दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
पारिवारिक बातचीत में म्यूट बटन नहीं होता


March 11, 2021
पारिवारिक बातचीत में म्यूट बटन नहीं होता
‘मम्मी, स्कूल जाना तो अच्छा है लेकिन जब टीचर बहुत बोलती हैं तो मुझे उन्हें म्यूट करने की सुविधा नहीं मिलती!’ मंगलवार दोपहर को यह मजेदार बात मेरे 12 वर्षीय भांजा अर्जुन ने स्कूल से लौटकर कही। टोरंटो, कनाडा में उसका स्कूल दो हफ्ते पहले ही खुला है।
उसकी मां ने जब यह बात हमारे फैमिली वॉट्सएप ग्रुप में पोस्ट की, तो सभी बहुत हंसे। लेकिन मेरा मन इसे लेकर चिंतित हो गया कि बच्चा अपने शिक्षक से कितना कट सकता है और किसी को भी म्यूट करने की नई आजादी उसे कितनी पसंद आ रही है।
आपको भी ऐसा ही अहसास होगा अगर आप महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की पहल वन-स्टॉप सेंटर (ओएससी) से जुड़े विशेषज्ञों के अवलोकनों को देखेंगे। यह सेंटर एक ही छत के नीचे पुलिस सुविधा, मेडिकल सहायता, मानसिक-सामाजिक परामर्श और कानूनी परामर्श जैसी विभिन्न सेवाएं देता है।
ओएससी ने पाया कि पढ़े-लिखे और संपन्न माता-पिता के घरों में भी बच्चों के साथ संवाद बहुत कम होता है, जिससे परिवार में बहुत अलगाव पैदा हो रहा है। वर्ना आप उस 13 वर्षीय लड़की के बारे में क्या कहेंगे, जो यात्रा पर प्रतिबंधों के बावजूद गोवा के अपने घर से भाग निकली और बॉयफ्रेंड से मिलने माता-पिता की कार से कर्नाटक पहुंच गई, जिससे वह इंस्टाग्राम पर मिली थी। दिलचस्प यह है कि गोवा पुलिस को कर्नाटक से उसे लाने के लिए सीमा पार करने की अनुमति लेनी पड़ी। यह इकलौता मामला नहीं है। ओएससी गोवा के बैम्बोलिन चैप्टर में हर महीने 5-6 मामले ऐसे आते हैं, जहां परेशान माता-पिता अपने लापता बच्चे की शिकायत पुलिस में दर्ज कराते हैं। और ज्यादातर माता-पिता शिकायत करते हैं कि बच्चे उनकी बात नहीं सुनते।
चूंकि सुनना ज्ञान संबंधी व्यवहार है और बच्चे ज्ञानी नहीं होते, इसलिए विशेषज्ञ खुद को सुधारने की सलाह देते हैं। इसमें पांच शीर्ष सुझाव हैं:
1. स्थिति के मुताबिक उम्मीद रखें: बच्चे को सुबह ब्रश करने के लिए भेजना आसान हो सकता है, लेकिन रात में उन्हें मदद की जरूरत हो सकती है।
2. कम शब्दों का इस्तेमाल: जब किसी बड़े बच्चे से कुछ कहें तो यथासंभव कम शब्द इस्तेमाल करें। ‘कृपया अपने जूते ढूंढो, ताकि हम कार में बैठकर समय से स्कूल पहुंच पाएं’ की तुलना में ‘अपने जूते ढूंढो’ ज्यादा असरदार है।
3. उनकी भावनाओं को पहचानें: उन्हें बताएं कि आप उनकी भावनाएं समझते हैं। उनसे कहें, ‘मैं जानता हूं तुम निराश हो कि हमें अब जाना पड़ रहा है, जबकि तुम्हें बहुत मजा आ रहा है।’ उन्हें बताएं कि आप जानते हैं कि उनके लिए कुछ जरूरी है और आप उनके साथ समानुभूति रखते हैं।
4. बच्चों को फटकारें नहीं: कुछ माता-पिता कभी चुप नहीं रहते। वे बच्चों को बोलने का मौका ही नहीं देते और बच्चा भी आपकी नहीं सुनता, जब आप लगातार बोलते हैं। इसकी जगह, आप जो भी कहना चाहते हैं, उसे 10 सेकंड से कम समय में कहें, वर्ना आप अपना समय बर्बाद करेंगे।
5. कभी नकारात्मक शब्द इस्तेमाल न करें: माता-पिता अक्सर अपने वाक्यों की शुरुआत ‘तुम’, ‘यदि’, ‘क्यों’ से करते हैं या ‘नहीं’, ‘मत करो’ और ‘नहीं कर सकते’ जैसे बड़े नकारात्मक शब्द इस्तेमाल करते हैं। ये शब्द बच्चे को सुनने से रोकते हैं। इनसे उसे लगता है कि आप उसके चरित्र पर हमला कर रहे हैं।
फंडा यह है कि आप ऑनलाइन हों या ऑफलाइन, पारिवारिक बातचीत में म्यूट बटन की कोई जगह नहीं है, मुख्यत: इसलिए क्योंकि गर्भनाल भले कट जाए, पर उसका संबंध कभी नहीं कट सकता।