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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

अदृश्य बारीकियों में है गुणवत्ता

अदृश्य बारीकियों में है गुणवत्ता
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Oct 21, 2021

अदृश्य बारीकियों में है गुणवत्ता


पिछले हफ्ते बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार ने घोषणा की कि वे ‘गोरखा’ फिल्म कर रहे हैं, जो भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट के महान अफसर, मेजर जनरल इयान कारदोज़ो की जिंदगी पर आधारित है। अक्षय ने पिछले शुक्रवार इसका पोस्टर जारी किया, जिसमें वे खुकरी लिए दिख रहे हैं। इसके जारी होते ही गोरखा रेजिमेंट के ही पूर्व सेना अधिकारी, मेजर मणिक एम जॉली ने पोस्टर की गलती बताते हुए अक्षय को ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कहा कि पारंपरिक खुकरी अलग है। उन्होंने ट्वीट किया ‘डियर @akshaykumar जी, बतौर पूर्व गोरखा अधिकारी मैं आपको यह फिल्म बनाने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। हालांकि, बारीकियां मायने रखती हैं। कृपया खुकरी को सही करें। इसकी धार दूसरी तरफ है। यह तलवार नहीं है। खुकरी धार की अंदरूनी तरफ से वार करती है।’ अक्षय ने पोस्टर में गलती मानते हुए मदद मांगी। उन्होंने लिखा, ‘डियर मेजर जॉली, गलती बताने के लिए धन्यवाद। हम शूटिंग के वक्त सावधानी बरतेंगे। मुझे ‘गोरखा’ बनाने पर गर्व है। इसे वास्तविकता के और करीब लाने में हर सुझाव का स्वागत होगा।’


याद कीजिए 2016 की रुस्तम फिल्म में उनकी नेवी की यूनिफॉर्म की आलोचना हुई थी। हालांकि फिल्म में 1950 के दशक की कहानी थी, लेकिन अक्षय के किरदार, नेवी अधिकारी कैडर केएम नानावटी ने कारगिल स्टार (1999) और हाल के दशकों के अन्य मेडल पहने थे। अधिकारी के सीने पर दायीं ओर नाम का टैग लगाना भी 1970 के दशक में शुरू हुआ था। मुझे बताया गया था कि वे इन गलतियों पर बहुत नाराज थे।


अक्षय को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। वे बारीकियों पर ध्यान देते हैं। वे खुद को ‘सर्वज्ञाता’ नहीं बताते हैं और कुछ समझ न आने पर सवाल पूछने से भी नहीं कतराते। एक बार वे मेरे केबिन में चर्चा के लिए बैठे थे, तभी मुझे बाहर से फोन आया। जब मैं जवाब देने गया तो मैंने देखा कि उनकी आंखें मीटिंग में इस्तेमाल होने वाले व्हाइट बोर्ड पर लिखी चीजें पढ़ रही हैं। मैं सिर्फ 40 सेकंड फोन पर व्यस्त रहा, उतने में ही उन्होंने वह पढ़ लिया जो पढ़ना चाहते थे। फिर उन्होंने पूछा, ‘‘विचारों (आइडिया) का मिलन होना चाहिए’ से आपका क्या मतलब है?’ फिर उन्होंने 30 मिनट बैठकर यह समझा कि क्यों किसी भी आइडिया को गुप्त रखना बेकार है और क्यों गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक विचार को अन्य विचारों से मिलना चाहिए। मैंने उन्हें मैट रिडली के बारे में बाताया जिन्होंने यह सिद्धांत विकसित किया कि ‘विचारों का संसर्ग होना चाहिए।’


हम दोनों इसपर सहमत हुए कि हम जो देते हैं उसकी गुणवत्ता, हमारे पास जो है उसकी गुणवत्ता पर निर्भर है। हमारे पास जो है उसकी गुणवत्ता, हम जो करते हैं उसकी गुणवत्ता पर निर्भर है और हम जो करते हैं उसकी गुणवत्ता, हम जो हैं उसकी गुणवत्ता पर निर्भर है।

यही कारण है कि अक्षय ने ‘वास्तविकता के और करीब’ लिखा। मैंने मैसेज भेजकर उनकी ‘गुणवत्ता के प्रति सजगता’ की सराहना की।


दुर्भाग्य से गुणवत्ता की मौजूदगी पर कम ध्यान जाता है, लेकिन उसकी गैर-मौजूदगी पर ध्यान जरूर जाता है। गुणवत्ता उन क्षेत्रों में बारीक उत्कृष्टता है, जिनपर शायद दूसरे ध्यान भी नहीं देते। एक फूल खुशबू के बिना भी फूल ही रहता है, फिर भी खुशबू की मौजूदगी से फर्क पड़ता है।


फंडा यह है कि गुणवत्ता वे अदृश्य बारीकियां हैं, जिनकी मौजूदगी से बड़ा अंतर आता है। गुणवत्ता के प्रति सजगता आत्म-विकसित अनुशासन है, जिससे आप खुद के लिए लोगों की उम्मीद से भी ऊंचे मानक तय करते हैं।

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