दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
अपनी जिंदगी में कौन-सी फैक्ट्री का निर्माण करना है
Sep 26, 2021
अपनी जिंदगी में कौन-सी फैक्ट्री का निर्माण करना है?
इस शुक्रवार की रात को 11 बजे मैंने नेटफ्लिक्स पर ‘कोटा फैक्ट्री सीजन 2’ के सारे एपिसोड देख डाले। शुरुआती सीन में एक मेधावी लड़का अपनी कोचिंग के स्वागत सत्र के लिए तैयार होते हुए अपनी मां से बात करते हुए दिखता है और कहता है कि पहले ही दिन उसे उसका एक दोस्त मिल गया। यह सुनकर उन्हें खुशी होती है, पर दुख भी होता है, जब वह कहता है कि ‘पढ़ाई में वह मुझसे कमजोर है।’ उसके सामने खड़े दोस्त को बुरा लगता है, उसकी मां इससे अनजान होती हैं कि वह उसी कमरे में खड़ा है। हालांकि वह बेटे को अपने दोस्त के बारे में ऐसा कहने पर डांटती हैं और कहती हैं कि ‘वह भी किसी का बेटा है और उसे किसी पर ऐसा ठप्पा लगाने का कोई हक नहीं है।’
इस बातचीत से मुझे हाल ही में वाट्सएप पर चल रही एक टीचर की कहानी याद आ गई। कोविड केयर सेंटर में भर्ती वह टीचर ज्यों ही आइसोलेशन वार्ड में जाती हैं, उनके फोन की घंटी बजती है और एक पुरुष की कड़क आवाज सुनाई देती है, ‘गुड डे मैडम, मैं दुबई से गोपालकृष्णन हूं। क्या मैं मिस सीमा कनाकामबरन से बात कर रहा हूं?’
जैसे ही वह ‘हां’ कहती हैं, बोलना जारी रहता है। वह अपना परिचय देता है कि वह 1995 की दसवीं कक्षा के बैच का छात्र है। चूंकि उन्हें कुछ याद नहीं आता, तब वह कहता है कि ‘आपको शायद सुब्बू याद होगा, वही टॉपर’। उनके चेहरे पर चमक आ जाती है। वह ‘हां’ कहती हैं और दूसरी ओर से बात जारी रहती है, ‘मैडम, मैं वही लंबा, काला-सा लड़का हूं, आपका सबसे बड़ा सिरदर्द, जो बैकबेंचर्स का लीडर हुआ करता था!’
वह शिक्षक 1995 में पीछे बैठने वालों की तस्वीर याद करने की कोशिश करती हैं, लेकिन याद नहीं आता। चूंकि बातचीत रुचिकर होती जा रही थी, उन्होंने सिरहाने एक और तकिया रखा और लेटकर आराम से पूछा ‘तुम्हें अचानक मेरी कैसे याद आ गई?’
उसने कहा, ‘1995 बैच के साथियों को पता चला कि आपको कोविड हुआ है इसलिए हमने सोचा कि आपको गेट वैल सून कहें। मेरे साथ बैच के सात छात्र कांफ्रेंस कॉल पर हैं।’ टीचर कुछ क्षणों के लिए हड़बड़ा-सी गईं, लंबे विराम के बाद पूछा, अब मुझे बताओ तुम क्या करते हो? उसने कहा, ‘मैडम, मैं दुबई में खुद का लॉजिस्टिक बिजनेस चलाता हूं और दो हजार लोग मेरे लिए काम करते हैं। जब मैं दसवीं में था, तब अनुशासन के मामले में आपका आतंक हुआ करता था। पर आपने ठीक उसी समय, पीछे बैठकर शोर करने वाले हम उद्दंड छात्रों का सच में साथ दिया और आत्मविश्वास पैदा किया। उन्हें अचानक वह शरारती काला लड़का याद आ गया। वह बोलता रहा, ‘मैडम, आज मैं जो कुछ भी हूं आपकी वजह से हूं, क्योंकि आपने मुझे सबसे ज्यादा सजा दी और वो सारी सजाएं मुझे मेरे बिजनेस में मदद कर रही हैं।’
टीचर के लिए कुछ कहना मुश्किल हो रहा था। गोपालकृष्णन अपनी कहानी बताए जा रहा था, ‘सुब्बू मेरी कंपनी का सीएफओ है। तब सुब्बू ने शिक्षक को हैलो बोला।’ और शिक्षक को धक्का-सा लगा। सुब्बू ने अपनी कॅरिअर की यात्रा के बारे में बताया कि कैसे गोपालकृष्णन के साथ दुबई आने से पहले उसने सीए करने के बाद केपीएमजी में काम किया।
कोविड आइसोलेशन वार्ड में अकेली भर्ती उन टीचर की आंखें भीगी थीं। दिल में खुशी की लहर दौड़ गई और उनके गालों से आंसू बहने लगे। उन्होंने सोचा, यह एक लड़का है जिसने सिलेबस और क्लास से बाहर के सारे सबक अपनी असल जिंदगी में लागू किए!
फंडा यह है कि कुछ बैकबेंचर्स फैक्ट्री बनाकर हजारों को काम देते हैं, जबकि कुछ छात्र खुद अच्छे अंकों की फैक्ट्री बन जाते हैं। दोनों अच्छे हैं, पर पढ़ाई में कमजोर छात्रों का अपमान करना ठीक नहीं है।