दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
भविष्य की तैयारी करना ही असली स्वतंत्रता है


Aug 15, 2021
भविष्य की तैयारी करना ही असली स्वतंत्रता है!
भारतीय गांवों की कहानियां मुझे हमेशा प्रेरित करती हैं। बड़े शहरों की तकनीकी प्रगति व सम्पन्नता से लगातार संघर्ष के बावजूद वे न सिर्फ अपने बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करते हैं, बल्कि जब बात कॅरिअर में उन्नति की हो तो शहरी बच्चों को मात देने के लिए उन्हें प्रशिक्षित भी करते हैं।
आज अपनी छुटि्टयों के दूसरे दिन मैं आपको उन स्मार्ट शॉर्टकट के बारे में बताने जा रहा हूं जो आप और मैं, अपनी कॉन्वेंट शिक्षा और दुनिया से संपर्क के बावजूद सोच भी नहीं सकते।
स्थानीय सरकारी कर्मचारी कुछ अतिरिक्त कमा ले इसके लिए वहां कई गावों में महज एक या दो टाइपराइटर के साथ शॉर्टहैंड और टाइपराइटिंग संस्थान थे। वह उन कर्मचारियों में से होता जो शायद ही कभी अपने ऑफिस में काम करता पर दूसरों से काम करवाने की क्षमता रखता। गांव वालों में अधिकांश का सरकारी कागजात हासिल करने में बुरा अनुभव रहा होगा, लेकिन पढ़े-लिखे गांव वाले हमेशा अपने बच्चों को इस संस्थान में भेजते। उन दिनों सरकारी संस्थाओं में स्टेनोग्राफर-टाइपिस्ट लोगों का हमेशा जमावड़ा हुआ करता था। इंस्टीट्यूट का मालिक दफ्तर का काम अपनी संस्था में ले आता और छात्रों से काम कराकर ऐसे सौंपता, जैसे वो उसने खुद किया हो। पर इस प्रक्रिया में टाइपिंग और स्टेनोग्राफी सीखने के इच्छुक छात्र सरकारी दस्तावेज तैयार करने की प्रक्रिया में महारती बन गए। चूंकि 1950 में सिर्फ सरकार ही इकलौती नौकरी देने वाली थी, बच्चों को शुरुआती स्तर की नौकरी के लिए तैयार करने का ये एक तरीका था और ये कोई भी हासिल कर सकता था चाहे ग्रैजुएट न हो या अधूरा छोड़ दिया हो।
इसके अलावा, शॉर्टहैंड के अभ्यास के लिए नोटबुक पर शुरुआती खर्च ज्यादा हो सकता था। पर ऐसे बच्चे जब कॉलेज जाते तो उन्हें किसी अतिरिक्त नोटबुक की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वे सारे लैक्चर भी ऐसी भाषा में नोट करते कि प्रोफेसर तक समझ नहीं सकते, जाहिर तौर पर वह शॉर्टहैंड थी।
कॅरिअर के मोर्चे पर जो लोग अपने बॉस के चंद शब्दों को समझकर उन्हें दोषारोपण करने वाली अंग्रेजी के लंबे-चौड़े कम्युनिकेशन लैटर में बदल देते हैं, ऐसे लोगों को हमेशा नौकरी और बेहतर सरकारी पोस्टिंग मिलती है।
एक और दिलचस्प पहलू ये है कि पूर्व या वर्तमान सरकारी कर्मचारी के ये टाइपराइटिंग संस्थान सिखाते हैं कि एक ही कार्बन पेपर का जितना संभव हो, उतना ज्यादा और बार-बार प्रयोग कैसे करें। ये एक परोक्ष सीख है कि सरकारी संसाधनों की कैसे बचत की जाए। सरकारी संसाधनों का इस तरह सावधानीपूर्वक उपयोग गांव के इन बच्चों को सरकारी नौकरी में पदोन्नति से ऊंचे ओहदों पर पहुंचने में मदद करते हैं।
लंबी अवधि में बचत (कॉलेज के लिए नोटबुक खरीदना) करने का नजरिया व संसाधनों का आदर (कार्बन पेपर) गांवों के आर्थिक रूप से पिछड़े, लेकिन इंटेलिजेंट बच्चों में बचपन से ही सिखाया जाता है। इसके अलावा स्कूल जाने वाले सबसे छोटे बच्चों को शाम के तीन घंटे प्रवचन सुनने के लिए ले जाया जाता है, वो भी साल में छह महीने। प्रवचन के बाद आमतौर पर बच्चों से माता-पिता पूछते कि पिछली रात उन्होंने क्या सुना। अगर बच्चे गलती करते तो माता-पिता उन्हें सही करते। लिसनिंग स्किल विकसित करने के लिए ये अभ्यास महीनों, कई बार तो कुछ साल भी चलता। अभिभावकों को बच्चों के सिलेबस का ज्ञान नहीं होता, पर वे प्रवचन में जिक्र होने वाली पौराणिक कहानियों में अनुभवी होते। जब लिसनिंग स्किल बढ़ती है, तो नोटिंग स्किल की जरूरत नहीं होती। इस तरह के देसी प्रशिक्षण से गुजरने वाले बच्चे जीवन में आगे बढ़ते हैं।
आज बच्चे सरकारी नौकरी इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये सुरक्षित और स्थायी है। लेकिन जो बच्चे भविष्य के लिए तैयार होते हैं वे अपने आपको ऐसा बना लेते हैं कि उनके बिना काम न चले।
फंडा ये है कि भविष्य की तैयारी करना ही आर्थिक स्वतंत्रता का रास्ता है।