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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

अवसाद से बचने के लिए अपनाएं ‘दूधवाला रवैया’

अवसाद से बचने के लिए अपनाएं ‘दूधवाला रवैया’
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Aug 27, 2021

अवसाद से बचने के लिए अपनाएं ‘दूधवाला रवैया’


पहले लोग दरवाजे की घंटी बजाकर भाग जाते थे और हम सोचते रहते थे कि कौन हो सकता है। दूसरी बार ऐसा होने पर तो बीपी बढ़ जाता था और गुस्सा सातवें आसमान पर होता था। हम उस व्यक्ति के तीसरी बार आने का घंटेभर इंतजार करते थे, ताकि उसे पकड़ सकें। लेकिन वह नहीं लौटता था। आखिरकार 24 घंटों में से एक घंटा इंतजार करने, कोसने और नाराज होने में बर्बाद हो जाता।


आज भी यही शरारत होती है क्योंकि घंटी 24/7 उनके हाथ में हैं। कैसे? लोगों के हाथों में मोबाइल फोन हैं और वे आपको पहले वॉट्सएप मैसेज भेजकर परेशान करते हैं, फिर मैसेज खोलने से पहले ही 30 सेकंड के अंदर ‘डिलीट फॉर एवरीवन’ (किसी के मैसेज देखने से पहले उसे मिटाने का विकल्प) कर देते हैं। आप सोचते रह जाते हैं कि ऐसा क्या भेजा होगा, जो मुझे जानना नहीं चाहिए। अगर एक-दूसरे से कम जुड़े दो लोगों में कोई ‘डिलीट फॉर एवरीवन’ बटन दबाता है, तो पूरा दिन इस अवसाद में गुजरता है कि ‘लोग मुझसे सबकुछ छिपाना क्यों चाहते हैं?’ दरअसल परेशानी वही है, सिर्फ परेशान करने की सोच अलग हो गई है।


अगर आप सोचते हैं कि ऐसी पेरशानी अमीरों को नहीं होती, बस दुनिया बस गरीबों के प्रति ही निर्दय है तो युवराज सिंह के बारे में जानें। जब तक वे क्रिकेट खेल रहे थे और फिट थे, वे शरीर मजबूत रखने की दवा का विज्ञापन करते थे। जिस दिन उन्हें कैंसर होने की खबर आई, वे टीवी विज्ञापनों से गायब हो गए। उन्होंने कैंसर से जंग लड़ी और ज्यादा मजबूत होकर लौटे। जब अच्छी देखभाल और दृढ़ निश्चय से उनके जीवन में स्थिरता आ गई, तो वे विज्ञापन की दुनिया में वापस आए। एक कंपनी के विज्ञापन में युवराज की तस्वीर के साथ ‘कमबैक स्ट्रॉन्गर’ टैगलाइन लिखी गई है। युवराज को साइन करने वाली कंपनी या विज्ञापन में कुछ भी गलत नहीं है। दुनिया हमेशा से ही लेन-देन वाली रही है और ऐसी ही रहेगी। अगर खुश रहना चाहते हैं तो आपको ही बदलना होगा।


आप पूछेंगे कैसे? मेरा जवाब है ‘दूधवाला रवैया’ अपनाएं। कैसे? याद है जब हमारे घर दूधवाला साइकिल की घंटी बजाते हुए आता था और हम बाहर आकर बर्तन में दूध लेते थे। हमारे माता-पिता जब हमें दूध लेने भेजते थे, तब भी दूधवाला कभी धोखा नहीं देता था। वह पूछता था, ‘कैसे हो बेटा/बेटी?’ और कभी अतिरिक्त दूध डालना नहीं भूलता था। उस दिन की यह पहली खुशी कमाल की होती थी। बचपन में मुझे लगता था कि मुझे घर के लिए ज्यादा दूध मिलता है। कभी-कभी मैं खेलने के लिए बने छोटे बर्तन में भी दूध मांग लेता था और वह खुशी-खुशी देता था। मुझे याद नहीं कि कभी अतिरिक्त दूध मांगने पर उसने मुंह बनाया हो। नकारात्मक सोच वाले लोग कह सकते हैं कि पानी मिलाकर भरपाई कर लेता होगा। लेकिन ऐसा संभव नहीं है क्योंकि सजग गृहणियां बर्तन में आते दूध की जांच कर लेती हैं।


कुछ ‘एक्स्ट्रा’ देने का यह ‘दूधवाला रवैया’ मुझे हमेशा याद रहता है। मैं अपने नियोजक या क्लाइंट के साथ भी यही रवैया रखता हूं। मैं जब उनके ऑफिस से निकलता हूं तो मैं उनके चेहरे पर मुस्कान और संतोष देखना चाहता हूं। इसी से मुझे शांति मिलती है।


फंडा यह है कि दुनिया नहीं बदली है, पर आपको बदलना है। और सकारात्मक ढंग से बदलने का सबसे अच्छा तरीका है ‘दूधवाला रवैया’ अपनाना।

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