दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
जिंदगी में किसी पर बेशर्त भरोसा जरूर हो


Aug 23, 2021
जिंदगी में किसी पर बेशर्त भरोसा जरूर हो
हर सुबह एक छोटी बच्ची मंदिर जाकर भगवान के सामने आंख बंदकर, हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती और थोड़ी देर कुछ बुदबुदाती रहती। फिर आंखें खोलकर झुकती, मुस्कुराती और दौड़कर चली जाती।
ऐसा रोज होता था। मंदिर का पुजारी उसे रोज देखता और उसे जिज्ञासा होती कि यह ऐसा क्यों करती है। उसने सोचा कि वह छोटी बच्ची है, उसे धर्म का गहरा ज्ञान नहीं होगा और न ही उसे कोई प्रार्थना आती होगी। उसका दिमाग यही सोचता रहता कि हर सुबह बच्ची मंदिर में क्या करती है? कई दिन बीतने पर एक दिन बच्ची दौड़कर लौटते हुए पुजारी से टकरा गई। पुजारी से रहा नहीं गया और उसने सोचा कि आज पूछ ही लेता हूं कि यह ईश्वर से क्या प्रार्थना करती है, वह भी रोज।
पुजारी ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘मेरी बच्ची, मैं तुम्हें कई दिनों से देख रहा हूं कि तुम यहां नियमित आती है। तुम क्या करती हो?’ बच्ची तपाक से बोली, ‘मैं प्रार्थना करती हूं।’ पुजारी ने शंका के साथ पूछा, ‘तुम्हें कोई प्रार्थना आती है?’ बच्ची बोली, ‘नहीं’। पुजारी मुस्कुराते हुए बोला, ‘तो फिर आंख बंदकर क्या बोलती हो?’
बच्ची ने मासूमियत से जवाब दिया, ‘मैं कोई प्रार्थना नहीं जानती लेकिन मुझे अ, आ, इ, ई… और क, ख, ग, घ… पूरे आते हैं। मैं इन्हें ही पांच बार दोहराकर भगवान से कहती हूं कि मुझे प्रार्थना नहीं आती, लेकिन कोई भी प्रार्थना इन बारह खड़ी और वर्णमाला से बाहर तो नहीं होगी। इन अक्षरों को अपनी इच्छा अनुसार जमा लें और यही मेरी प्रार्थना है।’ इतना कहकर वह चली गई। पुजारी अवाक रह गया और तब तक उसे देखता रहा, जब तक वह ओझल नहीं हो गई।
मुझे यह कहानी अक्सर याद आती है, जब भी मेरे मामा मुझसे कुछ करने कहते हैं। वे मेरी मां के बाद दूसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिनपर मुझे ‘बेशर्त भरोसा’ है। मैंने कभी उनके फैसलों पर सवाल नहीं उठाया। हाल ही में 84 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने निवास स्थान से 700 किमी दूर पारिवारिक आयोजन में शामिल होने की इच्छा जाहिर की। मैंने सवाल नहीं किया कि वे कोविड के दौर में जोखिम क्यों उठा रहे हैं। मैंने उनकी इच्छा पूरी करने का फैसला लिया। मैंने पहले मुंबई से चेन्नई का करीब 1200 किमी का सफर किया, फिर आयोजन का हिस्सा बनने के लिए उनके साथ 700 किमी दूर और गया। चूंकि उनके बच्चे विदेश में रहते हैं, इसलिए वे क्वारेंटाइन के नियमों का पालन किए बिना नहीं आ सकते, इसलिए मामा ने मुझसे मदद मांगी, जो मैंने बिना सवाल किए की। पिछले हफ्ते आपने दक्षिण की इसी यात्रा से निकले 6 लेख पढ़े होंगे।
बच्ची की कहानी मुझे एक और कारण से याद आई। कई बार मेरी खिड़की के बाहर आकर कौवा खाना पाने के लिए कांव-कांव करता रहता है। कई बार उम्मीद से ज्यादा देर तक भी। मेरे लिए यही बेशर्त भरोसा है। यही विश्वास मुझे आवारा कुत्तों में दिखता है, जब मैं मॉर्निंग वॉक पर जाता हूं। जिस दिन बारिश होती है, उस दिन भी ये कुत्ते इस विश्वास के साथ गेट पर मेरा इंजतार करते हैं कि मैं आकर उन्हें च्यूइंग स्टिक्स दूंगा, एक ऐसी लग्जरी जो इन्हें सड़क पर नहीं मिल सकती।
फंडा यह है कि हर किसी की जिंदगी में ऐसा भरोसा होना चाहिए जो बेशर्त हो और जिसपर सवाल न उठाया जाए। यह आपको पता करना होगा कि यह क्या और किसके साथ हो।