दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
आपकी संस्कृति आपको, समाज को परिभाषित करती है
आपकी संस्कृति आपको, समाज को परिभाषित करती है
इस साल तीन मई को किसी ने उसका बायां हाथ लूट लिया। आपका मन कह रहा है, ‘क्या बात कर रहे हो!’ दूसरा वाक्य पढ़ने के बाद आप मुस्कुराने लगे हैं। लेकिन मन को लगा झटका अभी खत्म नहीं हुआ। सही है न? चलिए हाथ की कहानी पर वापस ले चलता हूं। उसकी एक ही गलती थी कि वह साउथ डकोटा, अमेरिका के सू फॉल्स में अपने घर के सामने पिक-अप ट्रक खड़ा कर, उसे लॉक करना भूल गया। ट्रक में उसका बैग था, जिसमें बायां हाथ रखा था।
ऑगस्ताना कॉलेज के छात्र पार्कर हैनसन का जन्म से ही बायां हाथ नहीं था। लेकिन वह बेसबॉल खेलना चाहता था। उसने दायें हाथ से अभ्यास कर जुनून जिंदा रखा। उसने एक प्रोस्थेटिक (नकली) बांह खरीदी और बचपन से लेकर कॉलेज तक दायें हाथ का पिचर बनने का अभ्यास करता रहा। तीन मई को हाथ चोरी होने के बाद उसने सोशल मीडिया पर भड़ास निकाली और कहा कि कोई किसी व्यक्ति की ऐसी जरूरी चीज कैसे चुरा सकता है, जो दूसरे के काम की भी नहीं। हैनसन की भावुक अपील बहुत शेयर हुई और लोगों ने नया हाथ दिलाने के लिए पैसे जुटाना शुरू कर दिया।
अगले दिन सू फॉल्स पुलिस विभाग को एक बैग मिला, जिसमें प्रोस्थेटिक अटैचमेंट तो थे, हाथ नहीं था। लेकिन 11 मई को मिलेनियम रीसाइक्लिंग इंक में क्रशिंग लाइन से रीसायकल होने लायक सामान छांटने वाला टिम कैचल अचानक कूदने लगा और चीखते हुए लाइन बंद करने कहा। कैचल ने हैनसन की कहानी सोशल मीडिया पर पढ़ी थी और जानता था कि हाथ कैसा दिखता है। वही उसे लाइन पर दिखा था। हैनसन को फैक्टरी आकर हाथ लेने कहा गया लेकिन क्षत-विक्षत होने के कारण वह उपयोगी नहीं रहा।
यह खबर दोबारा वायरल हुई तो मिनियापोलिस इलाके के पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक के एक अस्पताल ने पिछले हफ्ते हैनसन को मुफ्त नया हाथ देने की घोषणा की। उसके हाथ के लिए इकट्ठा हो रहा पैसा अब किसी अन्य चैरिटी को दिया जाएगा।
मुझे यह कहानी इस मंगलवार सुबह याद आई जब मैं अपने दो कुत्तों के साथ मुंबई में वॉक कर रहा था और अचानक कचरा इकट्ठा करने वाली महिला ने पूछा, ‘यह 10 का सिक्का आपका है?’ मेरे न कहने पर उसने कहा, ‘मुझे दूर से ऐसा लगा क्योंकि मैंने आपको दो-तीन मिनट पहले सड़क पर कुछ खोजते देखा था।’ फिर मैंने बताया, ‘मैं कुत्तों की च्यू स्टिक्स ढूंढ रहा था, जो मैं हमेशा सड़क के कुत्तों के लिए लाता हूं।’ वह मुस्कुराकर बोली, ‘ओह, च्यू स्टिक थी! मैं सोच रही थी कि आप इतना परेशान होकर पता नहीं क्या ढूंढ रहे हैं। मुझे लगता है कि वह कुत्ते को पहले ही मिल गई और उसने खा ली होगी।’ मैं मुस्कुराया, लेकिन मेरे मास्क के कारण वह मुस्कान उसे दिखी नहीं। मैंने हाथ हिलाया और चला गया।
मुझे उस अनपढ़ महिला पर गर्व हो रहा था, जो हमारे फेंके कचरे पर गुजर-बसर कर रही थी, फिर भी उसके अंदर भाव था कि उसे वे चीजें घर नहीं ले जानी चाहिए, जो उसकी नहीं हैं। मैं उसकी ईमानदारी की तुलना उस अनजान व्यक्ति से करने से खुद को नहीं रोक पाया, जिसने वह प्रोस्थेटिक हाथ ‘लूटा’ या उसे ‘मिला’, जो उसे ‘फेंक’ सकता था या उसकी धातु को कबाड़ीवाले को ‘बेच’ सकता था।
फंडा यह है कि कई गरीब अपने ऐसे छोटे-छोटे भावों व कार्यों से हमें गर्व महसूस कराते हैं। यह उनका बड़े दिल वाला इंसान होने का संकेत है।