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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

क्या आपका बच्चा गुस्से को दिशा देना जानता है

क्या आपका बच्चा गुस्से को दिशा देना जानता है
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July 6, 2021

क्या आपका बच्चा गुस्से को दिशा देना जानता है?


साल 1988 में 18 वर्षीय फिलिप टेवेरेस कमरे में उदास बैठा, उसके पिता को गिरफ्तार करने वाले तीन पुलिस वालों से बदला लेने की सोच रहा था, जो उनकी मृत्यु के लिए कथित रूप से जिम्मेदार थे।


उसके पिता दयालु व्यक्ति थे। उन्होंने कभी नशा या झगड़ा नहीं किया। उनके मुलायम हाथ खरगोश पालते थे। उन्हें पड़ोसी कभी फ्रिज खिसकाने या कार को धक्का देने जैसी मदद के लिए बुलाते रहते थे। चार महीने पहले दिसंबर 1987 में उसके पिता बिग फिल और उनकी दूसरी पत्नी सिंडी झगड़ रहे थे। जब सिंडी ने घर आई बिग फिल की मां की तरफ कुछ फेंका तो तकरार बढ़ गई। बिग फिल ने मां के जाने के बाद पुलिस को बुलाया। पुलिस आई और कुछ मिनटों में पड़ोसियों ने बिग फिल को हथकड़ियों में देखा। जब वे तीन पुलिसवाले उन्हें ले जा रहे थे तो फिल पेट पकड़कर मुश्किल से चल रहे थे।


रात दो बजे फिलिप को पिता की गिरफ्तारी का फोन आया। वह और उसकी तलाकशुदा मां थाने गए, जहां रिहाई के कागज बने लेकिन बिग फिल को दस्तखत करने में भी परेशानी हो रही थी। अस्पताल के बेड पर पिता ने बताया कि कैसे उन्हें सीने और पेट पर डंडे मारे गए, जब वे किचन से मिर्गी की दवा उठा रहे थे, जिससे वे बचपन से पीड़ित हैं।


अधिकारियों ने सोचा कि वे कोई हथियार उठा रहे हैं और उन्हें बुरी तरह पीटा। घटना के कुछ दिन बाद बिग फिल की तबीयत दो बार बिगड़ी। फिलिप पिता के पास ही था। पिता बोले, ‘हमारे पास बहुत कुछ नहीं है बेटा, लेकिन हमारा नाम है। उसपर दाग मत लगने देना।’ उनकी सेहत बिगड़ती गई और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया।


शवपरीक्षा रिपोर्ट में, जो कई अखबारों में छपी, तिल्ली (प्लीहा) फटने के कारण फेफड़ों में खून का थक्का जमने की बात आई। परिवार ने दु:ख को संभाला और पुलिस थाने के बाहर धरना दिया लेकिन पुलिस ने सबूतों के अभाव में केस बंद कर दिया। चूंकि पुलिस विभाग को गलत साबित करने के लिए न तो बॉडी कैमरा थे और न ही फोन, जैसा कि जॉर्ज फ्लॉयड के मामले में था, जिसमें पुलिस अत्याचार कैमरे में कैद हुआ। इसीलिए फिलिप चाहता था कि पुलिस अधिकारी मारे जाएं। लेकिन उसके पिता के शब्द ‘कभी परिवार के नाम पर दाग नहीं लगने देना’ ने गुस्से को काबू करने में मदद की।


फिर फिलिप सामान्य अध्ययन से हटकर क्रिमिनल जस्टिस पढ़ने लगा। तभी पुलिस वालों ने उसे मर्डर केस के संदिग्ध सिद्धांत में फंसाकर गिरफ्तार कर लिया। कुछ हफ्ते बाद वह बाहर आया। 1994 तक वह मार्शफील्ड पुलिस डिपार्टमेंट में फुलटाइम ऑफिसर बन गया। तब से उसे लोगों का विश्वास जीतने और कल्याण के काम करने के लिए लगातार प्रमोशन मिलने लगे। इतने वर्षों में, अपने निजी समय में वह पिता के केस से जुड़े दस्तावेज इकट्‌ठा करता रहा।


आज 51 वर्ष की उम्र में उसके केबिन की नेमप्लेट पर लिखा है, ‘फिलिप ए. टेवेरेस, चीफ ऑफ पुलिस’। ये वही अधिकारी हैं जिनकी तस्वीर जून 2020 में वैश्विक अखबारों में छपी थी, जिसमें वे वर्दी में, घुटनों पर बैठकर जॉर्ड फ्लॉयड के लिए प्रार्थना कर रहे थे। आखिरकार पिछले हफ्ते, तीन दशक बाद डिस्ट्रिक्ट अटर्नी ने उनके पिता का केस दोबारा खोलने का फैसला लिया।


फंडा यह है कि चूंकि बच्चा नहीं जानता कि वह गुस्से को सही दिशा कैसे दिखाए, इसलिए माता-पिता कुछ पारिवारिक नैतिक नियम बनाएं, उनपर विश्वास करें और बच्चे को भी सिखाएं।

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