दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
बिजनेस पर्यावरण के हित में फैसले ले रहे हैं
May 9, 2021
बिजनेस पर्यावरण के हित में फैसले ले रहे हैं
कई साल पहले की बात है। स्वर्गीय कल्पना चावला देर से घर लौटीं क्योंकि वे जूते सुधरवा रही थीं। उनके पिता ने उनकी बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाया, ‘जब $7 में नए जूते आ जाते हैं, तुमने सुधरवाने पर $12 क्यों खर्च किए’। कल्पना ने पिता से कहा, ‘अगर मैं आज नए जूते खरीदूंगी तो कल एक नया जानवर मारा जाएगा और यह जानवरों की दुनिया में मेरा योगदान होगा।’ यह सुनकर पिता भावुक हो गए और जानवरों के प्रति सहानुभूति के लिए कल्पना की पीठ थपथपाई। मुझे यह संवाद तब याद आया जब मैंने महामारी के बाद पर्यावरण हित में लिए जा रहे फैसलों के बारे में सुना। ये रहे कुछ उदाहरण।
‘इलेवन मेडिसन पार्क’ को दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित रेस्त्रां माना जाता था, जहां कैवियार (मछली के अंडे), फ्वा ग्रा (बत्तख का कलेजा), रोस्टेड बत्तख और मशहूर पोच्ड लॉब्स्टर (उबली झींगा मछली) डिश से आपका डिनर भव्य बन जाता था। अब जब यह दोबारा खुलने की तैयारी कर रहा है, इसके शेफ और मालिक डेनियल हम ने चौंकाने वाली घोषणा की, ‘जब रेस्त्रां अगले महीने खुलेगा तो इसके मैन्यू का स्वाद लेने की कीमत वही $335 (₹24,705) प्रति व्यक्ति रहेगी लेकिन खाना पौधों से बनेगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘हमारे जानवर संबंधी उत्पादन, समुद्रों के साथ हमारा व्यवहार तथा जितने जानवर हम खा रहे हैं हैं, यह संवहनीय नहीं है।’ इसका मतलब है कि न्यूयॉर्क का बेहतरीन रेस्त्रां शाकाहारी बन रहा है।
इस फैसले से हैरान न्यूयॉर्क रेस्त्रां उद्योग, शाकाहारी व्यंजनों की कीमत को देखते हुए इसपर बंट गया है कि यह चलेगा या नहीं। लेकिन डेनियल कहते हैं कि ‘लैवेंडर हनी-ग्लेज्ड डक’ या ‘बटर-पोच्ड लॉब्स्टर’ बनाने में उन्हें महारत है, लेकिन वैसा ही स्वादिष्ट कुछ और बनाना चुनौतीपूर्ण है। वे सहमत हैं कि 1998 में उन्हें पहचान दिलाने वाले व्यंजनों को बंद करना जोखिम भरा है।
एक और उदाहरण देखें। आइकिआ दुनिया का सबसे बड़ा फर्नीचर रिटेलर है, जिसकी ब्रांच हैदराबाद और मुंबई में भी हैं। उसने अमेरिका में फर्नीचर बाय बैक स्कीम शुरू की है, जो उसके बिजनेस नियमों से बिल्कुल विपरीत है। बुधवार को शुरू हुए ‘ग्रीन स्कीम’ प्रमोशन के तहत ग्राहक पुराना फर्नीचर लौटाकर, उसकी मूल कीमत की 50% राशि वाउचर के रूप में पा सकते हैं, जिसकी कोई एक्सपायरी डेट नहीं होगी और देश में कहीं भी इस्तेमाल कर सकेंगे। शर्त यह है कि उसमें स्क्रैच हों। वाउचर का मूल्य छोटी-मोटी खरोंच पर 40% और ज्यादा स्क्रैच पर 30% तक गिर सकता है। ग्राहक को ऑनलाइन एस्टीमेट मिल सकता है लेकिन अंतिम कीमत कर्मचारी द्वारा जांच के बाद तय होगी।
अगर आप सोचते हैं कि कंपनी का इतना प्रॉफिट मार्जिन होगा कि वे पुराने फर्नीचर फेंक देंगे, तो आप गलत हैं। उसकी योजना इन्हें स्टोर में ही ‘सर्कुलर हब’ एरिया में बेचने की है। वे इनपर लेबल लगाएंगे जिसपर लिखा होगा कि यह कब और कहां पहली बार खरीदा गया, कैसे इस्तेमाल हुआ और पिछले मालिक ने इसे वापस क्यों किया। एक सर्वे में उन्हें पता चला कि 35% लोगों को समृद्ध अतीत वाले ‘प्री-लव्ड’ (पहले पसंद किए जा चुके) उत्पाद खरीदना पसंद है। इसके अलावा इससे नए उत्पादों को खरीदने पर पर्यावरण पर पड़ने वाला असर भी कम होगा।
फंडा यह है कि बड़े बिजनेस, इंडस्ट्री को अस्त-व्यस्त करने वाले लेकिन पर्यावरण के हित वाले फैसले ले रहे हैं क्योंकि समय आ गया है कि सभी प्रकृति का सम्मान करें और भविष्य के लिए इसकी रक्षा करें।