दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
आइए, इस दीपावली पर ‘मौसम’ बदल दें


Nov 4, 2021
आइए, इस दीपावली पर ‘मौसम’ बदल दें
कुछ साल पहले मैं तीन दिन के लिए झारखंड के धनबाद गया था। तीनों दिन, मॉर्निंग वॉक के वक्त मेरी मुलाकात किशन से हुई। हर दिन वह अपनी साइकिल पर कोयले का ढेर लादकर जाता था, जिसे वह रेलवे की बोगियों और ट्रक से चुराता था, जो हमारे देश के बिजली संयंत्रों तक कोयला ले जाते हैं। उसे खुद नहीं पता था कि वह रोज कितने किमी चलकर स्थानीय व्यापारियों को कोयला बेचकर किराना खरीदने के लिए 200 रुपए कमाता था। उसके घर में खाना पकाने के लिए पर्याप्त कोयला होता था, जो सिग्नल का इंतजार कर रही ट्रेनों से चुराया जाता था। किशन पहले यह नहीं करता था। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण आई बड़ी बाढ़ ने उसे चोरी के लिए मजबूर कर दिया। इस तरह स्कूल जाने वाला लड़का किशन, छात्र से कृषि मजदूर बना और अंतत: गैरकानूनी कोयला ले जाने वाला बन गया।
हाल ही में स्कॉटलैंड में हुआ संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मलेन, सीओपी26 इसी के खिलाफ था, जिसमें दुनियाभर के नेता शामिल हुए। ज्यादातर विकसित देश एसी की ठंडी हवा का लुत्फ लेते हुए, किताब पढ़ने के लिए पर्याप्त रोशनी वाले लैंप के नीचे बैठकर यह चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी असर रोकने के लिए हमारे जैसे विकासशील देश कोयला जलाना बंद करें, जिसे वे ग्रीनहाउस गैसों का एकमात्र बड़ा स्रोत मानते हैं। लेकिन वे बड़ी आसानी से यह नजरअंदाज कर देते हैं कि कोयला दुनिया में विद्युत उत्पादन के लिए सबसे बड़ा स्रोत है। हमारे जैसे विकासशील देशों के लोगों की तुलना में एक अमेरिकी औसतन 12 गुना ज्यादा बिजली इस्तेमाल करता है। वास्तव में भारत में किशन जैसे तीन करोड़ लोगों के पास बिजली ही नहीं है। इसीलिए धनबाद से आते वक्त मैंने किशन से वादा किया कि अगर वह मैट्रिक पूरी करेगा तो उसे नौकरी दिलवाऊंगा। जब वह सहमत हुआ तो उस मॉर्निंग पर मेरे साथ चल रहे स्थानीय दोस्त ने उसका पता साझा किया।
तब से किशन को हम पुराने कपड़े भेजते रहते हैं, जिन्हें हम हर दीपावली रिसायकिल करते हैं। साथ ही मेरे दोस्त ने साल-दर-साल किशन के अकादमिक प्रदर्शन और ड्राइविंग तथा इलेक्ट्रिशियन के काम जैसे कौशल विकास पर नजर रखी। चार साल पहले मैंने उसे पुराने जहाजों का काम करने वाली कंपनी में नौकरी दिलवाई। संयोगवश, उसकी नौकरी के पहले दिन ही कंपनी को अफगानिस्तान का कॉन्ट्रैक्ट मिला और उसने वहां काम करने की इच्छा जताई। इतने वर्षों से वह जब भी देश आता था, मुझे ग्रीटिंग्स भेजता था। लेकिन हाल में तालिबान के कारण उसे लौटना पड़ा। तब भी उसने मुझसे और मेरे दोस्त से पूछा था कि हमारे लिए क्या ला सकता है। संयोग से हम दोनों ने ही कहा, ‘गैरकानूनी कोयला के बिजनेस से निकलने में किसी और किशन की मदद करो।’
वह इस साल पूरे परिवार को गुजरात लाने के बारे में सोच रहा था, जहां कंपनी का हेडक्वार्टर है। लेकिन उसने यह कम से कम तीन साल के लिए टाल दिया है और इस दौरान अपने कुछ दोस्तों की कोयले की तस्करी से बाहर निकलकर, उसके जैसे बनने में मदद करने का फैसला लिया है। वह उनसे यह वादा लेना नहीं भूलेगा कि वे भी किसी और की मदद करेंगे।
फंडा यह है कि यह दीपावली ऐसी मनाएं कि इतिहास में दर्ज हो जाए, जिसमें यह बताया जाए कि हमने एक अलग तरह के ‘मौसम के बदलाव’ (जलवायु परिवर्तन) में भी योगदान दिया था। आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं।

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