दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
कृपा किसी के अनुरूप होने की बात है


July 19, 2021
कृपा किसी के अनुरूप होने की बात है
कल मेरे घर एक म्युनिसिपल शिक्षक डिनर के लिए आए। वे मेरी लघुकथाओं की किताब चाहते थे, जिससे वे छात्रों को ऑनलाइन क्लास में कहानियां सुना सकें, ताकि उनकी रुचि बनी रहे। उनका फोन हमारी सेंट्रल टेबल पर रखा था और जब भी कोई वॉट्सएप मैसेज आता, मोबाइल की लाइट जलती और मेरा ध्यान भटक जाता। उस पर दो स्क्रीनसेवर थे। पहला लॉकस्क्रीन पर, दूसरा मैसेज देखने पर आता। दोनों ऑनलाइन क्लास की तस्वीरें थीं, जिनमें उनके कपड़े और ब्लैकबोर्ड पर लिखे विषय अलग-अलग थे, जबकि मोबाइल फोन समान था, जिसकी ओर देखकर वे पढ़ा रहे थे।
एक तस्वीर में फोन टिफिन बॉक्स और कक्षा में इस्तेमाल होने वाले डस्टर के सहारे रखा था, तो दूसरी तस्वीर में पानी की बोतल से टिका था। जब मैंने इस अंतर की ओर उनका ध्यान दिलाया तो उन्होंने अजीब बात कही। ‘सर अगर मैं क्लास के दौरान पानी पीऊंगा तो फोन गिर जाएगा क्योंकि हल्की प्लास्टिक बोतल उसका वजन नहीं सह सकती। और मैं बिना पानी पीए कितनी देर क्लास लूंगा? जब मोबाइल फोन बोतल से खिसकने या बोतल गिरने पर बच्चे खिलखिलाने लगते हैं और मेरे पढ़ाने की गति बिगड़ जाती है।’ मैंने सोचा कि एक म्युनिसिपल शिक्षक कैसी-कैसी समस्याएं झेलता है। लघुकथाओं की किताब के साथ मैंने उन्हें एक ट्रायपॉड भी दिया, जो घर में अतिरिक्त था। किसी बच्चे की तरह खुश होकर उन्होंने पूछा, ‘क्या आप कुछ मिनट और देकर मुझे यह इस्तेमाल करना सिखा सकते हैं?’ मैंने ऐसा किया।
मुझे यह करने की प्रेरणा उस सुबह केरल से आई एक खबर से मिली। एक किसान की बेटी, ग्रीष्मा नायक नौवीं कक्षा में 96% अंक पाने के बावजूद एसएसएलसी परीक्षा का हॉल टिकट नहीं पा सकी क्योंकि उसने पूरी फीस नहीं भरी थी। उसके पिता ने 35000 रुपए भरे थे और रियायत नहीं मांगी थी, बस बाकी पैसे चुकाने के लिए समय मांगा था। लेकिन तब तक हॉल टिकट निकल चुके थे और ग्रीष्मा को प्रवेश नहीं मिला। फिर ग्रीष्मा ने प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार को चिट्ठी लिखी, जो शनिवार को उससे मिलने पहुंचे और सुनिश्चित किया कि उसका साल बर्बाद नहीं होगा। हालांकि वह 19 और 22 जुलाई के पेपर नहीं दे पाएगी, लेकिन उन्होंने वादा किया कि उसे अगस्त में होने वाली पूरक परीक्षाओं में बैठने मिलेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि वे खुद उसका कॉलेज में एडमिशन सुनिश्चित करेंगे। हालांकि मुझे खुशी होती, अगर मंत्री उसे आज की परीक्षा के लिए हॉल टिकट देते, लेकिन सिर्फ एक छात्र के लिए नियम नहीं तोड़ सकते।
यह ऐसा ही है। अगर आप किसी महान गणित शिक्षक के बेटे हैं और दो धन दो का आपका जवाब तीन है, तो आप गलत हैं। लेकिन अगर आप परीक्षा और विषय के बारे में कुछ नहीं जानते, फिर भी जवाब चार लिखते हैं तो आप सही हैं।
यही प्रार्थानाओं पर लागू होता है। हम मानते हैं कि ईश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना करना काफी है। यहां तक कि वे भी जो नहीं जानते हैं कि ‘ईश्वर कौन है’ या जो ईश्वर के अस्तित्व में ही विश्वास नहीं रखते, वे भी जितना ज्यादा अस्तित्व के अनुशासन के मुताबिक जिएंगे, उन्हें ईश्वर की उतनी ही ज्यादा कृपा का अनुभव होगा।
फंडा यह है कि कृपा, अस्तित्व के अनुशासन के प्रति खुद को समर्पित कर देने का आध्यात्मिक पुरुस्कार है। जैसे ईश्वर सिर्फ आस्था का विषय नहीं हैं, बल्कि उनके अनुरूप होने का भी विषय हैं, उसी तरह दी जाने वाली चीज भी जरूरतमंद की जरूरत के अनुरूप होनी चाहिए, तभी देना सुखद होगा।

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