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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

पहचानें की अगली पीढ़ी हमसे क्या चाहती है

पहचानें की अगली पीढ़ी हमसे क्या चाहती है
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April 6, 2021

पहचानें की अगली पीढ़ी हमसे क्या चाहती है


इस हफ्ते यात्रा के दौरान मुझे युवाओं का एक साझा गुण पता चला। वे सभी अपने जीवन की गुणवत्ता, साफ-सुथरी दुनिया और अविकसित जगहों के विकास की बातें कर रहे हैं या इसके लिए आवाज उठा रहे हैं।


नए विचारों वाले इन लोगों के बीच दो लोगों, पंजाब के अक्षय सिंह और उप्र की दीक्षा सिंह ने मेरा ध्यान खींचा। अक्षय पंजाब में औद्योगिक विकास से हो रहे प्रदूषण के खिलाफ लड़ रहे हैं। वहीं दीक्षा जौनपुर जिले के बक्सा विकासखंड में जिला पंचायत चुनाव लड़ेंगी क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका जन्मस्थान अब भी विकास से दूर है। मतदान 15 अप्रैल को होगा।


अक्षय महज 18 साल के हैं। दिल्ली के ‘लेट मी ब्रीद’ नाम के संगठन ने फरवरी-मार्च 2021 में प्रतियोगिता आयोजित की थी, जिसमें प्रतिभागियों को वायु प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन के बीच रहने की कहानियां बतानी थीं। इस ‘द क्लीन एयर पंजाब’ प्रतियोगिता का उद्देश्य दूषित हवा में सांस लेने से हो रही मौतों की समस्या को संबोधित करना था। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2019 के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण पंजाब में एक साल में 41,090 मौतें हुईं।


नौवीं कक्षा से ही अक्षय कई परियोजनाओं का हिस्सा रहे, जिनमें वॉकैथन, पौधारोपण अभियान और स्कूल में ऑनलाइन चैलेंज व सार्वजनिक कार्यक्रम शामिल थे। वे प्रदूषण के बारे में जानकारी देने वाले प्लेटफॉर्म ‘साफ़सांस’ के प्रमुख भी हैं। इस युवक का वैश्विक समस्या से जुड़ने का कारण यह भी था कि दिल्ली में उनके भाई को अस्थमा था और उन्होंने उसे सांस लेने में संघर्ष करते तथा अक्सर नैबुलाइज होते देखा था।


प्रतियोगिता में अक्षय के तीन-मिनट के वीडियो की काल्पनिक शुरुआत होती है, जिसमें उनकी बहन सांस लेने में संघर्ष करती दिखती है। लेकिन बाकी वीडियो में कठोर तथ्य और आंकड़े हैं। अक्षय साबित करने की कोशिश करते हैं कि औद्योगिक संस्थानों और निर्माण स्थलों के कारण प्रदूषण होता है, न कि पराली जलाने से, जैसा लोग मानते हैं। उनके वीडियो को पिछले हफ्ते प्रतियोगिता में पहला स्थान मिला।


प्रदूषण मुद्दे से दूर, सात लाख उम्मीदवारों वाले दुनिया के सबसे बड़े चुनाव, उप्र के पंचायत चुनाव में दीक्षा ग्लैमर का तड़का लगाएंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि दीक्षा 2015 में फेमिना मिस इंडिया के 21 फाइनलिस्ट में शामिल थीं और इससे जुड़े ‘मिस बॉडी ब्यूटीफुल’ प्रतियोगिता की विजेता थीं। हालांकि वे बहुत पहले गांव से मुंबई चली गई थीं। वे अपने गांव को ‘मदर इंडिया’ और ‘पूरब और पश्चिम’ जैसी फिल्मों के दृश्यों से जोड़ती हैं, जहां गरीबी और कष्ट हैं। वे महिलाओं की सीमाओं में बंधी जिंदगी बदलना चाहती हैं और नहीं चाहतीं कि बच्चे अपने सपने त्याग दें। दीक्षा सोचती हैं कि अगर वे ऐसी सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग ले सकती हैं, तो गांव के बच्चे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा क्यों नहीं कर सकते।


अक्षय और दीक्षा उस उभरती नई पीढ़ी का छोटा-सा हिस्सा हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में कुछ बदलाव लाना चाहती है और दूसरों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए जीना चाहती है। आपको पसंद हो या न हो, हमारे बच्चे भौतिक चीजें पाने के पक्ष में नहीं हैं, जैसा हमने साल-दर-साल चीजें खरीदकर किया है। हैरान मत होइएगा, अगर आपके बच्चे अचानक कहें कि वे किसान बनना चाहते हैं और एक संवहनीय स्वच्छ और हरित जिंदगी जीना चाहते हैं।


फंडा यह है कि यह समझने की कोशिश करें कि अगली पीढ़ी हमसे क्या चाहती है क्योंकि यही दुनिया की नई रीत है और उनकी इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद करें।

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