दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
अपने जुनून को पेशा बनने का मौका जरूर दें
March 25, 2021
अपने जुनून को पेशा बनने का मौका जरूर दें
किसी भी अमीर मां-बाप के बच्चों से पूछिए: अगर पैरेंट्स आपको शनेल या डिओर जैसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ और सबसे महंगे परफ्यूम देंगे तो आप क्या करेंगे? उनका जवाब जो भी हो, विद जमजूम का जवाब यकीनन अलग था।
बचपन से ही सऊदी अरब की विद जमजूम को इत्र की संरचना में रुचि थी। चूंकि उसके पिता पायलट थे इसलिए उसे आसानी से वैश्विक ब्रांड मिलते रहते थे। वह उन्हें मिलाकर अपने लिए नई खुशबू बना लेती थी। बचपन में उसे केमिस्ट्री और विभिन्न सामग्रियों को मिलाकर नई तीव्र खुशबू बनाना बहुत पसंद था।
यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए उसे नहीं समझ आ रहा था कि भविष्य में क्या करना चाहिए। मां ने सलाह दी कि उसे वह करना चाहिए, जो काम उसे ज्यादा पसंद हो। जमजूम ने उन कामों के बारे में सोचा, जो उसे करना पसंद है और उसके मन ने कहा, ‘परफ्यूम्स को मिलाना!’ अपने जुनून को हकीकत में बदलते हुए उसने जेद्दाह में लक्जरी होममेड परफ्यूम ब्रांड ‘ऑत्रे बाय विद’ की शुरुआत की। यह ब्रांड ग्राहकों को अपनी पसंद के मुताबिक खुशबुएं बनाने का मौका देता है। उसका बिजनेस वन-वुमन शो है क्योंकि वह अकेले ही उत्पादों की मिक्सिंग, बॉटलिंग और पैकेजिंग करती है। जमजूम अब उन महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए वर्कशॉप करती है, जो खुद का परफ्यूम का बिजनेस करना चाहती है। जमजूम अब अपने बिजनेस को जेद्दाह से बाहर ले जाकर,अन्य शहरों में भी परफ्यूम बेचना चाहती है।
जमजूम के इस काम से मुझे पॉइंटर्स बिजनेस फोरम (पीबीएफ) याद आया। इस समूह में एक ही स्कूल, साउथ पॉइंट स्कूल से पास हुए आंत्रप्रेन्योर शामिल हैं। अश्रुजीत नंदी ‘शिमुल पलाश कथा’ नाम की फिल्म बनाना चाहते थे, और इसके चार अभिनेता, पटकथा लेखक और असिस्टेंट कैमरामैन इसी स्कूल से थे। इन लोगों ने फिल्म के लिए 12 लाख रुपए जुटाने के लिए अश्रुजीत को स्कूल के वॉट्सएप ग्रुप में जोड़ा। ग्रुप में 250 से ज्यादा सदस्य हैं, जो बिजनेसमैन या स्वतंत्र पेशेवर हैं। इसका उद्देश्य एक-दूसरे की मदद करना है।
कहानी सुंदरबन की एक मूक-बधिर लड़की से शुरु होती है, जिसका पिता गरीबी से परेशान होकर उसे कलकत्ता की ट्रेन में छोड़ देता है, यह सोचकर कि वह उसकी कभी शादी नहीं कर पाएगा। फिल्म का हीरो गांव से गायब हुई प्रेमिका को ढूंढने शहर जाता है। यह 2014-15 की वास्तविक घटना पर आधारित कहानी है, जहां लड़की को एक एनजीओ ने बचाया था। मानव तस्करी विषय पर बनी फिल्म की खासियत यह है कि 91 मिनट लंबी फिल्म में नायक-नायिका के बीच संकेत भाषा में संवाद है। फिल्म के नायक-नायिका मूक-बधिर हैं। उनकी मदद करने वाली समाजसेवी भी संकेत भाषा में बात करती है।
वॉट्सएप ग्रुप से 17 लोगों ने फिल्म बनाने में हिस्सेदारी की। नवंबर के अंत में 11 दिन तक फिल्म की शूटिंग आईफोन पर हुई और अब इसे कई फिल्म फेस्टिवल में भेज रहे हैं। हाल ही में इसने शांतिनिकेतन में हुए फिल्म फेस्टिवल में कुछ इनाम भी जीते।
मेरी निजी सलाह है कि हमेशा अपने जुनून को पेशा बनने का एक मौका दें क्योंकि इसके सफल होने की संभावना ज्यादा होती है। अगर इससे पहले ही नौकरी शुरू कर देते हैं और पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियां बढ़ने के कारण जवानी में ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो फिर रिटायरमेंट के बाद ही दूसरा मौका मिलता है।
फंडा यह है कि जवानी में, नौकरी शुरू करने से पहले, आपके जुनून को कम से कम एक बार आपका पेशा बनने का मौका जरूर मिलना चाहिए।