दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
आप जानते हैं कि समर्पण से ऊपर क्या है


Oct 8, 2021
आप जानते हैं कि समर्पण से ऊपर क्या है?
नवरात्रि मेरी बचपन की यादें ताजा कर देती है। इन यादों में मुझे सबसे ज्यादा यह पसंद है कि हम न सिर्फ गुड़ियों को जमाकर मेहमानों को आमंत्रित करते थे, बल्कि मां से प्रबंधन के कुछ सबक भी मिलते थे, जो सिर्फ आठवीं तक ही पढ़ी थीं।
नवरात्रि से कुछ दिन पहले पूरे घर की साफ-सफाई के बाद, त्योहार से तीन दिन पहले मेरे चाचा घर आकर, अटारी पर चढ़ते थे और बिस्किट के टीन, लोहे के बड़े बक्से निकालते थे, जिनमें गुड़ियें और उन्हें रखने के छोटे तख्त रखे रहते थे। मैं तब प्राइमरी स्कूल में था। मैं उत्साह से नीचे इंतजार करता था ताकि पुराने कपड़ों और अखबारों में लिपटी गुड़ियें बाहर निकाल सकूं। उनसे आने वाली सीलन की गंध मुझे आज भी याद है। खिलौने पुरानी विरासत थे, तो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते रहे थे। मैंने कभी उन गुड़ियों से खेला नहीं था, लेकिन हर साल नवरात्रि में उन्हें देखता था। गुड़ियां साफ की जाती थीं, कभी-कभी दोबारा रंगी जाती थीं।
नवरात्रि से एक दिन पहले और त्योहार के पहले दिन गुड़ियों को सजाकर, विभिन्न मुद्दों से जुड़ी थीम के साथ प्रदर्शित किया जाता था। जहां तमिलभाषी विभिन्न चरणों में गुड़ियों की इस प्रदर्शनी को ‘बोम्माई गोलू’, कन्नड ‘बोम्बे हब्बा’, जबकि तेलुगुभाषी ‘बोम्माला पंडगा’ कहते हैं।
हर साल मेरी भूमिका सीढ़ियों के नीचे गुड़ियें रखने की जगह को पार्क, चिड़ियाघर या कोई नई जगह बनाने की होती थी, जहां हम गर्मियों में जाते थे। मुझे मेरे और मेरी बहन के खिलौने, जैसे छोटी कुर्सियां, नारियल के पेड़, हैंडपंप, घर आदि जुटाकर, समुद्र किनारे की रेत के साथ सजावटी दृश्य बनाने में बड़ा आनंद आता था। बगीचे को हरा-भरा दिखाने के लिए मैं नवरात्रि से दो दिन पहले रागी भिगोकर रख देता था और नवरात्रि से एक दिन पहले उन्हें फैला देता था। अगले दिन उनमें छोटी-छोटी कोपलें आ जाती थीं, जिससे बगीचे जैसा दिखने लगता था। मैं दसों दिन सुबह-शाम पूरे समर्पण के साथ पानी छिड़कता रहता था, ताकि ये कोपलें बड़ी होकर हरियाली का भाव दें। शाम को ‘हल्दी-कुंकुम’ के लिए आने वाली महिलाएं इस सजावट से बनाए गए माहौल को देखकर हैरान रह जातीं और सराहना करतीं। मेरी मां कहतीं, ‘मेरा बेटा जो भी करता है, अच्छे से करता है।’
ऐसी ही एक सराहना पर मेरे पिता ने टिप्पणी की थी, ‘काश ऐसा ही समर्पण यह पढ़ाई में भी दिखाता।’ तब मैंने देखा था कि मां ने न सिर्फ मेरे पिताजी को, बल्कि वहां मौजूद महिलाओं को भी प्रबंधन का सबक दिया। उन्होंने कहा, ‘समर्पण में आप वही देते हैं, जो आपके पास है और जो दे सकते हैं। यहां ये (मेरी ओर इशारा कर) समर्पण से परे है। और इसे भक्ति कहते हैं, जहां आप खुद को समर्पित कर देते हैं। कोई भी काम प्रार्थना बन सकता है, अगर उसे समर्पण की पवित्रता के साथ किया जाए। भक्ति सिर्फ ऐसा गुण नहीं है, जिसे पूजास्थलों तक सीमित रखा जाए। हम जो भी करते हैं, हर उस कार्य में भक्ति है। जब 100% से भी ज्यादा दिल से काम किया जाए जो वह भक्ति कहलाती है। भक्ति से एकाग्रता, खुशी और प्रेम उत्पन्न होते हैं। थकान और भक्ति एक दूसरे से विपरीत हैं।’ उन्होंने बिल्कुल ठीक कहा था, मैं त्योहारों के दौरान कभी नहीं थकता।
फंडा यह है कि अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो कभी नहीं थकता, तो आप ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसके लिए सबकुछ उसकी भक्ति की अभिव्यक्ति है। संक्षेप में भक्ति, समर्पण से ऊपर है।