दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
बुरे दौर में बिजनेस की सफलता के लिए संवाद जरूरी


April 5, 2021
बुरे दौर में बिजनेस की सफलता के लिए संवाद जरूरी
इस हफ्ते की कई यात्राओं और किसी भी राज्य में प्रवेश के लिए मुझे आरटीपीसीआर टेस्ट करवाना पड़ा। इस टेस्ट को सार्स कोविड-19 वायरस की वास्तविक समय में गुणात्मक पहचान करना कहा जाता है। एक यात्री को अपने राज्य से दूसरे राज्य में जाने के लिए निगेटिव रिपोर्ट जरूरी है। यह मुंबई एयरपोर्ट पर वापसी की यात्रा के दौरान भी जरूरी है, यानी जिस राज्य में गए हैं, वहां से लौटने से पहले भी टेस्ट कराना होगा। इस टेस्ट का नतीजा आने में 24 घंटे लगते हैं और यह व्यक्ति का सैंपल लेने के 72 घंटे तक ही वैध रहता है।
मैंने एक दिन पहले ही थायरोकेयर को फोन कर टेक्नीशियन को अगले दिन सुबह 8.30 बजे घर बुलाने का अपॉइंटमेंट ले लिया था। वहां से जवाब मिला कि तय समय पर टेक्नीशियन पहुंच जाएगा। मैं निश्चिंत हो गया, लेकिन यह बेफिक्री ज्यादा नहीं चली। स्वाब लेने के लिए टेक्नीशियन आया ही नहीं। मैं परेशान हो गया क्योंकि मेरी यात्रा तय हो चुकी थी और रिपोर्ट आने में 24 घंटे लगते हैं। किसी ने मेरे फोन का जवाब नहीं दिया और मैं ‘कॉल मी बैक फैसिलिटी’ पर मैसेज भेजता रहा। फिर 11.30 बजे में टेस्टिंग सेंटर खोजने निकला। मुझे मेट्रोपोलिस का सेंटर मिला जिसपर बेहिसाब भीड़ थी। ऐसा इसलिए क्योंकि बिजनेस के लिए घरेलू यात्रा बढ़ रही है और हर किसी को सर्टिफिकेट चाहिए क्योंकि यह अनिवार्य है।
मेट्रोपोसिल में भीड़ संभालने की व्यवस्था बदहाल थी। बुखार वाले लोग, कोविड की आशंका वाले मरीज और जिन्हें यात्रा के लिए सर्टिफिकेट की जरूरत है, सभी एक ही लाइन में, 40 डिग्री तापमान में खड़े थे। मेरा नंबर 154 था और हैरानी की बात थी कि अस्पताल के सिक्योरिटी वाले केबिन को स्वाब लेने का सेंटर बनाया गया था।
सिक्योरिटी केबिन में केवल टेस्ट लेने वाले और स्वाब देने वाले व्यक्ति के कुर्सी पर बैठने की जगह थी। स्वाब लेने वाला पैसे ले रहा था, कार्ड स्वाइप कर रहा था, लॉगबुक में एंट्री कर रहा था और स्वाब पर चिपकाने के लिए पर्चियां भी बना रहा था। स्वाब तो 30 सेकंड में ले लिया, बाकी प्रक्रिया में तीन मिनट लग रहे थे। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि गर्मी में लोगों को कितने घंटे खड़े रहना पड़ रहा था, जबकि मेरे पीछे भी कई लोग थे।
मैंने वहां पानी भी नहीं पीया क्योंकि मुझे मास्क हटाने पर वायरस का डर था। मैं थका-हारा, प्यासा 4 बजे घर पहुंचा। तब थायरोकेयर वालों ने माफी मांगी कि मुंबई में बढ़ते मामलों के कारण टेक्नीशियन की कमी थी। चूंकि मुंबई में रोजाना 49,000-52,000 तक सैंपल लिए जा रहे हैं, इसलिए यह संकट समझा जा सकता है। वास्तव में कुछ परिवारों को उनके कोविड की स्थिति पांच दिन बाद पता चल रही है। लेकिन मेरी नाराजगी यह थी कि कॉल सेंटर पर कोई जवाब देने वाला भी नहीं था। बस ऑटोमेडेट आंसरिंग मशीन ग्राहक से फिर संपर्क करने का वादा कर रही थी, जो कभी नहीं हुआ। इससे इंतजार कर रहे मरीजों का तनाव बढ़ ही रहा है।
अब तथ्य समझें। प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और हर कोई समान सुविधा, समान कीमत पर कहीं भी देने को तैयार है। होम डिलिवरी अब बिक्री में आकर्षण का कारण नहीं रही। हमारी सेवाएं तभी अलग साबित होंगी और ग्राहकों को संतुष्टि मिलेगी, जब ग्राहक के सवालों का जवाब देकर, उसकी चिंता कम करने का भरसक प्रयास होगा, खासतौर पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में। इसकी कोविड के दौर में महत्वपूर्ण भूमिका है।
फंडा यह है कि ऐसे बुरे दौर में भरोसेमंद संवाद के जरिए ग्राहक की संतुष्टि किसी भी बिजनेस के लिए बहुत जरूरी है।

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