दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
यह असली ‘लॉकडाउन’ वाली जिंदगियों की मदद का वक्त


June 21, 2021
यह असली ‘लॉकडाउन’ वाली जिंदगियों की मदद का वक्त
पिछले हफ्ते जब मैं देश की बिरयानी राजधानी हैदराबाद गया था, मैंने देखा कि कैसे होटल चलाने वाले, वीडियो मीटिंग्स, लॉकडाउन बर्थडे और एनिवर्सरी डिनर को लेकर उत्साहित थे और विभिन्न पतों पर खाना भेज रहे थे। उन्होंने बहुत अच्छे से दम बिरयानी को उसी मिट्टी के बर्तन में पैक किया था, जिसमें दम दिया था और उसे सिंगल, फैमिली पैक और पार्टी पैक के रूप में भेज रहे थे। कोविड-19 की दूसरी लहर से प्रभावित होने के बाद वे मील मुझे बिजनेस मीटिंग तक में जश्न की तरह लग रहे थे, क्योकि इस साल मीटिंग भी मुश्किल रही हैं। मेरे सामने स्क्रीन पर विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम और काकिनाडा के लोग भी वही बिरयानी खा रहे थे जो मैं हैदराबाद में खा रहा था।
लंच पर मीटिंग में चर्चा का विषय था कि कैसे कोरोना ने 16 महीनों में हमें ‘मोबिलिटी-डिसेबल्ड’ (चलने-फिरने में असमर्थ) बना दिया। मेरे मन में विचार आया कि इस अस्थायी असमर्थता ने सामान्य लोगों को इतना परेशान किया तो उनकी स्थिति क्या होती होगी जो स्थायी दिव्यांग हैं।
इसीलिए मैं महाराष्ट्र में नासिक के केआरटी आर्ट्स, बीएच कॉमर्स एंड एएम साइंस (केटीएचएम) कॉलेज की सराहना करता हूं, जिसे अंगूर के शहर के बाहर कम ही जानते हैं लेकिन दिव्यांग छात्रों में 2006 से मुफ्त शिक्षा देने के लिए यह मशहूर है। इस जगह न सिर्फ सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ लोगों के लिए रैंप हैं, बल्कि जरूरतमंद छात्रों के लिए व्हीलचेयर, सफेद छड़ी, सुनने की मशीन आदि भी मिलती हैं। दृष्टिहीन छात्रों के लिए विशेष कम्प्यूटर लैब, ‘जॉज़’ जैसे स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर और ऐसा ऐप है जो ढेर सारा डेटा स्टोर कर छात्रों के लिए पढ़ता है। कॉलेज ने पढ़ने में मदद करने वाले सॉफ्टवेयर के लिए दक्षिण कोरियाई संगठन से अनुबंध किया है।
न सिर्फ वे उपकरण देते हैं, बल्कि छात्रों की विभिन्न स्रोतों से छात्रवृत्ति पाने में मदद भी करते हैं। जब तक छात्रों की नौकरी न लग जाए, वे देशभर के रिक्त पदों की जानकारी भेजते रहते हैं। कॉलेज पूर्व छात्रों के नेटवर्क के जरिए लगभग सभी दिव्यांग छात्रों को नौकरी दिला देता है।
वैभव पुराणिक का उदाहरण देखें जो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में डिप्टी मैनेजर हैं। जब उनके पिता गुजरे और मां की प्राइवेट सेक्टर की नौकरी चली गई तो उन्हें न सिर्फ मुफ्त शिक्षा दी गई, बल्कि उनकी मां को भी गैर-शिक्षण श्रेणी में नौकरी दी गई। कॉलेज ने दृष्टिहीन छात्रों के लिए स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर लगाया है, ऐसा शायद नासिक में पहली बार हुआ है। सीखते हुए कमाने की योजना के तहत कॉलेज ने वैभव को दिन में दो घंटे के लिए एक छात्र दिया था। वैभव के पास कम्प्यूटर नहीं था, इसलिए उसने कॉलेज में बैंक परीक्षा की तैयारी की। कॉलेज ने उन्हें आंतरिक परीक्षा बाद में देने की अनुमति दी क्योंकि उसकी तारीख बैंक की परीक्षा से टकरा रही थी। हैरानी नहीं कि वैभव और उन जैसे लोग कॉलेज के ताउम्र अहसानमंद हैं। फिलहाल कॉलेज सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है और यहां 11वीं कक्षा से पीएचडी तक के 119 दिव्यांग छात्र पढ़ रहे हैं।
हम निश्चितरूप से उनकी मदद करते रहें जिनकी जिंदगी मौजूदा हालातों से प्रभावित हुई है। लेकिन याद रखें कि यह अस्थायी है। कभी न कभी कोरोना जाएगा। उनके लिए भी अच्छा काम करते रहें, जिनकी जिंदगी में चहल-पहल स्थायी रूप से प्रभावित है यानी जिनकी जिंदगी में स्थायी लॉकडाउन है।
फंडा यह है कि सभी की संपूर्ण खुशी के लिए, हमें कुछ वास्तविक ‘लॉकडाउन’ वाली जिंदगियों में आनंद की चहल-पहल लानी होगी।

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