दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
उलझन भरे दौर में सहूलियत की चीज़ें ज्यादा बिकती हैं


July 25, 2021
उलझन भरे दौर में सहूलियत की चीज़ें ज्यादा बिकती हैं
हममें से हर कोई आंख बंद करके भी ये मान लेगा कि लोग समय बचाने की खातिर सहूलियत भरे उत्पादों जैसे रेडी टू कुक-ईट पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं। सहूलियत उत्पाद उपलब्ध कराने वालों को महामारी के बाद लगा कि घूमने-फिरने की पाबंदियों व वर्क फ्रॉम होम के कारण लोगों के पास ज्यादा समय होगा। तब उनमें से कुछ ने अपना दायरा कम कर लिया और जिसके चलते उनका व्यवसाय भी सिमट गया। पर वे यह समझने में विफल रह गए कि महामारी ने असल में लोगों को उलझा दिया है और इस बेचैनी में लोग विवेकपूर्ण तरीके से अपना समय खर्च नहीं कर पा रहे। इसलिए कुछ अन्य लोग सोच रहे हैं कि महामारी के बाद वे और ज्यादा सहूलियत भरे उत्पाद खरीदेंगे और धीरे-धीरे वह उनकी जीवनशैली का हिस्सा बन जाएंगे।
अगर ऐसा नहीं है तो फिर पकाने के लिए तैयार पहले से काटी हुई सब्जियों की बिक्री में तेजी से बढोतरी को कैसे सही ठहराएंगे? सदियों से गरीबों का भोजन रहे बाजरा जैसे मोटे अनाज से बनने वाली भाकरी रोटी और तली हुई मिर्ची के साथ लहसुन की चटनी जैसे साधारण से खाने की और ज्यादा रेसिपी ऑनलाइन सर्च करने वालों को कैसे उचित ठहराएंगे?
कटी व पकाने के लिए तैयार सब्जियां बेचना केरल में तिरुवनंतपुरम स्थित वेजिटेबल और फ्रूट प्रमोशन काउंसिल का पुराना व्यवसाय है। वहां स्टाफ सब्जियां साफ करता है फिर काटकर पैक करके लेबल लगा देता है। महामारी से पहले उनका अन्य सेवाओं के बीच अधिकतम टर्नओवर 25 लाख रुपए सालाना हुआ करता था। पर 2020-21 में यह 63 लाख रुपए पहुंच गया। पिछले तीन महीनों में ही यह पहले ही 21 लाख रुपए पार कर चुका है, चूंकि मॉल्स में रेडी टू ईट सब्जियों की बिक्री तेजी से बढ़ी है, ऐसे में पिछले साल की बिक्री पार होने का अनुुमान है।
ऐसा सिर्फ संस्थाओं के साथ नहीं बल्कि अकेले काम कर रहे दिव्या जैसे लोगों के साथ भी हुआ है, वाट्सएप की मदद से उसका व्यापार कई गुना बढ़ गया है। पहले उसके पास सिर्फ 50 ग्राहक थे, जहां वह शाम के बाजार में उपलब्ध सब्जियों की सूची पोस्ट करती थी। उसे झटपट ऑर्डर मिलते। वह वही सब्जियां लेती और घर पहुंचती। जहां वह रात में ही लहसुन-प्याज छीलकर रख लेती, लेकिन कभी भी फ्रिज में सब्जियां नहीं रखने के कारण सुबह 10 बजे से पहली डिलीवरी देने के लिए सुबह ही सब्जियां काटती। आज उसके 400 से ज्यादा ग्राहक हैं और बढ़ते व्यवसाय को चलाने के लिए सहायक भी हैं। ऐसा सिर्फ सब्जियों के साथ ही नहीं है बल्कि इस सुविधा के कारण कटहल जैसे छीलने में बोझिल फल भी लोकप्रिय हो रहे हैं। वाट्सएप की मदद से अपना खुद का व्यवसाय कर रहे लोगों की सूची बहुत लंबी है।
भोपल्याचा कीज (कद्दू से तैयार) से लेकर काकडीचे घारगे (ककड़ी की पूरियां), भुने कटहल के बीज, जवारी भाकरी जैसे व्यंजन लें। ये सब पाककला से संबंधित कलात्मक इंस्टाग्राम पोस्ट का हिस्सा हैं। पुराने दिनों में गरीब लोग नचनी में थोड़े से चावल या रागी के साथ नमक, हरी मिर्च डालकर ज्यादा पका लेते थे। चूंकि ये रसेदार हुआ करती थी एेसे में बड़े परिवारों में सबका पेट भरने के लिए काफी होती थी। आज कम्प्यूटर के सामने घंटों बैठकर जंक फूड से अपना पेट खराब करने वाले युवा इसकी तैयारी को दो कारणों से तवज्जो दे रहे हैं। मेडिकल रूप से ये पेट के लिए अच्छी है और दूसरा गर्म-गर्म खिचड़ी की एक चम्मच खाने के लिए वह अपने लैपटॉप का कैमरा पांच सेकंड के लिए बंद कर सकते हैं! दिलचस्प है कि बाजरा(मिलेट) जैसा अनाज कभी गरीबों का मुख्य भोजन हुआ करता था, गेहूं के इस सेहतमंद विकल्प को आज ‘सुपरफूड’ कहा जाता है। और यही कारण है कि इनका प्रचार करके कई डिजिटल वेबसाइट्स भी मशरूम की तरह पनप रही हैं और लोकप्रिय भी हो रही हैं।
फंडा ये है कि जब लोग बाहरी किसी बदलाव के कारण उलझन में हो तब ग्राहकों को सहूलियतें देने के बारे में सोचें, मैं भरोसा दिलाता हूं कि वे इसे खरीदेंगे।