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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

देखिए 2021 कैसे ‘मदद’ शब्द को नए मायने दे रहा है

देखिए 2021 कैसे ‘मदद’ शब्द को नए मायने दे रहा है
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May 18, 2021

देखिए 2021 कैसे ‘मदद’ शब्द को नए मायने दे रहा है


आज मैं आपको साधारण मदद के किस्से से लेकर खोज के जरिए मदद की ऊंचाई तक के उदाहरण पर ले जाऊंगा।


आपने लोगों को चेन में विभिन्न लॉकेट पहने देखा होगा। लेकिन मुंबई में अंग्रेजी के शिक्षक दत्तात्रेय सावंत गले में काले धागे में ऑक्सीमीटर पहनते हैं। महामारी के कारण स्कूल की नौकरी में हुई वेतन कटौती के चलते उन्होंने ऑटो चलाना शुरू किया। एम्बुलेंस का खर्च उठाने में लाचार लोगों का दर्द देखकर दत्तात्रेय ने अपनी रोजी-रोटी के एकमात्र साधन ऑटो को 15 अप्रैल से एम्बुलेंस में बदल दिया। तब से उन्होंने कई बीमारों की मदद इमरजेंसी वार्ड पहुंचने में की है और सुनिश्चित किया है कि जिन्हें साप्ताहिक इलाज की जरूरत है, वे समय पर पहुंचें और जो ठीक हो गए हैं वे घर वापस पहुंच सकें। मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन उन्हें ईंधन के लिए पैसा दे रहा है।


शाहजहां (54) केरल के तिरुवनंतपुरम में ट्रैवल एजेंसी चलाते हैं। जब उन्हें पता चला कि एम्बुलेंस लोगों को लूट रही हैं, तो उन्होंने अपनी 17 सीटर टूरिस्ट वैन को एम्बुलेंस में बदल दिया। उनमें सीट की जगह स्ट्रेचर लगाए और साथ में ऑक्सीजन सिलेंडर समेत जरूरी मेडिकल सप्लाई लगाईं। हालांकि ट्रैवल इंडस्ट्री महामारी से बहुत प्रभावित हुई है, लेकिन शाहजहां ने कंवर्टेड एम्बुलेंस चलाने के लिए अपने ड्राइवरों को नौकरी पर बनाए रखा और सरकार को एम्बुलेंस मुफ्त उपलब्ध करवाईं।


अगर आपको लगता है कि उदारता हमेशा गरीब समुदाय से शुरू होती है, तो आपको डॉ सुनीलकुमार हेब्बी (38) की कहानी जाननी चाहिए जो मानते हैं कि अगर मरीज उनतक नहीं पहुंच सकता, तो उन्हें मरीज तक पहुंचना चाहिए। डॉ हेब्बी के पास एक कार है, जो इन दिनों मोबाइल क्लीनिक की तरह है। उसमें दवाएं हैं और ब्लड प्रेशर, ग्लूकोज स्तर नापने के उपकरण और ईसीजी मशीन तक है। कार होम आइसोलेशन में रह रहे जरूरतमंद के दरवाजे तक पहुंचती है और गरीबों तथा वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त सेवा उपलब्ध कराती है। वे उन्हें 14 दिन की दवाई के साथ 900 रुपए की मेडिकल किट देते हैं।


यहां तक कि टेक्नोलॉजी भी मदद शब्द को नए मायने दे रही है। जापान की ऑल निप्पोन एयरवेज द्वारा प्रायोजित ‘अवतार एक्सप्राइज’ एक चार वर्षीय वैश्विक प्रतियोगिता है, जो ऐसा सिस्टम विकसित करने पर केंद्रित है, जो इंसान के अहसासों, क्रियाकलापों को पहचानकर रियल टाइम में जानकारी कहीं दूर भेज सकता है। ये अवतार वास्तविक दुनिया की परिस्थिति में मदद कर सकते हैं।


इस प्रतिस्पर्धा में आईआईएससी, आर्टपार्क, टीसीएस रिसर्च और हैनसन रोबोटिक्स के समूह ‘अहम अवतार’ का प्रोजेक्ट सेमीफाइनल में पहुंचा है। इसमें एक करोड़ डॉलर का इनाम है। प्रोजेक्ट के वीडियो में टेली-ऑपरेडेट रोबोटिक नर्स ‘आशा’ मरीज से हाथ उठाने कहती है और इंफ्रारेड थर्मामीटर से तापमान लेती है। फिर मरीज को बताती है कि अब उसे बुखार नहीं है। इसके बाद वह पूछती है कि उसने मास्क क्यों नहीं पहना। मरीज को उदास देखकर चुटकुला सुनाने की पेशकश करती है। ह्यूमनॉइड रोबोटिक नर्स पूछती है, ‘आप उदास लग रहे हैं, चुटकुला सुनना चाहेंगे?’ मरीज हां कहता है तो आशा पूछती है, ‘बिना दीवार वाले रूम को क्या कहते हैं?’ और जब इंसान कहता है कि उसे नहीं पता, तो आशा जवाब देती है, ‘मशरूम!’, जिसपर मरीज उसकी सराहना करता है।


फंडा यह है कि मुझे गर्व है कि हम बतौर मानव जाति, गरीब से अमीर तक, बुद्धिमान से शिक्षित तक, सभी मदद शब्द को नए मायने दे रहे हैं।

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