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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

मानवीय रिश्तों को पैसों से नहीं तोल सकते

मानवीय रिश्तों को पैसों से नहीं तोल सकते
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May 6, 2021

मानवीय रिश्तों को पैसों से नहीं तोल सकते


दुनिया के सबसे अमीरों में शामिल बिल (65) और मेलिंडा गेट्स (56) ने सोमवार को कहा कि वे तलाक ले रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक के रूप में बिल द्वारा कमाई गई दौलत से दोनों ने परोपकार तथा जनस्वास्थ्य को दोबारा आकार दिया। दशकों से ये दंपती ‌विश्वमंच पर शक्तिशाली शख्सियत हैं। लेकिन उन्होंने मिलकर कहा, ‘हमें नहीं लगता कि हमारी जिंदगियों के अगले चरण में हम बतौर दंपती आगे बढ़ सकते हैं।’ अब तलाक के बाद संपत्ति के बंटवारे की बात होगी, लेकिन दशकों चलने वाली शादियां पैसों पर नहीं, आपसी सहयोग पर ही टिकी होती हैं।


इससे मैं सोचने लगा कि मेरे पड़ोसी द्वारा मुझपर किए गए छोटे-से एहसान की भी क्या कीमत होगी? मैं पड़ोसी द्वारा एक कप शक्कर देने या सुबह 4 बजे फ्लाइट पकड़ने के लिए आपको एयरपोर्ट छोड़ने या बाजार से लौटते हुए आपके बच्चों को स्कूल से लाने जैसे एहसानों की बात कर रहा हूं। और अंतत: जब आप किराये का घर खाली करते हैं तो यही पड़ोसी न सिर्फ सामान पैक करने में मदद करता है, बल्कि परिवार को दो-तीन दिन खाना भी खिलाता है क्योंकि सिलेंडर एजेंसी में सरेंडर हो चुका है।


आज दौर बदल गया है। शक्कर के लिए पड़ोसी का दरवाजा क्यों खटखटाएं, जब ऑनलाइन ऑर्डर करने पर शक्कर घंटेभर में दरवाजे पर आ जाएगी? पड़ोसी को परेशान क्यों करें, जब सामान पैक करने के लिए इतने मूवर्स-पैकर्स हैं? आज ऊबर किसी भी वक्त, कहीं भी छोड़ सकती है, पड़ोसी की नींद खराब क्यों करें? लेकिन इस लेन-देन वाली जीवनशैली से मानवीय आत्मीयता छिन गई है।


इससे मुझे मेरी नानी की याद आई। चौथी तक पढ़ाई होते ही उनकी शादी हो गई। उन्होंने पति की मामूली तनख्वाह में आठ बच्चे पाले। उन्होंने मुझे उस उम्र में अपने काम करवाने के तरीके सिखाए, जब मुझे समझ नहीं थी कि कब और क्यों ऐसा करना पड़ेगा। इससे मुझे जिंदगी में मदद मिली। वे कहती थीं कि किसी से अपने निवेदन पर हां कहलवाना और भरोसा बनाना कला है। घर की जरूरतों के लिए वे महीने के अंत में उधार लेतीं, लेकिन उसी तारीख पर लौटा देतीं, जिसका वादा करती थीं, भले ही उन्हें राम को चुकाने के लिए रावण से उधार लेना पड़े। उन्हें हमेशा पैसे मिल जाते थे क्योंकि लोगों को भरोसा था कि वे वापस कर देंगी। दूसरे तरीके ने उनकी इस छवि का बनाए रखने में मदद की। पैसा उधार लेने की लेन-देन वाली प्रकृति कम करने के लिए वे हमेशा गैर-नकदी सहायता करती थीं। वे खाना साझा करतीं, पड़ोसी के बाहर जाने पर उनके बच्चों की देखभाल करतीं और खुद के लिए सब्जियां-किराना खरीदते समय दूसरों के लिए भी खरीदतीं।

मुझे लगता है मानवीय संबंध छोटी-छोटी मदद मांगने और उन्हें पूरा करने के इर्द-गिर्द होते हैं, जिससे मजबूत समाज बनता है। हालांकि मैं अमेरिकी व्यक्तिवाद की सराहना करता हूं और खुद टैक्सी और पैकिंग सेवाएं इस्तेमाल करता हूं, लेकिन यह भी मानता हूं कि छोटी-छोटी मददों को भी लेन-देन में बदलने से इंसान अकेला और दु:खी रह जाता है। शायद हम दु:खी हैं क्योंकि हम पड़ोसी को परेशान नहीं करते! मुझे लगता है कि दशकों का वैवाहिक जीवन ऐसी कई छोटी-छोटी मददों से बंधा होता है और उसे पैसों से नहीं माप सकते।


फंडा यह है कि इंसान सामाजिक प्राणी हैं और संगठित समाजों में विकसित हुए हैं। अगर छोटे-छोटे एहसान इंसानों को ज्यादा खुश बनाकर, महान समाज खड़ा कर सकते हैं, तो ऐसा क्यों न किया जाए।

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