दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
आपका नाश्ता से वास्ता कितना अच्छा है


Oct 1, 2021
आपका नाश्ता से वास्ता कितना अच्छा है?
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ कि आपका चार वर्षीय या उससे बड़ा बच्चा दौड़ते हुए पास आया और बोला, ‘क्या मैं कुछ स्नैक्स (नाश्ता यानी नमकीन, मठरी, चिप्स जैसी लंबे समय तक चलने वाली चीजें) खा सकता हूं।’ और आपने कहा हो, ‘नहीं, जैसे ही मैं स्नैक खरीदती हूं, तुम पूरे खत्म कर देते हो।’ फिर जब बच्चा प्यार से गाल चूमकर कहता है, ‘मम्मी प्लीज, सिर्फ एक।’ तो आप पिघल जाती हैं और कहती हैं ‘सिर्फ एक? ठीक है डाइनिंग टेबल पर रखे मर्तबान से ले लो।’
अगर ऐसा हुआ है तो आपको जानना चाहिए कि ऐसी अनुमतियां या उदारता खाने के वास्तविक समय पर भारी पड़ रही हैं। आपका घर सही खाने की जगह नाश्ता ज्यादा खा रहा है।
मैंने यह इसलिए पूछा क्योंकि मैंने प्रतिष्ठित डॉक्टरों और कंसल्टेंट डाइटीशियन द्वारा इस साल मुंबई में चार समुदायों की खाने की आदतों पर किया गया एक अध्ययन पढ़ा, जिसके मुताबिक हानिकारक डाइट और फास्ट फूड तथा स्नैक के लालच से लोगों में डाइबिटीज का खतरा बढ़ रहा है। करीब 7 महीने चले अध्ययन में गुजरातियों, सिंधियों, महाराष्ट्रियनों और ईसाइयों की खाने की आदतों और जीवनशैली का परीक्षण किया गया और पाया कि गुजरातियों तथा सिंधियों में डायबिटीज का ज्यादा खतरा है क्योंकि उन्हें फैट से भरे स्नैक्स और फास्ट फूड ज्यादा पसंद हैं। ऐसा खाने वाले कार्बोहाइड्रेट से ज्यादा फैट का सेवन करते हैं।
पिछले 60 वर्षों में मैंने देखा है कि भारतीय धीरे-धीरे नाश्ते के समय से भटक गए हैं, जो गुजरे दिनों में तय होता था। भले ही मेरी मां या नानी के व्यजंनों से मेरे मुंह में पानी आ जाए, लेकिन उन्होंने मेरे मन में डर बैठाया था कि ‘अगर भगवान को ‘नैवेद्यम’ दिए बिना खाओगे तो सभी को पाप पड़ेगा।’ जब मैं पूछता था कि वे थोड़ा-सा नाश्ता बनाने के बाद ही ‘नैवेद्यम’ क्यों नहीं कर सकतीं, तो वे कहतीं, ‘ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि पूरे नाश्ते (यानी जितना एक बार में बनता था) पर ईश्वर का आशीर्वाद होना चाहिए। तभी उसका एक-सा स्वाद होगा।’ हालांकि मेरे वैज्ञानिक सवाल उन्हें परेशान करते थे, लेकिन मैं उनकी आस्था को नहीं हरा पाता था और पूजा खत्म होने का इंतजार करना होता था। उसके बाद भी स्नैक सीमित मिलते थे ताकि वे ‘ज्यादा दिन चलें।’ हमारा नाश्ते का समय तय होता था और उनके द्वारा एक बार बनाया गया स्नैक दस दिन तक चलता था, जिसके बाद नाश्ता बनाने, भगवान के भोग और नाश्ते की सीमा तय करने की प्रक्रिया दोहराई जाती थी।
मुझे लगता है कि दिन में कभी भी नाश्ते (स्नैकिंग) की आदत हमें अमेरिकियों और उनके ‘हंगरी है क्या?’ जैसे विज्ञापनों से मिली है। अमेरिका नाश्ते की खपत में दुनिया में सबसे ऊपर है। यहां हर व्यक्ति सालभर में 22.4 किग्रा स्नैक्स खा जाता है। दो घंटे विस्तार से खाने वाले फ्रांसिसी भी अब साल में 3.6 किग्रा प्रति व्यक्ति स्नैकिंग करने लगे हैं। जहां यूके में यह आंकड़ा 7 किग्रा है, वहीं नीदरलैंड्स, एस्टोनिया, पुर्तगाल, बुल्गारिया, हंगरी और ऑस्ट्रिया, यूके से भी ऊपर हैं। चिंता न करें, हम उनसे बहुत ज्यादा पीछे हैं। लेकिन आशा है उन्हें इस मामले में कभी नहीं हराएंगे और डायबिटीज का शिकार होकर उनकी ही दवाएं खरीदने मजबूर नहीं होंगे।
फंडा यह है कि ‘चलो हम बाहर खाएं’, घर में यह कहने की बजाय ‘चलो हम सब मिलकर खाना बनाएं’ को नया नारा बना लें। इससे हमारे खाने की आदतों में बड़ा बदलाव आएगा, जो हमारे लिए अच्छा है।

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