दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
एक ही लेन में तैरते रहना सभी के लिए अच्छा नहीं
June 16, 2021
एक ही लेन में तैरते रहना सभी के लिए अच्छा नहीं
संगठन (ऑर्गनाइजेशन) जरा जटिल संस्थाएं होते हैं। वे तय खाकों और बाध्यकारी प्रयोगों पर फलते-फूलते हैं। हर विभाग, पद और जिम्मेदारियां परिभाषित होती हैं। सभी के अपने एजेंडा और उद्देश्य होते हैं। लोगों को चुनकर उस काम को कुशलता और प्रभावी ढंग से करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। हालांकि उनसे उम्मीद होती है कि वे जादुई ढंग से संगठन में मिल जाएं, ताकि वह बड़े लक्ष्य हासिल कर सके। आप यहां बस एक इकाई हैं। आपको तैरने के लिए एक लेन दी गई है। आप उसपर ध्यान दें। और आप जो करते हैं उसमें सर्वश्रेष्ठ हैं। हालांकि नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं होते। सफलता इससे तय नहीं होती कि आप अपनी लेन में कितनी तेज तैरते हैं, बल्कि यह ताल से ताल मिलाते हुए अंतिम बिंदु तक पहुंचने के लिए अपनी-अपनी लेन में तैरते अन्य तैराकों पर भी निर्भर होता है। इसलिए इस कॉर्पोरेट दुनिया में कुछ नौकरियां विभिन्न प्रकार की ताल से ताल मिलाने वाली तैराकी होती हैं।
एक स्कूल का उदाहरण देखें, जिसका अंतिम उद्देश्य खुशहाल पीढ़ी बनाना है। यह तभी संभव है जब शिक्षक से लेकर सिक्योरिटी गार्ड तक के मन में यही अंतिम लक्ष्य हो।
जब कोविड का हमला हुआ तो शिक्षकों को वेतन कटौती के साथ ऑनलाइन नौकरी करनी पड़ी लेकिन संबद्ध स्टाफ जैसे कैंटीन शेफ, बस ड्राइवर, सफाईकर्मी और आया को भविष्य नहीं दिख रहा था क्योंकि उनके पास करने को कुछ नहीं था। स्वाभाविक है कि स्टाफ नाखुश हुआ। तब बेंगलुरु के विश्व विद्यापीठ की निदेशक सुशीला संतोष ने एक योजना बनाई।
सहयोगी स्टाफ को व्यस्त रखने के लिए स्कूल ने उन्हें दूसरी लेन में तैरने कहा। स्कूल ने खाली प्लॉट पर ऑर्गनिक फल-सब्जियां उगाने का फैसला लिया। पिछले 16 महीनो में ये सभी पेशेवर, जिन्हें अपने काम के अलावा कुछ नहीं आता था, वे ‘शहरी किसान’ के पेशे की लेन में तैरने लगे।
गैर-शिक्षण स्टाफ ने पहले पेड़ों से पत्तियां इकट्ठी कर खाद बनाई और बारिश आने से पहले जमीन साफ की। पानी की जरूरत के लिए बारिश का पानी इकट्ठा किया और रसोई का बेकार पानी भी इस्तेमाल किया। उनका शुरुआती मिशन कैंपस को हराभरा और आत्मनिर्भर बनाना था। उन्होंने न सिर्फ मैदान पर, बल्कि छत पर भी काम किया। और अंतत: स्कूल के लिए बिजनेस की खिड़कियां भी खोल दीं।
अब स्कूल में केले के सैकड़ों पौधे हैं। वहां सब्जियों और फलों के अलावा 41 मसालों के साथ हर्बल गार्डन भी है। स्कूल किचन बंद होने से उन्हें उपज के उपयोग के बारे मे सोचना पड़ा। किस्मत से तभी उन्हें कई जगहों से कोविड मरीजों के लिए खाना सप्लाई के निवेदन मिलने लगे। तो उन्होंने खाना बनाने के लिए स्कूल की रसोई और वहीं उगी सब्जियां इस्तेमाल कीं। आज वे कई मरीजों, एनजीओ और अन्य लोगों को खाना सप्लाई करने में व्यस्त हैं।
जब भी स्कूल शुरू होगा, तब स्टाफ, छात्रों के पास रोल मॉडल और प्रसन्न आत्मा बनकर लौटेगा, जिससे बच्चों को खुशहाल बनाने का स्कूल का अंतिम लक्ष्य भी पूरा होगा। उनकी जिंदगी का सबक भले ही पाठ्यपुस्तकों में जगह न बना पाए, लेकिन जब उनकी नौकरी खतरे में थी, तब मैदान से मिली सीख हमेशा साथ बनी रहेगी।
फंडा यह है कि अगर आप ऐसे संगठन में एक संबद्ध कर्मचारी हैं, जिसका मुख्य बिजनेस आपके कौशल से अलग है, तो दूसरी लेन में भी तैरने का प्रयास करें। इससे आपके संगठन को बहुत मदद मिलेगी।