दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
अपनी हर सुबह कैसे खुशनुमा बनाएं


April 11, 2021
अपनी हर सुबह कैसे खुशनुमा बनाएं
कुछ राज्यों में सप्ताहांत लॉकडाउन है। दूसरे राज्यों में जहां लॉकडाउन नहीं है, वहां के लोगों के लिए रविवार है। इस दिन आप उन लोगों के साथ होते हैं, जिन्हें आप चाहते हैं। कोई बॉस नहीं, जो परेशान करे। कोई ग्राहक नहीं, जिससे आप मिल सकें, क्योंकि लॉकडाउन है। इसलिए आज आप अपने परिवारवालों के बीच हैं, जिन्हें आप प्यार करते हैं और जिनके लिए आप इतनी मेहनत करते हैं। इसलिए मैं मानकर चलता हूं कि शनिवार रात आप अच्छी तरह सोए होंगे और अपने परिवार के साथ पूरा रविवार बिताने के लिए खुश होंगे।
इस भूमिका के पीछे एक कारण है। कोविड का टीका लगवाने के बाद पिछले दो दिनों से मैं अपने छोटे से परिवार की देखरेख में आराम कर रहा हूं। जैसा किसी को भी हो सकता है, मेरे शरीर ने भी प्रतिक्रिया की, बुखार आया और कमजोरी का अहसास हुआ, शायद कई लोगों की तुलना में ज्यादा। इलाज के रूप में पेरासिटामोल को छोड़कर, कई सारी मानसिक देखभाल भी थी- प्यार, परवाह और करुणा भरे शब्द, इसलिए मैं बिना खलल के घंटों सोता रहा। और शनिवार सुबह जब मैं सोकर उठा तो पिछली कई सुबहों की तुलना में ज्यादा तरोताज़ा महसूस कर रहा था। जब घरवालों ने कहा ‘आज आप बेहतर दिख रहे हैं’ तो मैंने उन्हें शुक्रिया कहा लेकिन आत्मवलोकन भी शुरू कर दिया कि क्यों मैं पिछले दिनों की तुलना में ताजा महसूस कर रहा हूं। हालांकि शरीर में बहुत कमजोरी थी, फिर भी शायद खुशी थी, जिसके चलते ही मैं दो वीडियो मीटिंग्स में शामिल हो सका और स्क्रीन की दूसरी तरफ किसी को पता नहीं चला कि मुझे तेज बुखार है।
तब मुझे अहसास हुआ कि इन दो दिनों के दौरान घर पर रहकर मैं सकारात्मकता से जुड़ा रहा। मेरे दिमाग में एक भी नकारात्मक ख्याल नहीं आया और पिछले कुछ दिनों में कहीं भी कुछ भी गलत हुआ, उस पर मैंने एक मिनट के लिए भी विचार नहीं किया।
चूंकि हम ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां सही-गलत रेल पटरी की तरह साथ-साथ चलते हैं और उन्हें अलग करना मुश्किल होता है। इसी तरह घर-दफ्तर भी दो पटरी की तरह हैं, जिन्हें अलग करना बेहद कठिन है। यही कारण है कि अपनी निजी जिंदगी घर पर रखकर दफ्तर आना और 100 फीसदी काम करना मुश्किल होता है। ये अव्यावहारिक है। जो जीच आपकी निजी जिंदगी पर असर डालती है वो आपके काम पर भी असर डालती है, इसका उल्टा भी सच है। इसलिए यह इस पर निर्भर है चौबीस घंटों के दौरान हम किन चीजों से जकड़े रहते हैं।
पिछली दो रातों में मैंने ध्यान किया, इसने मुझे अपनी प्राथमिकताओं पर केंद्रित होने मेंं मदद की, यहां तक कि शुक्रवार से शुरू हुआ मेरा पसंदीदा आईपीएल मिस करवा दिया और मुझे ज्यादा व्यवस्थित किया। और यही कारण है कि मुझे ज्यादा आराम महसूस हो रहा था। इसके अलावा मेरा मोबाइल भी बंद था, देश दुनिया से मैं पूरी तरह कटा था। ये सच में मेरा तकनीक से पूरी तरह डिटॉक्सीकरण था।
मोबाइल के बिना जीना इन दिनों मुश्किल है। पर सोने के समय से दो घंटे पहले हर कोई फोन बंद कर सकता है। वैज्ञानिक तौर ये उपकण शरीर की कुदरती आंतरिक घड़ी व नींद के लिए जरूरी मेलाटोनिन के उत्पादन को रोकते हैं। स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी पीनियल ग्रंथि से स्रावित होने वाले मेलाटोनिन को रोकती है, जो हमें सोने के लिए प्रेरित करता है। सोने से पहले उपकरणों के इस्तेमाल सेे आप असल में अपनी सतर्कता बढ़ाते हैं, उस समय जब गहरे आराम में सपनों की ओर जाना चाहिए, आप दिमाग को उत्तेजित कर देते हैं।
फंडा यह है कि नकारात्मक विचारों से चिपके रहना और उनमेें लगातार उलझे रहना आपको अच्छी नींद से दूर करता है। आज रविवार है, इस तरीके को आजमाएं और फिर देखें कि सोमवार को आप कितना अच्छा महसूस करते हैं।

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