दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
थोड़ा-बहुत कानूनी ज्ञान अधिकार जानने में मदद करता है
July 31, 2021
थोड़ा-बहुत कानूनी ज्ञान अधिकार जानने में मदद करता है
आमतौर पर समाज के विभिन्न वर्ग और समूह मानते हैं कि कानूनी शिक्षा सिर्फ कानून के छात्रों के लिए है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आज आधारभूत कानूनी शिक्षा की जिंदगी में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है? किसी व्यक्ति को कानून का कुछ ज्ञान होना जरूरी है, वर्ना वह उपभोक्ता सरंक्षण से लेकर मौलिक अधिकारों तक के मामले में प्रभावित हो सकता है।
रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर टू-व्हीलर पार्किंग का उदाहरण देखें। जब आप गाड़ी को हुआ नुकसान पार्किंग ठेकेदार को दिखाते हैं तो वह आपको बोर्ड बताता है, जिसपर लिखा होता है, ‘गाड़ी को हुए किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी ठेकेदार की नहीं होगी।’ यही बोर्ड दिखाकर ठेकेदार गाड़ी चोरी होने पर भी अपनी जिम्मेदारी से भाग जाते हैं। है न? तो देखिए दक्षिण पूर्वी रेलवे (दपूरे) की बेंगलुरु डिवीजन में बतौर चीफ लॉ असिस्टेंट कार्यरत सीके प्रसन्न कुमार (61) ने क्या किया। उन्होंने दो साल लड़कर ऐसे लोगों के खिलाफ जीत हासिल की। घटनाक्रम कुछ यूं हुआ।
वे 100 रुपए प्रतिमाह फीस चुकाकर अपनी मोटरसाइकिल डिविजनल रेलवे मैनेजर के ऑफिस के पास, व्हीकल स्टैंड में खड़ी करते थे। उन्होंने 21 फरवरी 2017 को वहीं गाड़ी खड़ी की और दो दिन बाद लौटकर देखा कि गाड़ी गायब थी। पैसे लेने वाले केयरटेकर ने उचित प्रतिक्रिया नहीं दी। कुमार ने 1 मार्च 2017 को स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज की। उन्होंने पार्किंग केयरटेकर की लापरवाही और उसके द्वारा हर्जाना देने से इनकार करने की शिकायत रेलवे प्राधिकरण से भी की। जब उन्हें रेलवे से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो कुमार ने 21 फरवरी 2019 को बेंगलुरु के चतुर्थ अतिरिक्त जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से संपर्क किया और दपूरे, बेंगलुरु डिविजन के वरिष्ठ संभागीय वाणिज्य प्रबंधक और पार्किंग केयरटेकर के खिलाफ शिकायत की।
मुकदमे में रेलवे के वकील ने तर्क दिया कि रेलवे द्वारा दी गई पार्किंग सुविधा वैकल्पिक थी और रेलवे की ओर से अनिवार्य नहीं थी क्योंकि रेलवे मासिक पास जारी नहीं करता है। साथ ही वकील ने युक्तिपूर्वक तर्क दिया कि शिकायत में कोई भी सबूत नहीं है कि गाड़ी उस जगह से चोरी हुई।
दो साल और चार महीने तक होती रही सुनवाई इस हफ्ते खत्म हुई और फोरम के जजों ने माना कि गाड़ी पार्किंग से ही चोरी हुई और यह रेलवे तथा केयरटेकर की जिम्मेदारी है कि वे गाड़ी की देखरेख करें और सुरक्षित पार्किंग उपलब्ध कराएं। उन्होंने स्पष्ट कहा, ‘उनकी लापरवाही और सेवा में कमी के कारण शिकायतकर्ता ने गाड़ी खो दी।’
हालांकि रेलवे द्वारा नामांकित केयरटेकर ने मासिक पास पर लिखा था कि वह गाड़ी को होने वाले किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा, पर फोरम ने कहा कि उसमें कहीं भी यह नहीं लिखा था कि वे चोरी के लिए जिम्मेदार नहीं हैं!
इसलिए जजों ने फैसला सुनाया कि वरिष्ठ संभागीय वाणिज्य प्रबंधक और पार्किंग केयरटेकर आदेश के 45 दिनों के अंदर कुमार को 10 हजार रुपए हर्जाना और कोर्ट में खर्च हुए 5000 रुपए दें। कोर्ट ने आगे कहा कि मोटसाइकिल चोरी होने का हर्जाना शिकायतकर्ता को देने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह गाड़ी के बीमा में कवर हुआ होगा।
आपके आसपास की सभी अदालतों में ‘लीगल एड (सहायता) क्लीनिक’ होते हैं। अगर आपको शंका है कि आपके अधिकार का हनन हुआ या नहीं, तो इस जगह जाएं। वे जरूरी जानकारी देकर आपकी मदद करेंगे।
फंडा यह है कि थोड़ा-बहुत कानूनी ज्ञान हमेशा कानून के तहत मिले आपके अधिकारों की रक्षा करता है।