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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

कहावतें कोई फिल्मी डायलॉग्स नहीं, सीधा-सादा सच हैं

कहावतें कोई फिल्मी डायलॉग्स नहीं, सीधा-सादा सच हैं
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Oct 3, 2021

कहावतें कोई फिल्मी डायलॉग्स नहीं, सीधा-सादा सच हैं

82 साल की उम्र में शिक्षक बिपिन बिहारी मिश्रा अभी भी मानते हैं कि शिक्षा ही एकमात्र ज़रिया है, जो गरीबी की सूरत बदल सकता है। यही कारण है कि वह आज भी ओडिशा के क्योंझर जिला स्थित राजनगर में लड़कियों के लिए हाईस्कूल चलाने में अपनी पूरी बचत खर्च कर रहे हैं। दस साल पहले उन्हें पता चला कि उनकी जमीन के दस्तावेज में कुछ क्लेरिकल त्रुटि है। जमीन के स्वामित्व या उपयोग को लेकर बाद में होने वाली किसी परेशानी से बचने और रिकॉर्ड दुरुस्त कराने के लिए 2010 में उन्होंने अपने बेटे राजेंद्र के साथ मिलकर स्थानीय कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।  

शिक्षक ने ऐसे ही अपना नाम लिखकर पर्ची अंदर बैठे जज ललित महंता तक पहुंचा दी। एक मिनट भी नहीं हुआ होगा कि चैम्बर से कोई बाहर आया और उन्हें अन्दर बुलाया। अंदर उन्हें जज की पीठ दिखाई दी, जो अपना सरकारी काला कोट उतारकर हैंगर पर टांग रहे थे। फिर वह टेबल के पास आए और शिक्षक के पैर छूकर बैठ गए। जमीन के कागजात में गलती सुधरवाने की प्रक्रिया पता करने आए शिक्षक भौंचक्के रह गए और बोले, ‘माफ करिए मैंने आपको पहचाना नहीं।’

जज ने धीरे से कहा, ‘ये कहानी मैं आपको बाद में बताऊंगा, पर ये बताएं कि किस काम से आप यहां आए हैं?’ बिहारी ने मामला समझाया और कहा कि अभी कागजात पर साइन करने के लिए उनके साथ कोई गवाह नहीं है, पर वादा किया कि कल ले आएंगे। जज ने चुपचाप उनसे पेपर लिए, ध्यान से पढ़े और कहा, ‘इसके लिए मुझे किसी गवाह की जरूरत नहीं।’ और साइन करके कागज वापस उन्हें सौंप दिए। फिर उन्होंने उनके बेटे राजेंद्र की ओर देखा और कहा, ‘अब मैं आपके पिता के सवाल का जवाब देता हूं।’

‘जब वह राजनगर हाईस्कूल में पढ़ा रहे थे, तो उनसे मुफ्त पढ़ने वाले कई छात्र थे और मैं उनमें से एक था। पढ़ने के इच्छुक छात्रों के लिए 10 किलोमीटर के दायरे में वह इकलौती सुविधा थी। मेरे लिए वह खास हैं, क्योंकि जब मेरे पिता के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि दसवीं के परीक्षा फॉर्म के साथ फीस भर सकें, तब आपके पिता ही थे, जिन्होंने अपनी जेब से पैसे दिए। अगर मैं इस कुर्सी पर बैठा हूं, तो इसके पायदान या नींव उनकी बनाई हुई है।’

क्या मुझे उन नम आंखों और आगे हुई बातचीत के बारे में बताने की जरूरत है? आप खुद ही बेहतर कल्पना कर सकते हैं। भोपाल में टीवीएस ग्रुप में काम कर रहे राजेंद्र इस शुक्रवार को मुझसे मिले और बताया कि कैसे उन्होंने अपने 6 साल के बेटे के साथ देने की इस आदत को आगे बढ़ाया, जिसे सुनकर मेरी आंखें नम हो गईं।

एक दिन उनके बेटे ने गाय को रोटी दी और मासूमियत से पूछा, ‘आप कहते हैं कि जब हमें कुछ मिले तो थैंक्यू कहना चाहिए, मुझे बताइए कि रोटी मिलने पर गाय मुझे थैंक्यू कैसे कहेगी।’ जवाब देने के लिए राजेंद्र ने क्षण भर सोचा और ये जानते हुए भी कि गाय बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है, उसे उसके सामने खड़ा कर दिया और गाय का माथा सहलाने लगे। चूंकि गाय जानती थी कि उसे बच्चे से रोटी मिली है, उसने तुरंत बच्चे को दुलारा और राजेंद्र ने जोर से कहा ‘वाव, थैंक्यू और आइ लव यू कहने का कितना बढ़िया तरीका है।’ तब से वह बच्चा उसके सामने से गुजरने वाले गली के किसी भी जानवर को खिलाना नहीं भूलता और ये ‘आर्ट ऑफ गिविंग’ सिखाने का शानदार तरीका है।  

फंडा ये है कि पुरानी कहावतें कोई फिल्मी डायलॉग्स नहीं हैं। जब कहते हैं कि भलाई आपके पास वापस आती है, तो ये प्रमाणित सच है। सिर्फ एक चीज आप नहीं जानते कि कब। इसलिए जो आपके पास है और जब आप कर सकते हैं, देना जारी रखें।

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