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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

कोरोना के बाद भी प्रासंगिक बने रहने के लिए चाहिए ‘एपीए’

कोरोना के बाद भी प्रासंगिक बने रहने के लिए चाहिए ‘एपीए’
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April 14, 2021

कोरोना के बाद भी प्रासंगिक बने रहने के लिए चाहिए ‘एपीए’


अप्रैल 13-14 को मनाए जा रहे हिन्दू नव वर्ष और गुड़ी पड़वा, बैसाखी, चेती चांद, उगाड़ी, विशु और पुत्ताडु के फसल के त्योहार में लगातार दूसरे साल भी उत्साह ठंडा रहा। जहां सरकार ने ‘कोरोना कर्फ्यू’ जैसे नए शब्द गढ़े हैं, जिससे त्योहारों की चमक चली गई है, वहीं अमेरिका से लेकर भारत तक के मैनेजमेंट पेशेवर नई रणनीति बनाने में दिमाग खपा रहे हैं, ताकि 2021 भी 2020 की तरह न बीते। वे तेजी से ‘अल्टरनेटिव पाथ ऑफ अचीवमेंट (एपीए) यानी उपलब्धि का वैकल्पिक रास्ता बना रहे हैं। यह नया शब्दजाल कई ब्लू चिप कंपनियों के बोर्ड में इस हफ्ते सुनाई दिया। यह बीच-बीच में होने वाले ऐसे लॉकडाउन से बचने के लिए कम और लंबी अवधि की रणनीतियां बनाने के बारे में है। कंपनी के सर्वश्रेष्ठ दिमाग साथ मिलकर खुद के लिए एपीए बनाने में लगे हुए हैं।

लेकिन अगर हम बतौर समाज अपने सगे-संबंधियों, खासतौर पर अगली पीढ़ी के लिए एपीए बनाना चाहते हैं, तो इस महामारी ने कहीं न कहीं संदेश दिया है कि प्रकृति से दोस्ताना रखें। और जिम्मेदार लोग तथा समूह इस दिशा में काम कर रहे हैं।


‘ग्रीन यात्रा’ एनजीओ के मुंबई निवासी प्रदीप त्रिपाठी का उदाहरण देखें। उन्होंने जापानी मियावाकी पौधरोपण तकनीक इस्तेमाल कर एक साल में प्राकृतिक जंगल बनाया है। वे इसे गर्मी, धूल, कार्बन और कंक्रीट के खिलाफ ‘ग्रीन वॉल’ मानते हैं। मुंबई के उत्तर पूर्व में जोगेश्वरी स्थित 23 हजार वर्गफीट बंजर भूमि एक साल पहले ही सीमेंट की बोरियों, निर्माण कार्य के मलबे और वायु के लिए जहरीले पदार्थों से भरी हुई थी। आज वहां कंचन, करांज, नीम, जामुन और पलाश के पेड़ों का 20 फीट ऊंचा शामियाना-सा बन गया है। मुंबई के शहरी फैलाव के बीच यह जंगल जैसा हराभरा, 2020 में का पहला शहरी जंगल है। मुंबई में कम से कम ऐसे 50 मिनएचर जंगल तेजी से उभर रहे हैं, एक ऐसे शहर में, जिसे हरियाली मिटाने और कंक्रीट के जंगल बनाने के लिए जाना जाता है।

खुद को ईश्वर का अपना देश कहने वाला और हरियाली के लिए पहचाना जाने वाला केरल एक कदम आगे है। इस हफ्ते वहां ‘कम्पैशन हब’ नामक जगह शुरू हुई है। यह 12,197 वर्गफीट में बनी खुली साझा जगह एक इकोफ्रेंडली लाइब्रेरी है, जहां लोग पेड़ों की छांव में किताबें पढ़ सकते हैं। समान सोच रखने वालों द्वारा बनाई गई जगह में लोग एक-दूसरे से उम्र, धर्म या लिंग के बंधन के बिना मिल सकते हैं, समय बिता सकते हैं और सारी चिंताएं भूलकर किताबें पढ़ सकते हैं। कुछ महीने पहले करीब 2500 लोगों ने इस जगह के लिए क्राउड फंडिंग की और अच्छा महसूस करने के माहौल के लिए 360 पौधे चुनकर उगाए गए। वे एक प्राकृतिक माहौल बनाना चाहते थे, जिसमें कंक्रीट का निर्माण न हो। ‘कम्पैशन हब’ की तैयारी देखकर कुछ डॉक्टरों ने अपने फ्री टाइम में वहां आने की पेशकश की है, जहां आगंतुक उनसे खुलकर बात कर सकते हैं।


ज्यादातर पौधे पहले ही सात फीट ऊंचे हो चुके हैं और सदस्यों ने बांस की बेंच, छोटा तालाब और मेडिकल गार्डन भी बनाया है। दूसरे चरण में उनकी योजना मिट्‌टी से कुछ कमरे बनाने की है, ताकि लोग वहां आकर कुछ दिन रह भी सकें। और स्वाभाविक है कि इसकी लागत भी क्राउड फंडिंग से निकलेगी।


फंडा यह है कि आप चाहे कोई व्यक्ति हों या कॉर्पोरेट या सामाजिक संगठन, कोरोना के बाद की दुनिया में प्रासंगिक बने रहने के लिए हमें 2021 के लिए एपीए बनाना होगा, जिसकी हमने कल्पना की है।

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