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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

देने के लिए दिया या दिखावे के लिए

देने के लिए दिया या दिखावे के लिए
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Sep 10, 2021

देने के लिए दिया या दिखावे के लिए?


इस मंगलवार मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि जिन बच्चों को वोट देने का अधिकार नहीं है, उनकी स्कूली किताबों या बैग पर सार्वजनिक ओहदे वाले व्यक्तियों की तस्वीर, भले ही वह मुख्यमंत्री क्यों न हो, बहुत ‘घृणित’ है। स्कूलबैग पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की तस्वीर पर फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा, ‘किसी राजनेता के निजी हितों के लिए फोटो छापने में जनता के पैसे का दुरुपयोग नहीं हो सकता। सरकार सुनिश्चित करे कि भविष्य में ऐसा न हो।’ साथ ही उसने मौजूदा डीएमके सरकार की सराहना की, जिसने एआईएडीएमके की पिछली सरकार द्वारा छापी गईं तस्वीरें मिटाने पर पैसा न खर्च करने का फैसला लिया है।


चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस पीडी औडीकेसावालु की पहली बेंच ने उस याचिका पर यह कहा, जिसमें मांग की गई थी कि सरकार को स्टॉक में पड़ीं, पिछले मुख्यमंत्रियों की तस्वीर वाली पाठ्यपुस्तकें, क्रेयॉन, कलर पेंसिल और स्कूलबैग जैसी अन्य स्टेशनरी सामग्री इस्तेमाल करने का निर्देश दिया जाए। एडवोकेट जनरल आर शुनमुगासुंदरम की दलीलों को दर्ज करते हुए न्यायधीशों ने कहा, ‘सरकार की तरफ से कहा गया है कि मुख्यमंत्री भविष्य में ऐसी सामग्रियों पर अपनी तस्वीरें छापने की इच्छा नहीं रखते।’


यह खबर पढ़ते हुए मेरा ध्यान एक खूबसूरत उपहार, बिना तस्वीर वाले, उच्च गुणवत्ता के फोटो फ्रेम पर गया, जो मुख्य हॉल में रखा था। शायद वर्षों बाद मैं मुझे मिले किसी उपहार का इस्तेमाल कर रहा था। वास्तव में मेरे पास उस फ्रेम के लायक तस्वीर नहीं है। इस रविवार को मैंने बेटी से कहा कि हमें एक अच्छी फोटो खिंचवाना चाहिए, जो फ्रेम में आ पाए। मैं महज ब्रांडेड होने के कारण उसका इस्तेमाल नहीं कर रहा हूं। दरअसल इसे देने वाले, मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई हॉस्पिटल के प्रबंधन ने फ्रेम के पीछे उनका नाम लिखा था, उसके ऊपर नहीं। उस जगह रखा दूसरा गिफ्ट भी 2012 में मिला उपहार ही है, जिसे भोपाल में संस्कार वैली स्कूल ने दिया था और उसपर भी फ्रेम के ऊपर नाम नहीं था।


मुझे याद आया कि मेरे पास चार डिब्बे भरकर उपहार में मिले मीमेंटो (यादगार निशानी) हैं, जो मुझे विभिन्न संगठनों ने पिछले 10 वर्षो में दिए, जहां मैं मेहमान बनकर गया। मैंने उन्हें डिब्बों में रखा क्योंकि उनकी क्वालिटी तो अच्छी है, लेकिन देने वाले का नाम मीमेंटो के ऊपर, बिल्कुल सामने लिखा है। इसलिए मैंने उनमें से कुछ गांव के गरीब स्कूलों को दे दिए, जो बच्चों को पढ़ाई या खेल गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए उनके पास पैसे नहीं होते। मैंने उनसे निवेदन भी किया कि वे मीमेंटो पर लिखे नामों को मिटाने पर पैसा खर्च न करें, बल्कि उसमें अपना नाम जोड़कर, देने वाले को स्पॉन्सर बना दें, जिससे बच्चों को महसूस हो कि उन्हें स्कूल की ओर से पुरस्कार मिला है। उन्हें ये मीमेंटो देते समय एक स्कूल बच्चों को नैतिक कहानी सुनाता है, ‘हमें किसी और का नाम मिटाने या छोटा करने में अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपने नाम को बेहतर या बड़ा बनाने की कोशिश करनी चाहिए।’ इस तरह से देने वाला का गौरव बढ़ेगा और लेने वाले को भी न सिर्फ उनपर, बल्कि स्कूल पर भी गर्व होगा जो नैतिकता को महत्वपूर्ण गुण मानता है।


फंडा यह है कि अगर आप किसी को कुछ देना चाहते हैं, तो सुनिश्चित करें कि आपका या कंपनी का नाम ऐसी जगह लिखा हो, जहां सीधे नजर न आए। साथ ही चीजें दोबारा इस्तेमाल करने का श्रीगणेश भी करें।

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