top of page

   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

पेशेवर हो या निजी, हर रणनीति पर पहले प्रयोग करें

पेशेवर हो या निजी, हर रणनीति पर पहले प्रयोग करें
Bhaskar.png

Sep. 13, 2021

पेशेवर हो या निजी, हर रणनीति पर पहले प्रयोग करें


जब 1950 के दशक में मेरी मां, शादी के बाद पहली बार माता-पिता के घर गईं तो उनकी कुछ सहेलियां, जिनकी लगभग उसी समय शादी हुई थी, उनसे मिलने आईं। उनमें से ज्यादातर की शादी मेरे पिता की तरह शहरी लड़के से हुई थी। बस एक लड़की की शादी पिछड़े गांव के व्यक्ति से हुई थी।


उन्हें एक बड़ी घरेलू समस्या थी। उनकी सास दृष्टिहीन होने के बावजूद बहुत दखलअंदाजी करती थी। सास के पास अनाज की कोठरी की चाबी थी और वे लकड़ी के बक्से पर बैठती थीं, जिसमें परिवार के गहने और पैसे थे। उन दिनों, खासतौर पर गांव में, बहू भूखी होने पर खाना नहीं मांग सकती थी। इसे अनुचित व्यवहार मानते थे। बहू को महीनों चुपचाप अपने कमरे तक सीमित रहना होता था, जब तक कि वह घर में खुलकर घूमने से पहले वहां के माहौल से परिचित नहीं हो जाती।


ऐसी प्रथाएं दक्षिण भारत ही नहीं, बिहार में भी देखी जाती थीं। इसीलिए उन्हें दुल्हन का एक बक्सा दिया जाता था, जिसे पारंपरिक रूप से कलेवा कहते थे, जिसमें उनके निजी सामान के साथ मिठाइयां भी होती थीं। जब दुल्हन नए घर जाती थी तो उसके परिवार की महिलाएं, मां, मौसी, दादी मिलकर खाजा, कसक, न्यूरा और बुकिनी जैसी चीजें बनाती थीं जो पौष्टिक होने के साथ लंबे समय तक चलती हैं। इन्हें दुल्हन के कलेवा में रखते थे, जिसे वह भूख लगने पर खा सके।


दिलचस्प है कि मेरी मां की सहेली को डोसा पसंद थे लेकिन उन्हें दो से ज्यादा नहीं मिलते थे। जबकि वे ही पूरे परिवार के लिए डोसा बनाती थीं। दरअसल दृष्टिहीन सास तवे पर डोसे का घोल डालने से होने वाली आवाज से अंदाजा लगा लेती थीं कि कितने डोसे बने। तब युवा लड़कियों ने गांव के तीन और दृष्टिहीन लोगों की मदद से, सास से बचने के लिए एक प्रयोग किया। उन्हें पता चला कि तवे को स्टोव से एक मिनट के लिए उतार दो और फिर उसपर डोसे का घोल डालो तो आवाज नहीं आती। इस तरह वे सहेली 

की सास को झांसा देने में सफल रहीं।


मां द्वारा सुनाई गई यह घटना मुझे तब याद आई जब मैंने बेंगलुरु की द बीटल लीफ कंपनी (टीबीएलसी) के बारे में सुना। यह कंपनी पान को आधुनिक अंदाज में पेश कर रही है और इसे ज्यादा ग्राहकों के लिए सुलभ बना रही है। करीब 45 फ्लेवर में उपलब्ध उनके पानों में तंबाकू नहीं है और वे बिहार का मशहूर मघई पत्ता इस्तेमाल करते हैं। फ्लेवर में कॉफी, पाइनएप्पल, चेरी और आम आदि शामिल हैं। टीबीएलसी के पान तीन परत वाले (नाइट्रोजन) वैक्यूम पिलो पाऊच में आते हैं, जिन्हें डिब्बों में रखा जाता है, जो उपहार में देने या मिठाई के विकल्प के रूप में अच्छे हैं। इनमें प्रिजरवेटिव नहीं है और ऐसे पैक किए जाते हैं कि 95 घंटे तक ताजा रहें। ये पान फैलते भी नहीं हैं क्योंकि इनमें नारियल, मीठी जैली और चैरी आदि नहीं भरी हैं। इसीलिए इनका स्वाद लाजवाब है क्योंकि पान-प्रेमी इनके पत्ते का स्वाद ले पाते हैं। इसके फाउंडर प्रेम रहेजा ने 11 शहरों की यात्रा कर सैकड़ों पान चखे और फिर सही मिश्रण के साथ पान को स्वास्थ्यवर्धक मिठाई की तरह पेश किया। ये पान एफएसएसएआई से प्रमाणित हैं और इनमें 60 से भी कम किलोकैलोरी हैं। हर डिब्बे में 4 पान हैं, जिनकी कीमत ₹173 से ₹215 तक है।


फंडा यह है कि अपनी खुद की प्रयोगशाला बनाएं और जनता के सामने अपना उत्पाद लाने से पहले अपनी हर रणनीति का परीक्षण करें।

1_edited_edited.jpg

Be the Best Student

Build rock solid attitude with other life skills.

05/09/21 - 11/09/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - For all minors (below 18 Yrs)

Duration - 14hrs (120m per day)

Investment -  Rs. 2500/-

DSC_5320_edited.jpg

MBA

( Maximize Business Achievement )

in 5 Days

30/08/21 - 03/09/21

Free Introductory briefing session

Batch 1 - For all adults

Duration - 7.5hrs (90m per day)

Investment - Rs. 7500/-

041_edited.jpg

Goal Setting

A proven, step-by-step workshop for setting and achieving goals.

01/10/21 - 04/10/21

Two Batches

Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)

Batch 2 - Age group (13 to 18 Yrs)

Duration - 10hrs (60m per day)

Investment - Rs. 1300/-

bottom of page