दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
आप बहुत अमीरों से ज्यादा समृद्ध हो सकते हैं
May 23, 2021
आप बहुत अमीरों से ज्यादा समृद्ध हो सकते हैं!
‘अधमा धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः। उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्॥’ इस श्लोक का अगर मोटा-मोटा अर्थ समझें तो निचले दर्जे के व्यक्ति की चाहत हमेशा सिर्फ पैसा होती है ना कि मूल्य। औसत व्यक्ति पैसा व मूल्य दोनों चाहता है और कई बार धन के लिए मूल्यों से समझौता कर लेता है। वहीं श्रेष्ठ व्यक्ति को कितना भी धन मिले, वह उन मूल्यों पर टिका रहता है, जो उसे सबसे प्रिय हैं।
और मेरे लिए राजकुमार केसवानी, मेरे जानने वाले कई बहुत अमीरों से कहीं अधिक समृद्ध इंसान थे। क्योंकि उन्होंने अपने मूल्यों का कभी भी व्यापार नहीं किया, इसलिए वे अक्सर नौकरियां बदलते थे। उनके इस्तीफे के बाद जब मैं उन्हें फोन करता, तो जिंदादिली से कहते- ‘दो वक्त की रोटी और एक टाइम का दारू देने का तो ऊपर वाले ने मुझे वादा किया है। और मुझे मालूम है कि उस पर कोई आंच नहीं आएगी, तो महीने की तनख्वाह के लिए मैं क्यों अपने मूल्यों से समझौता करूं।’
वह मूल्यों से चलने वाले इंसान थे, एक अच्छे मित्र और पारिवारिक व्यक्ति, तथ्यपरक इतिहासकार, कलाकृतियां जमा करने के उत्सुक, रोमांटिक फिल्मों के शौकीन, विलक्षण संगीत प्रेमी, सिद्धहस्त लेखक और बहुत शानदार किस्सागो, जिनके पास अपने किस्से से पार्टियों में कई लोगों का ध्यान खींचने की अद्भुत क्षमता थी। और मैंने उनके साथ 1960 के बाद के किस्से-कहानियां सुनते हुए, जब तक दो-तीन नहीं बज जाते थे, कई रातें बिताईं हैं। और अगले दिन मैं हमेशा हैंगअओवर महसूस करता था, वो इसलिए नहीं कि मैंने पी हुई थी बल्कि इसलिए कि जिस बहुमूल्य इतिहास के बारे में वो बताते थे, वो अक्सर इतना होता था कि उसकी जुगाली करना व दिमाग में याद रख पाना मुश्किल था।
दुनिया ये जानती है कि केसवानी पहले पत्रकार थे, जिन्होंने 2-3 दिसंबर 1984 को घटी भयानक दुर्घटना से दो साल पहले ही यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र में सुरक्षा चूक की ओर ध्यान दिलाया था। पर शायद कुछ लोगों को न पता हो कि उन्होंने भोपाल के यूनियन कार्बाइड प्लांट के मामलों में 1981 से ही रुचि दिखानी शुरू कर दी थी, जब 24 दिसंबर 1981 को प्लांट में काम करने वाले एक कर्मचारी व उनके मित्र मोहम्मद अशरफ की दुर्घटनावश फॉस्जीन सूंघने से मौत हो गई थी। वह ब्रेकिंग न्यूज वाले पत्रकार नहीं थे। इसलिए उन्होंने 1982 में अपने पहले लेख से पहले सारे सुबूत जुटाने में नौ महीने लगाए, ताकि उसका कोई खंडन न कर सके। अगर सबसे ताकतवर अमेरिकी कंपनी तब किसी से खौफ खाती थी, तो वो और कोई नहीं केसवानी थे।
भारत की महान फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की 60वीं सालगिरह पर 2020 में आई उनकी किताब ‘दास्तान-ए-मुग़ल-ए-आज़म’ मेरी पसंदीदा थी। इस फिल्म के परदे के पीछे की घटनाएं, दुर्लभ-दिलचस्प किस्से किताब में संजोए हैं, जिसे लिखने में कई साल लगाए। मैं निजी तौर पर ऐसे कई पाठकों को जानता हूं जो इस अखबार के रविवारीय रसरंग में हर हफ्ते प्रकाशित उनके स्तंभ ‘आपस की बात’ का इंतजार करते थे।
कई कलाप्रेमी मुझसे सहमत होंगे कि इस दुनिया में कुछ चीज़ें सदा के लिए हैं। मुगल-ए-आज़म ऐसी ही एक रचना है- चाहे वह फिल्म हो, नाटक या किताब के रूप में हो। जैसे कालजयी कृतियां जीवित रहती हैं वैसे ही राजकुमार केसवानी, जिनका निधन इस शुक्रवार को हो गया, उनकी स्मृतियां भी उनके मूल्यों की वजह से सदा रहेंगी। मैं दैनिक भास्कर का उनका कैनवास बनने के लिए शुक्रगुजार हूं, जिनके काम को उनके लाखों पाठक हमेशा याद रखेंगे।
फंडा यह है कि यदि आप जीवन में अपने सिद्धांतों और मूल्यों पर दृढ़ विश्वास रखते हैं, तो कोई भी सही मायनों में वाकई समृद्ध हो सकता है।