दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
उत्पाद व प्रक्रिया नहीं तो खुद को खोजिए
March 3, 2021
उत्पाद व प्रक्रिया नहीं तो खुद को खोजिए
जब सोमवार को रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि रेलवे शिमला-कालका ट्रैक पर ट्रेनों की स्पीड बढ़ाएगा, तब मुझे न सिर्फ इस खूबसूरत ट्रैक की यात्रा याद आई, बल्कि मेरे बचपन की बैटरी से चलने वाली मेरी ट्रेन भी याद आई। आप भी कभी अपने बच्चों के लिए खिलौने वाली ट्रेन लाए होंगे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि क्या होगा जब यही तकनीक भारी सामान ले जाने वाली वास्तविक ट्रेनों में इस्तेमाल की जाए? इससे माल ढुलाई नए स्तर पर पहुंच जाएगी, खासतौर पर सेना और भारी उद्योगों के लिए, जो दूरदराज के इलाकों में काम करते हैं। जी हां, यह आइडिया इस महीने सच हो रहा है। वॉरेन बफे के स्वामित्व वाली कंपनी बीएनएसएफ रेलवे कंपनी के सहयोग से कैलिफोर्निया में मालवाहक ट्रेनों के लिए इस तकनीक का परीक्षण चल रहा है लेकिन यह आधुनिक तकनीक भारत में बनी है।
रेलबोर्ड के इतिहास में पहली बार, वैबटेक इंडिया ने 100% बीईएल (बैटरी इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव यानी ट्रेन) बनाई है, जो 1000 टन माल ढो सकती है और ईंधन उत्सर्जन में 10-30% कमी ला सकती है। अभी कई रूट पर मालवाहक ट्रेनें डीजल इस्तेमाल करती हैं क्योंकि इलेक्ट्रिक केबलिंग वाली अधोसंरचना बनाना महंगा पड़ता है। डिजाइन टीम में भारत में बेंगलुरु के 1200 इंजीनियर और दुनियाभर में 5000 इंजीनियर शामिल थे।
यह मत सोचिए कि केवल इंजीनियर और उच्च शिक्षित लोग ही नए उत्पाद खोज सकते हैं। ऐसे लोग हैं जो उत्पादकता सुधारने या प्रकृति द्वारा खड़ी की गई समस्याएं सुलझाने की प्रक्रिया खोजते हैं। त्रिची, तमिलनाडु के एडीएसीआर इंस्टीट्यूट का उदाहरण देखें जिसने ‘टीआरवाय 4’ नाम की धान की नई किस्म विकसित की है, जिससे उन किसानों को मदद मिलेगी जो कृषि भूमि के खारेपन के कारण अच्छी उपज पाने में असमर्थ हैं। हमारे देश के ज्यादातर तटीय इलाकों की मिट्टी में खारापन है। इसके पीछे शायद जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ना है।
अगर आप उत्पाद या प्रक्रियाएं खोजने वालों की श्रेणी में नहीं आते तो चिंता न करें। अगर आपके पास समय है तो खुद को खोजें। जी हां, आपने सही पढ़ा। फुटबॉलर सीके विनीत यही कर रहे हैं। अपना घर 23 दिसंबर को छोड़ने से पहले विनीत ने अपनी चारपहिया गाड़ी मॉडीफाई करवाई, खुद को सभी चीजों से अलग किया, अपने सभी सोशल मीडिया एकाउंट डिएक्टिवेट किए और मन में बिना किसी योजना के निकल पड़े। उनकी मुड़े हुए पन्नों वाली डायरी की शुरुआत में लिखा है, ‘यह यात्रा खुद को खोजने के लिए है।’ सड़कों पर करीब 65 दिन की भारत की इस यात्रा का नतीजा विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है। आंकड़ों के शौकीनों को बता दूं कि विनीत ने 15 हजार किमी की यात्रा की, 32 जगहों पर गए और उनकी डायरी अनुभवों से लबालब है। खोजियों को बता दूं कि उन्होंने अजनबियों और दोस्तों ने हजार से ज्यादा संपर्क बनाए। खुद के लिए उन्होंने 124 जीबी यादें, लाखों भावनाएं इकट्ठा कीं, जिन्होंने उनके मन को पहले की तुलना में बेहतर बनाया।
मेरा यकीन कीजिए, अगर आपको खुद को खोजने का मौका मिलता है, तो कई उत्पाद और प्रक्रियाएं खोजने में मदद मिल सकती है। यकीन न हो तो इसे कर के देखें। नतीजे हौरान कर देंगे।
फंडा यह है कि बतौर इंसान, कभी कुछ नया खोजना बंद न करें। अगर मानव जीवन को बेहतर बनाने वाला कोई उत्पाद या प्रक्रिया नहीं खोज रहे हैं, तो खुद को खोजना जारी रखें।