दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
उदारता असहज स्थिति को सहज बनाती है


Aug 28, 2021
उदारता असहज स्थिति को सहज बनाती है
शुक्रवार सुबह जब मैं मुंबई एयरपोर्ट में सिक्योरिटी स्क्रीनिंग एरिया में था, मैं चौंक गया जब एक सुरक्षाकर्मी अचानक एक यात्री पर चीखने लगा जो जांच के लिए जूते उतारने का आदेश नहीं मान रहा था। चूंकि वह सीआईएसएफ कर्मचारी मेरे कानों के पास ही था इसलिए मैं थोड़ा घबरा गया। जब मेरी बारी आई तो आदतन मैं मुस्कुराया और सुरक्षाकर्मी को उनके नाम से संबोधित किया, ‘पांडेजी कैसे हैं आप?’ मैं आमतौर पर उनकी तरफ जाते हुए नेमप्लेट पर नाम पढ़ लेता हूं। उन्होंने अच्छे से प्रतिक्रिया देते हुए पूछा, ‘आप इतना डर क्यों गए थे?’ मैंने मुस्कुराकर कहा, ‘जब आप लोग भाईजान को नहीं छोड़ते तो मैं किस खेत की मूली हूं?’ न सिर्फ पांडेजी बल्कि सख्त आवाज में डांटने वाले समेत अन्य सुरक्षाकर्मी भी जोर से हंसे।
जो नहीं जानते कि सलमान खान के साथ क्या हुआ, यह रही पूरी करानी। इस हफ्ते मुंबई एयरपोर्ट का एक वीडियो आया, जिसमें सीआईएसएफ अधिकारी एएसआई सोमनाथ मोहंती, सलमान को रोकते हुए और अनिवार्य जांच के लिए जाने का इशारा करते नजर आए। वीडियो जल्द वायरल हुआ और ऐसी खबरें उड़ीं कि सलमान को रोकने वाले एएसआई को सजा दी जा रही है। इसपर सीआईएसएफ ने एक ट्वीट में स्पष्ट किया कि एएसआई को न सजा दी जा रही है, न इनाम। हर यात्री इसी प्रक्रिया से गुजरता है। एएसआई मोहंती ने जो किया, वह सिक्योरिटी प्रोटोकॉल के तहत रूटीन जांच थी, कोई अपवाद नहीं। चूंकि ऐसी अफवाह थी कि सलमान को रोकने वाले सुरक्षाकर्मी को फटकार लगी है, इसलिए सीआईएसएफ को स्पष्टीकरण देना पड़ा।
तब सिक्योरिटी ने वही किया जो करना चाहिए था, लेकिन मेरे साथ उन्होंने बहुत उदार व्यवहार किया और मुझे शॉपिंग एरिया तक छोड़ा। मैंने हमेशा देखा है कि लोग जब नाराज होते हैं तो उसका संबंध उनकी इस भावना से ज्यादा होता है कि वे पूरी दुनिया का भार अपने कंधों पर उठाए हैं। ऐसे पलों में मुझे लगता है कि हमें उनकी मदद कर या उनसे संबंधित किसी बात पर उन्हें हंसाकर इस भार को उतारने में मदद करनी चाहिए।
मैंने यह अपनी बेटी से सीखा, जब वह कुछ वर्ष पहले एक एयरलाइन के साथ काम कर रही थी। हम दोनों लंदन से लौट रहे थे।हमारी रो (पंक्ति) में बैठा करीब 10 वर्षीय, एक शरारती छोटा बच्चा ऑरेंज जूस मांग रहा था। चूंकि एयरहोस्टेस उसे पहले भी यही जूस तीन बार दे चुकी थी और शायद बड़ों की लगातार मांगों के बोझ में दबी थी, इसलिए उसने बच्चे से रूखेपन से कहा, ‘मुझे याद रहा तो ले आऊंगी।’
मेरी बेटी ने बच्चे को बैठे रहने का इशारा किया और जहां एयरहोस्टेस बैठती हैं, उस गैलरी की ओर गई। वह वापस आई तो उसके हाथ में जूस और बीयर के कुछ कैन थे। उसने एयरहोस्टेस को बतौर एयरलाइन कर्मचारी अपना परिचय दिया और पूछा, ‘अगर आप थक गई हैं, तो मैं मदद कर दूं?’ उस एयरहोस्टेस ने दर्द समझने के लिए मेरी बेटी को गले लगा लिया और उसे जरूरत से कहीं ज्यादा चीजें दीं। वे आमतौर पर इसलिए नाराज हो जाती हैं क्योंकि वे जहां कड़ी मेहनत में लगी हैं और वहीं बाकी (यात्री) आनंद के लिए यात्रा कर रहे हैं। मेरी बेटी ने होस्टेस के उग्र मन को शांत किया और मैंने भी सुरक्षाकर्मी के साथ ऐसा ही किया।
फंडा यह है कि सार्वजनिक जगहों पर थक चुके या काम के बोझ में दबे कर्मचारियों को मदद और मुस्कान देंगे तो यकीन मानिए आपको जादुई प्रतिक्रियाएं मिलेंगी।

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