दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
महामारी से प्रभावित बच्चों को धैर्य से संभालें


May 16, 2021
महामारी से प्रभावित बच्चों को धैर्य से संभालें
अमेरिका की सिएटल स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन में ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर डॉ सुभाष हीरा कहते हैं कि भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के 41% बच्चों को सीखने के 60% कौशल औपचारिक शिक्षण, हस्तलिखित तंत्र और सहपाठियों व अन्य के साथ सामाजिक संवाद से मिलते हैं। लेकिन मार्च 2020 से देशभर में स्कूल-कॉलेज बंद हैं और अभी स्थिति सामान्य होती नहीं दिख रही।
ज्यादातर बच्चे भ्रमित है, जिससे चिढ़चिढ़ापन और चिंता बढ़ रही है और उनका सोशल मीडिया एक्सपोजर बढ़ रहा है, खासतौर पर किशोरों में। कुछ माता-पिता बच्चों को मौजूदा परिस्थिति समझाने में संघर्ष कर रहे हैं, जिससे माता-पिता में भी चिढ़ाचिढ़ापन बढ़ रहा है। संक्षेप में, बड़ी संख्या में बच्चे और माता-पिता हताश हो रहे हैं।
केवल पेरेंट्स ही नहीं, बालरोग विशेषज्ञ, बाल मनोचिकित्सक और व्यवहार विशेषज्ञ भी महामारी और घर में बंद रहने के बढ़ते समय के बच्चों पर असर को लेकर चिंतित हैं। दसवीं और बारहवीं जैसी स्कूल के अंत वाली कक्षाओं के अकादमिक रूप से होशियार बच्चे परीक्षाओं के मूल्यांकन को लेकर चिंतित हैं। इससे उनकी मानसिक सेहत प्रभावित हो रही है और उनके लिए लगातार संवाद जरूरी है।
संक्षेप में, बच्चे ठीक नहीं हैं और उनपर महामारी के लंबे समय तक रहने वाले असर को नजरअंदाज करना भयानक होगा। तो हम क्या करें? विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि पेरेंट्स घर पर दु:खद बातें न करें, बल्कि बच्चों को खुश रखने की कोशिश करें। बच्चों को डिवाइस में न उलझे रहने दें। स्मार्ट फोन को स्मार्ट टीवी से जोड़ें और टीवी के जरिए बातचीत होने दें। हमेशा पढ़ाई की चर्चा न करते रहें। बच्चों के लिए उपलब्ध रहें और समस्याओं पर चर्चा करने दें। तपाक से समाधान देने से बचें। बच्चों की बातें सुनें, उन्हें इसकी जरूरत है।
बदले हुए रूटीन, ऑनलाइन क्लास और मूल्यांकन विधि तथा स्कूल वापसी को लेकर अनिश्चितता के बावजूद कुछ छात्र अच्छा काम रहे हैं और कोविड से प्रभावित दुनिया की मदद कर रहे हैं। वुडस्टॉक स्कूल, मसूरी के छात्र रोहन जॉर्ज ने 50 हजार रुपए जुटाए और पड़ोस के गांवों और स्कूलों में राऊटर लगाने शुरू किए, ताकि छात्र अपने पाठ डाउनलोड कर सकें।
बीए द्वितीय वर्ष के चार छात्रों ने विभिन्न शहरों के लिए कोविड-19 संसाधनों की जानकारी देने वाली वेबसाइट बनाई, जिसमें बेंगलुरु, पुणे, दिल्ली, अहमदाबाद और मुंबई शामिल हैं। अश्विनी कट्टे राघवेंद्र, एन सिंधु, रेनिबि मुखिया और गीतिका नायर नियमित वेबसाइट अपडेट करते हैं और दिए गए स्रोत की जांच करते हैं। वेबसाइट पर हॉस्पिटल बेड, दवाएं, प्लाज्मा डोनर, ऑक्सीजन सिलेंडर और भोजन की डिलिवरी पाने संबंधी वेरिफाइड कॉन्टैक्ट, साइट और संगठनों की सूची है।
अगर आपको लगता है कि स्कूली छात्रों की तुलना में कॉलेज छात्र बेहतर सामाजिक कार्य कर सकते हैं तो 10वीं के दो छात्रों का उदाहरण देखें। बेंगलुरु के ग्रीनवुड हाई इंटरनेशनल स्कूल के छात्र स्नेहा राघवन और श्लोक अशोक ने दो लाख रुपए इकट्ठा कर वंचित परिवारों को 200 ऑक्सीमीटर दिए हैं। इनसे झोपड़-पट्टी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग डॉक्टरों की जगह नीम-हकीम के पास जाने से बचेंगे, जो उन्हें ठगने तैयार रहते हैं।
संक्षेप में, बच्चों को उनकी सुरक्षा से समझौता किए बिना, किसी सामाजिक कार्य में शामिल करें और देखें कि वे कितनी परिपक्वता से व्यवहार करते हैं।
फंडा यह है कि यह पैरेंटिंग के लिए मुश्किल वक्त है। अभी धैर्य और रचनात्मक के साथ बच्चों को कुछ जिम्मेदारी साझा करने के लिए प्रेरित करें। हमारे बच्चे हमसे होशियार हैं और वे जल्द ठीक हो जाएंगे।

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