गोशाला में गई जहां उसका डेढ़ माह का बछड़ा बंधा था। गाय मां उसे आधे घंटे प्यार से चाटती रही। फिर उसने खाना खाया, जैसे कि पहले वह यह सुनिश्चित करना चाहती हो कि उसका बच्चा सुरक्षित है। इसने मेरी आंखें भी नम कर दीं, जबकि मैंने मां-बेटे के उस हृदयस्पर्थी दृश्य को सामने से नहीं देखा था। दिलचस्प यह है कि यह वही टीम है, जिसने पिछले हफ्ते 170 किमी यात्रा कर एक कुत्ते को बचाया था, जो 20 दिन से एक खुले कृषि कुएं में फंसा था। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि बचाए गए दोनों जानवर अब स्वस्थ हैं।
ऐसा ही दयाभाव पुणे के पास निगड़ी के रहवासियों से दिखाया, जिन्होंने इस गुरुवार कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के डक्ट में फंसी एक चील को बचाकर जंगल में छोड़ा। चील खाने की खोज में वहां गई थी और दो दिन भूखी-प्यासी, दीवार तथा कांच के बीच फंसी रही।
फंडा यह है कि जब आप अपने आसपास अच्छी चीजों को और बेहतर होता देखते हैं, तो इसका जश्न मनाएं। हमारे त्योहार के मौसम दरअसल अच्छे के बेहतर बनने का जश्न हैं और जश्न तब तक जारी रहेगा जब तक हम हर संभव अपना सर्वश्रेष्ठ देते रहेंगे।

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