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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

क्या डिजिटल युग में प्रिंट बच्चों की याददाश्त बढ़ा सकता है

क्या डिजिटल युग में प्रिंट बच्चों की याददाश्त बढ़ा सकता है
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May 13, 2021

क्या डिजिटल युग में प्रिंट बच्चों की याददाश्त बढ़ा सकता है?


आप खुद ये प्रयोग कर सकते हैं। एक से ज्यादा शीट पर कुछ पैराग्राफ का प्रिंट निकालकर बच्चों से पढ़ने कहें। फिर उनसे सवाल पूछें, जैसे 1. पाठ का मुख्य विचार क्या है, 2. पाठ में शामिल मुख्य बिंदुओं की सूची बनाओ और 3. कोई अन्य जरूरी कंटेंट जो याद आता हो। अब इस प्रयोग को डिजिटल में दोहराएं, लेकिन शर्त यही है कि उन्हें अलग विषय के कुछ पेज स्क्रॉल कर यही टेस्ट देना होगा। फिर उनसे प्रिंट और डिजिटल की समझ में अंतर पूछिए। आपको शायद पता चले कि बच्चे डिजिटल की तुलना में पेज पर छपे पाठ से ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शोधकर्ताओं ने पाया है कि स्क्रोलिंग से समझने में कुछ बाधा आती है।


पिछले हफ्ते रिसर्च ग्रुप ‘बे व्यू एनालिटिक्स’ ने अमेरिका में किए सर्वे में पाया कि ज्यादातर कॉलेज शिक्षक मानते हैं कि छात्र प्रिंट मटेरियल से बेहतर ढंग से समझते हैं।

महामारी के कारण पिछले साल जब अचानक छात्रों को ऑनलाइन एजुकेशन पर जाना जरूरी हो गया तो उन्हें स्कूल-कॉलेज के पढ़ने वाले असाइनमेंट डिजिटली करने पड़े। इस रुझान को देखते हुए शिक्षक, छात्र, पैरेंट्स और नीति निर्माता सोच सकते हैं कि छात्रों में टेक्नोलॉजी की बेहतर समझ के कारण उनकी लर्निंग के नतीजे बेहतर होंगे। लेकिन ऐसे सर्वे चेतावनी देते हैं कि अकादमिक पाठन के लिए स्क्रीन पर भारी निर्भरता अस्थायी समाधान ही है।


प्रिंट आधारित और डिजिटल टेक्स्ट के बीच अनंत बहस चलती रही है। छात्रों को आसान और सुलभ कस्टमाइज्स प्रोग्राम देने के लिए टेक्नोलॉजी आगे बढ़ रही है। छात्र भी स्क्रीन पर पढ़ना पसंद कर रहे हैं। लेकिन जब वास्तविक प्रदर्शन की बारी आती है तो उनका यह प्रदर्शन कई शोध नतीजों में प्रभावित दिखता है।


विकसित देशों में एक दशक पहले ही डिजिटली पढ़ना आम होना शुरू हुआ और विकासशील देशों में शायद पिछले पांच वर्षों में। छात्र इसलिए ऑनलाइन पढ़ना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रिंट की तुलना में ऑनलाइन तेजी से पढ़ सकते हैं। इसके अलावा कई देशों में इसे इसलिए अपनाया ताकि लर्निंग के साझा प्लेटफॉर्म से स्कूलों को मदद मिले और दूरदराज के छात्रों को भी पेशेवर लर्निंग का लाभ मिले क्योंकि ऑनलाइन से पहुंच तेज व व्यापक होती है।


डिजिटल होने के पीछे आर्थिक पर्यावरणीय कारण भी हो सकते हैं। लेकिन अगर प्रिंट खत्म हुआ तो एक जरूरी चीज भी खत्म होगी। यह है ज्ञान का लंबे समय तक बने रहना। शोध कहते हैं कि इसमें प्रिंट मायने रखता है।


इसलिए आज के डिजिटल वासियों को, यानी हमारे बच्चों को याद दिलाते रहें कि जब बात सीखने के उद्देश्य और अकादमिक विकास की होगी तो छपे हुए शब्दों के मोल को न पहचानने पर नुकसान होगा।


लेकिन साथ ही बच्चों से भी जानें कि पढ़ने का कौन-सा माध्यम उन्हें आसानी से ध्यान केंद्रित करने और सीखने में मदद करता है। अपने स्कूलों या शहर में लघु सर्वे करें क्योंकि विभिन्न शहरों में बच्चों की याद रखने की क्षमता अलग-अलग हो सकती है।

इससे पहले कि महामारी हमें प्रिंट या डिजिटल में से किसी एक के पक्ष में ले जाए, समाज के रक्षकों को शिक्षा के लिए ट्राएज (गंभीर रोगियों को पहले चिकित्सा देने) की व्यवस्था करनी चाहिए। आखिर हम पैरेंट्स के लिए लर्निंग का नतीजा जरूरी है, सीखने का तरीका नहीं।


फंडा यह है कि इस डिजिटल युग में गति देने वाली स्क्रीन और दीर्घायु याददाश्त देने वाले प्रिंट के बीच संतुलन बनाएं।

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