दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
कोरोना से जंग में सोशल मीडिया नया वॉर रूम


May 10, 2021
कोरोना से जंग में सोशल मीडिया नया वॉर रूम
हर सुबह उठते ही वे तीनों भी फोन उठा लेते हैं, जैसा हमारे घर में हर युवा करता है। तृतीय वर्ष का एमबीबीएस स्टूडेंट ध्रुव पटेल, चार्टेड एकाउंटेंसी स्टूडेंट कदम शाह और उसका छोटा भाई मीत शाह, जो छात्र है, तीनों अन्य युवाओं की तरह व्यस्त हो जाते हैं, लेकिन अलग मकसद से। वे ऐसी सोशल मीडिया पोस्ट ट्रैक करते हैं, जो जरूरतमंदों को बेड, दवाएं और ऑक्सीजन देने का दावा करती हैं। वे पोस्ट में दिए गए नंबरों पर फोन करते हैं। और उन्हें 70% पोस्ट फेक मिलती हैं। फेक पोस्ट पहचानकर वे इसकी जानकारी पोस्ट करने वाले व्यक्ति को देते हैं और उस वॉट्सएप ग्रुप को भी बताते हैं, जिससे वे जुड़े हैं। अगर पोस्ट असली होती है, तो वे उसे ‘वेरिफाइड पोस्ट’ बताकर वॉट्सएप स्टेटस पर डालते हैं। वे असली पोस्ट को और फैलाते हैं तथा लोगों को फॉरवर्ड करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
प्रह्लादनगर, अहमदाबाद के तीनों युवा उदाहरण हैं कि हमारे आस-पास अच्छे इंसान हैं। ऐसे कई हैं। सिर्फ फोन और इंटरनेट कनेक्शन की मदद से अनजान लोग बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर और प्लाज्मा खोजने के लिए साथ आ रहे हैं। आप और हम भी इस आंदोलन से जुड़ सकते हैं। वे रेमडेसिवीर और टोसिलिजुमैब इंजेक्शन तलाश रहे असुरक्षित नागरिकों की सोशल मीडिया पर घात लगाकर बैठे ठगों से भी रक्षा करते हैं। देशभर में 20 वर्ष के आसपास की उम्र वाले युवा ऑनलाइन इकट्ठे होकर स्क्रीनशॉट साझा कर रहे हैं, वेरिफिकेशन मॉडल बना रहे हैं और सभी राज्यों में नेटवर्किंग कर मरीजों के परिजनों को उम्मीद दे रहे हैं कि इस दुनिया में अच्छे लोग हैं।
यह बेड और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खोजने से भी परे है और सेवा इस्तेमाल करने वाले कई रिश्तेदारों को लगता है कि ‘उनकी प्रार्थना सुन ली गई’ या ‘इन बच्चों को ईश्वर ने भेजा है’। इस काम का सबसे मुश्किल हिस्सा वह है, जब वे किसी को मरीज की स्थिति जानने फोन करते हैं और उन्हें पता चलता है कि मरीज नहीं बच पाया या जब उन्हें कोई बताता है कि वे निवेदन वापस लेना चाहते हैं क्योंकि उनका परिजन अब नहीं रहा। यह सुन वे भावुक हो जाते हैं।
आप ऐसा समूह शुरू करना चाहते हैं और नहीं जानते कि कैसे शुरुआत करें? तो @pooja.pradeep पर रिक्वेस्ट भेजें। पूजा उनके लिए टेम्प्लेट्स देती हैं जो अपने इलाके, शहर, जिला या राज्य में मदद के लिए टीम बनाना चाहते हैं। बेंगलुरु की 28 वर्षीय पूजा प्रदीप का दिन उनके लिए फॉर्मेट पोस्ट करने से शुरू होता है, जो देशभर से रिक्वेस्ट भेजते हैं, जबकि उसकी आठ लोगों की टीम बाकी काम संभालती है।
पूजा से प्रेरित होकर 21 वर्षीय गौतम मोनांगी की 30 लोगों की कोविड टीम रोज कम से कम 15,000 कॉल करती है। यह बड़ी संख्या है। केवल 10 दिन पहले बनी गौतम की टीम दिनरात शिफ्ट में काम करती है। वे सिर्फ एक काम करते हैं- वेरीफाई, वेरीफाई और वेरीफाई।
बेशक हम सबसे बुरी मेडीकल इमरजेंसी झेल रहे हैं। अगर आप सुरक्षित और स्वस्थ हैं, तो भले ही घर से करें, लेकिन इन युवाओं की मदद करें। इतिहास आपको और इन युवाओं को नि:स्वार्थ कार्य के लिए याद रखेगा।
फंडा यह है कि कोरोना की दूसरी लहर में टेक्नोलॉजी पर पकड़ न रखने वाली पीढ़ी की मदद करने के लिए अगली पीढ़ी सोशल मीडिया का इस्तेमाल बतौर वॉर रूम कर रही है और नि:स्वार्थ भाव से कार्य कर रही है। इसके लिए उन्हें शाबाशी दें।

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