दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
ग्राहकी चाहिए तो छोटे दुकानदारों को एक होने की जरूरत है
Sep 21, 2021
ग्राहकी चाहिए तो छोटे दुकानदारों को एक होने की जरूरत है
आपकी खुशी कैसे तलाशें? इंडस्ट्री के अंदरुनी लोग और कई व्यापारी मिलकर ये तरीका खोज रहे हैं कि जब ग्राहक कोई उत्पाद खरीदे और उसका इस्तेमाल करे या जब स्क्रीन पर कंटेंट का उपभोग करे तो हैप्पीनेस कोशंट यानी खुशी का अनुपात कैसे बढ़ाया जाए। न्यूयॉर्क स्थित ट्रेंड बताने वाली कंपनी डब्ल्यूजीएसएन ने पिछले हफ्ते के आखिर में जारी श्वेत पत्र में कहा कि 2022 में उपभोक्ताओं की डेली लाइफ को आकार देने वाली भावनाओं में ‘रेडिकल ऑपटिमिज्म’ सबसे मुख्य होगा। इस पत्र ने रेडिकल ऑप्टिमिज्म को विद्रोही या साहसी चुनाव या नए सिरे से इरादे के रूप में वर्णन किया है और नए आशावादी उपभोक्ताओं में खुशी का उत्साह व भूख होगी।
जहां विकसित देश उपभोक्ताओं के बीच खुशी पैदा करने के लिए इस तथाकथित रेडिकल ऑपिटिमिज्म पर फोकस कर रहे हैं, जिसकी 2022 में आने की उम्मीद है। फैशन गलियों, भीड़ भरे बाजार और चौक बाजारों वाले हम छोटे दुकानदारों को भी खुशी मिलना चाहिए। चूंकि हमें खुशी ग्राहकों की बढ़ती संख्या से मिलती है इसलिए हमें पहले उन्हें अपने क्षेत्र में लाने की जरूरत है। इस पर न झगड़ें कि उन्हें अपनी दुकान के अंदर कैसे लाएं पर उन्हें अपनी गली या चौक तक लाने के लिए आपस में एक हो जाएं। मैं यहां कुछ मूल बातें स्पष्ट कर देता हूं जिससे खर्च करने वाले भारतीय बाजार में आएंगे, जिन्हें अभी ऑनलाइन खरीदारी की आदत लग गई है।
गर्मियों के दिनों में लाहौर, पाकिस्तान के अनारकली बाजार की एक यात्रा में मुझे याद है कि कैसे छोटे-छोटे दुकानदार कोल्ड ड्रिंक या स्थानीय ड्रिंक का ऑफर देकर एक-दूसरे से स्पर्धा कर रहे थे, चाहे ग्राहक कहीं से भी खरीदें। जब मैंने एक दुकानदार से पूछा कि उन्होंने जिसे ड्रिंक पिलाई, उसने खरीदारी दूसरी दुकान से की, तब उन्होंने कहा, ‘की फर्क सर जी, पैसा तो बिरादरी को ही गया।’ यहां के बारे में मुझे ये अच्छा लगा कि दुकानदार ग्राहकों को उनके बाजार की तरफ आकर्षित कर रहे थे और उन्हें अपनी दुकान चुनने दे रहे थे। कोई आश्चर्य नहीं कि जिससे भी मैंने अपनी पत्नी के लिए सलवार-कुर्ती खरीदने की बेस्ट जगह के बारे में पूछा, सबने एक स्वर में कहा, ‘अनारकली बाजार।’
इसलिए साथ आएं और मिलकर बाजार में महिलाओं को लुभाएं। उनके बाजार नहीं आने का एक कारण ये भी है कि हमने उन्हें साफ टॉयलेट नहीं दिए हैं। मिलकर कुछ पैसा खर्च करें, महिला सफाई कर्मी तैनात करें और साफ वॉशरूम उपलब्ध कराएं। अगर अटपटा लग रहा है तो जाइए और समझिए कि कैसे लंदन की हाई स्ट्रीट के दुकानदार महिलाओं को वापस लुभाने के लिए टॉयलेट बनवाने व उसके रखरखाव पर विचार कर रहे हैं। अगला कदम ये है कि जब महिलाएं थक जाएं तो बैठने के लिए बेंच दें और नवजात को स्तनपान कराने के लिए उन्हें पर्दे वाली जगह मुहैया कराएं। छोटी दुकानों में ट्रायल रूम दुर्लभ होते हैं, इसे बनाने के लिए छोटे स्टोर्स को साथ आना ही चाहिए। याद रखें कि यही कारण है कि अधिकांश महिलाएं मॉल को प्राथमिकता देती हैं। साथ ही एक जगह चुन लें जहां कोने पर टेलर को बैठा सकें, जो तुरंत कपड़े ठीक करके ग्राहक को दे दे। कुछ दुकानदार मिलकर एक सिलाई वाले को हायर कर सकते हैं। कोई भी बाजार दिव्यांगों के अनुकूल नहीं है। रैंप की बात तक नहीं होती। दुकान बाजार की मुख्य सड़क तक फैलाने और ट्राफिक बाधित करने के बजाय दिव्यांगों को दुकान के अंदर आने के लिए रैंप बनाएं और फिर ग्राहकों की संख्या में अंतर देखें।
फंडा ये है कि अमीर, सेहतमंद, बच्चों के बिना आने वाले और विशेष तौर पर पुरुषों के लिए अनुकूल बाजार बनाने के बजाय ग्लोबल ट्रेंड्स के साथ-साथ महिलाओं और उनके मुद्दों पर ध्यान दें।