दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
एक ‘गेम चेंजर’ क्या करता है


Aug. 10, 2021
एक ‘गेम चेंजर’ क्या करता है?
एक ‘गेम चेंचर’ हमेशा कुछ ऐसा करता है जो उसे बाकियों से अलग बनाता है और वह भीड़ से अलग दिखता है। ये रहे कुछ उदाहरण।
पहली कहानी: कर्नाटक के अंदरूनी इलाकों में अनिल केले की खेती करते हैं। आप खुद से कह रहे हैं न, ‘तो? ये भी कोई उदाहरण है?’ रुकिए, मैं समझाता हूं। वह दरअसल ‘आइस-क्रीम बनाना’ उगाते हैं। अब आपकी रुचि जागी? तो आगे पढ़िए।
आइस-क्रीम केला क्या है? इस किस्म ने इंटरनेट पर तहलका मचा दिया, जब एक व्यक्ति ने इसपर विस्तार से जानकारी दी और बताया कि इसका स्वाद दरअसल वनीला आइस-क्रीम जैसा है। नीले छिल्के वाले ये केले ज्यादा क्रीमी हैं। पौधे को संक्रमित होने से बचाने के लिए इन्हें थैलों में उगाया जाता है। इस तरह एक गुच्छे में 50 ही केले होते हैं। अनिल ने दो साल पहले थाईलैंड यात्रा के दौरान एक एग्जीबिशन से इसके टिशू-कल्चर्ड पौधे मंगाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन मिलाकर 21,000 रुपए खर्च किए थे। अब उनके पास इस किस्म के 10 पेड़ हैं।
पिछले 15 वर्षों से अनिल 25 एकड़ जमीन पर गर्म एवं नम इलाकों (ट्रॉपिकल) में ऊगने वाले फलों की 700 किस्में उगा रहे हैं। इनमें ज्यादातर फल दक्षिण अमेरिका, यूरोप या दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के हैं। वे दक्षिण अमेरिका में होने वाली आइसक्रीम बीन्स (फली, वैज्ञानिक नाम इन्गा एड्यूलिस) के साथ जापानी ब्लैकबेरी, मिस्र का गाक फल आदि भी उगा रहे हैं।
दूसरी कहानी: वायनाड, केरल के युवा टेकी अनुकृष्णन के पिता पेशे से बढ़ई हैं। अनुकृष्णन ने ‘Foodoyes’ नाम का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाया है, जो फूड एग्रीगेटर का काम भी करता है। जल्द यह स्विगी और जोमाटो जैसे अन्य एग्रीगेटर से प्रतिस्पर्धा करेगा। जहां अग्रणी एग्रीगेटर रेस्त्रां से मेन्यू प्राइस पर 30% तक वसूलते हैं, फूडओयेस कमीशन नहीं लेगा, लेकिन 100 रुपए प्रतिदिन सब्सक्रिप्शन चार्ज लेगा।
मुख्य रूप से बतौर सोशल मीडिया बनाए गए प्लेटफॉर्म पर यूजर्स के लिए मनोरंजक गतिविधियां भी हैं। ऑर्डर करने वाले लोग भोजन से जुड़े वीडियो और रेसिपी पोस्ट कर सकते हैं और अन्य लोग उन्हें फॉलो कर सकते हैं। जब कोई वीडियो देखेगा तो आपके वॉलेट में पॉइंट जुड़ेंगे, जिन्हें फूडओयेस पर अगली खरीद में रिडीम करा सकते हैं। ये वॉलेट कूपन उनके द्वारा लाया गया इनोवेशन है।
तीसरी कहानी: प्रकृति, उसके तत्वों, अंतर-संबंधों और उसके संरक्षण में इंसानों की भूमिका के वैज्ञानिक अध्ययन में गहरे उतरने के लिए पुणे के अबासाहेब गरवारे कॉलेज ने मास्टर ऑफ साइंस प्रोग्राम में नया जैव-विविधता कार्यक्रम शुरू किया है। इससे छात्र वन सेवाएं, जैव-विविधता मूल्यांकन, लैंडस्केपिंग और ईको-टूरिज्म जैसे उभरते सेक्टर चुन पाएंगे। यहां तक कि बायोकॉन की एग्जीक्यूटिव चेयरपर्सन किरण मजुमदार-शॉ ने रविवार को कहा कि यह स्पष्ट है कि इस दशक में पर्यावरणीय संवहनीयता, कृषि, पशुधन प्रबंधन जैसे विषय शोध आधारित इनोवेशन के जरिए बदलने वाले हैं। इससे स्पष्ट है कि दुनिया जीवविज्ञान और परिकलन विज्ञान के नए युग में प्रवेश कर रही है।
चौथी कहानी: गोवा के वास्को में चिकलिन यूथ फार्मर्स क्लब ने 25 साल से बंजर पड़े एक खेत में फसल लगाई है। उन्होंने पिछले हफ्ते धान की बुवाई पूरी की है। युवाओं द्वारा, युवाओं के लिए बनाए गए क्लब की शुरुआत युवाओं को प्रकृति से जोड़ने के उद्देश्य से हुई थी। ‘एग्रीकल्चरल रिवाइवल चैलेंज’ पहल के तहत युवाओं को सामुदायिक खेती से जुड़ी चुनौतियां दी जाती हैं।
फंडा यह है कि आप जिस क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं, उसमें कुछ अलग कर ‘गेम चेंजर’ बनें, साथ ही भविष्य पर भी निगाह जमाए रखें।

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