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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

क्या हम ‘अस्वस्थ’ जीवन अपना रहे हैं?

क्या हम ‘अस्वस्थ’ जीवन अपना रहे हैं?
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Aug 18, 2021

क्या हम ‘अस्वस्थ’ जीवन अपना रहे हैं?


अपनी छुटि्टयों के पिछले पांच दिनों में मैंने तीन बार ट्रेन से यात्रा की। चूंकि सारी यात्राएं रात में थी, इसलिए अपर क्लास के उन कोच में खर्राटों की ‘कारपेट बॉम्बिंग’ का मैं गंभीर रूप से शिकार हुआ। कारपेट बॉम्बिंग युद्ध की शब्दावली है, जहां एयरफोर्स एक बार में ही दुश्मन के सारे ठिकानों पर बम गिराती है, ताकि उन्हें भागने या प्रतिक्रिया देने की कोई जगह न मिले। 


जब सोने के दौरान नाक व गले से हवा आसानी से नहीं गुजर पाती, तब खर्राटे होते हैं। इससे आसपास के कोमल ऊतकों में कंपन होता है, जिससे आवाज पैदा होती है, जिसे खर्राटे कहते हैं। पूरी बोगी में कई लोग खर्राटे ले रहे थे और चैन की नींद के लिए मेरे पास बर्थ बदलने की कोई जगह नहीं थी। इसलिए तीनों रातें मैंने जागकर काटी। पर इसने मुझे लोगों के बदले हुए व्यवहार के बारे में सोचने का पर्याप्त वक्त दे दिया, जिनसे अपनी दिन की यात्रा के दौरान मैंने बातचीत की थी। 


शहर में रहने वाले सेल्फ-एम्प्लॉयड जैसे स्टेशन के कुली, कैब चालक और छोटे अस्थायी दुकानदार जैसे मंदिर के सामने फूल बेचने वाले आदि अब पूरी तरह बदल गए हैं। संपूर्ण लॉकडाउन में उनकी आमदनी पूरी तरह मारी गई इसलिए वे जितना जल्दी हो सके, गंवाए पैसों को वापस कमाना चाहते हैं। चूंकि वे रोज कमाकर खाने वाले लोग हैं ऐसे में मुमकिन है कि वे कर्ज के भंवरजाल में गंभीर रूप से फंस गए हों। इस आर्थिक दबाव का सीधा असर अब ग्राहकों के प्रति सम्मान में दिखाई दे रहा है, बातचीत में आदर और उनके शब्दों का चयन, सब कुछ गिर गया है। मैं समझता हूं कि लंबे समय तक तंगी से हुई झुंझलाहट ने उनके सार्वजनिक व्यवहार पर भारी असर डाला होगा। पर दाम में 200% वृद्धि का जो तरीका इन लोगों ने निकाला है, वह जायज नहीं है।

ये भी है कि वे पाबंदियों के 15 महीनों में गंवा चुके पैसों को बिजनेस खुलने के शुरुआती दो महीने में ही कमाने की उम्मीद नहीं कर सकते। उन्हें ये भी समझना होगा कि ग्राहक भी उसी परिस्थिति से गुजरे हैं, जहां उनकी भी आमदनी नहीं हुई या कम हुई और इन असंगठित कामगारों द्वारा मांगा गया बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ शुल्क देने के लिए वे तैयार नहीं हैं। तीन ट्रेन यात्राओं में मुझे अपना भारी सामान छह बार उठाना पड़ा- तीन बार ट्रेन में चढ़ाने के लिए और तीन बार स्टेशन से बाहर निकलने के लिए। मैंने सिर्फ दो बार कुली किया, जहां मुझे लगा कि उनका रेट जायज है। ये साफ इशारा करता है कि यहां तक कि ग्राहक भी उनके छोर से पैसों की कमी के कारण खर्च करने में सतर्क हैं।

वे लोग जो सोचते हैं कि बहुत ज्यादा कमाने से जीवन में खुशी भी खरीदी जा सकती है, उन्हें मैं बता दूं कि ये गलत धारणा है कि किसी भी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाला पैसा ही इकलौता कारक है। बजाय इसके बाजिव दामों पर उत्पाद व सेवाएं, सौहार्दपूर्ण माहौल, ग्राहकों की संतुष्टि के प्रति समर्पण और विक्रेताओं के साथ खरीदार, दोनों का उदार रवैया भी वो कारक हैं, जो अर्थव्यवस्था में तेजी लाते हैं। पैसा सिर्फ इंजिन ऑइल है, जो खुशहाल राष्ट्र बनाने के लिए अर्थव्यवस्था को अकेले गति नहीं दे सकता। खुशी तो उसके नागरिकों की अच्छी शारीरिक और माली हालत का परिणाम है। आपको पैसों की जरूरत होती है, लेकिन उन कमाए पैसों का आनंद लेने के लिए अच्छी सेहत भी जरूरी है। और उसके लिए अपने अंदर की आवाज के प्रति वफादार रहें और उसके निर्देशानुसार काम करें।

फंडा ये है कि गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए हमें न सिर्फ व्यक्तिगत सेहत बल्कि हमारे व्यवहार व जिस समाज से हमारा वास्ता है, उन लोगों से बातचीत में भी ध्यान देने की जरूरत है। और ये आखिर में सम्मान के रूप में रिस्पॉन्स मैकेनिज्म बना देता है, ये अंतत: हमें खुशी देता है।

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