दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
जॉब इंटरव्यू में ज्ञान आपके कॉलेज प्रोजेक्ट पर निर्भर है!
March 5, 2021
जॉब इंटरव्यू में ज्ञान आपके कॉलेज प्रोजेक्ट पर निर्भर है!
600 से ज्यादा सालों तक पुरातत्वविद मानते रहे कि उष्णकटिबंधीय कपास के पौधे दक्षिणपूर्व अरब से आए। उन्होंने यहां तक निष्कर्ष निकाला कि ओमान प्राचीन अरब कपास व्यापार का स्रोत था। पर 2021 में पेरिस में प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय के वैज्ञानिकों ने पाया कि अरब क्षेत्र में सबसे पहले कपास भारत से आया। नेचर जर्नल ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित पत्र में कहा गया कि पहली शताब्दी सीई में एक अलेक्जेंड्रियन नाविक द्वारा व्यापारियों के लिए संकलित ग्रीक हैंडबुक में ओज़िन(मध्य प्रदेश), मसलिया (आंध्र प्रदेश) और अब्रिया (ओज़िन से नजदीक, जो अब महाराष्ट्र में हो सकता है) ऐसी जगहों के रूप में िचन्हित की गईं, जहां कपास का उत्पादन होता था।
यह विषय मैंने 1980 में अपने कॉलेज के दिनों में प्रोजेक्ट के रूप में चुना था। मेरा प्रोजेक्ट इस बात के इर्द-गिर्द था कि अंग्रेजों ने क्यों कपास उत्पादक क्षेत्रों में एक ब्रॉड गेज (चौड़ी लाइन) रेलवे लाइन का निर्माण किया? और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि चूंकि मेनचेस्टर के कारखाने कपास की कमी से जूझ रहे थे इसलिए अंग्रेज इस क्षेत्र से कपास बॉम्बे बंदरगाह ले जाना चाहते थे और वहां से मेनचेस्टर के कारखाने, ताकि कच्चे माल की कमी के कारण तनाव न फैले। चूंकि हर ब्रॉड गेज बोगी मीटर की तुलना में ज्यादा कपास की गांठें (21 टन) ले जा सकती थी वहीं नैरो गेज कम ले जा सकती थी(लगभग 18 टन)। इन तथ्यों को खोजने के लिए उस समय कोई गूगल नहीं था इसलिए मुझे प्रोजेक्ट के दौरान कई पेशेवर लोगों से मिलना पड़ा।
मेरी जिंदगी के पहले साक्षात्कार में एचआर मैनेजर ने साधारण-सा सवाल किया, जो कि आज भी कई मैनेजर्स पूछते हैं। रिज्यूम को देखते हुए वे आमतौर पर पूछते हैं ‘अपने बारे में कुछ बताइए।’ और मैंने उपरोक्त प्रोजेक्ट के बारे में बताना शुरू कर दिया। मैंने यह कहते हुए शुरुआत की, ‘सर हममें से कितने लोगों को वाकई पता होगा कि 1877 में ‘साप्ताहिक कपास टेलीग्राम’ जैसी कोई चीज होती थी?’ उन्होंने जिज्ञासावश चेहरा घुमाया और पूछा ‘ये क्या है?’ और मैं बताने लगा कि ‘1877 में बॉम्बे चैंबर ऑफ कॉमर्स ने तत्कालीन हैदाराबाद आयोग के साथ मिलकर एक व्यवस्था बनाई कि संबंधित जिले कपास की फसलों की स्थिति पर साप्ताहिक टेलीग्राम भेजें।’ उसके बाद ये टेलीग्राम मुद्रित होते और सदस्यों व लोगों की जानकारी के लिए वितरित होते थे, ये व्यापारिक समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ। तब मैंने ये बताया कि कैसे अमेरिका के कपास बीजों की गुणवत्ता हिंगणघाट, धोलेरा और अमरावती (सब महाराष्ट्र में हैं) धारवाड़ और बरूच के आसपास भी नहीं बैठती। और 1879-80 में कपास गुट ने सरकार और रेलवे कंपनियों को रेलवे लाइन के साथ कपास के इलाके जोड़ने के लिए मजबूर किया।
उसके बाद मेरा कभी भी साक्षात्कार नहीं हुआ। वह पूछने लगे कि अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के दौरान मैं किन-किन लोगों से मिला और अपने स्नातक के दिनों में ऐसे कितने प्रोजेक्ट्स किए। वह हमारी 30 मिनट की बातचीत थी जबकि दूसरों की बातचीत 5 मिनट से भी कम समय चली। बाद में मुझे कुछ मिनट इंतजार करने के लिए कहा गया और जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, उस तनख्वाह के साथ नियुक्ति पत्र मिला।
अगर आप गूगल से प्रोजेक्ट कट-पेस्ट करने का शॉर्टकट अपनाते हैं तब उसे कॉलेज में जमा करने के बाद आप भूल जाएंगे। वहीं अगर अपने प्रोजेक्ट के लिए शोध में ठीकठाक समय लगाते हैं, तो सालों बाद आप उसमें विशेषज्ञ बन जाते हैं क्योंकि जैसे-जैसे कॅरिअर में आगे बढ़ते जाते हैं उस क्षेत्र में आप अपना ज्ञान जोड़ते जाते हैं।
फंडा यह है कि नौकरी के साक्षात्कार में आपका ज्ञान इस पर निर्भर करता है कि आप अपने कॉलेज प्रोजेक्ट्स कैसे करते हैं- क्या यह चार सालों की कड़ी मेहनत (इसे सजा कह सकते हैं) आपको 40 सालों का शानदार कॅरिअर देगी (इसे मजा कह सकते हैंं) या चार साल का मजा और चालीस साल की....?