दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
यात्रा नहीं कर सकते, तो अपने सामाजिक दायरे को सींचें!


March 21, 2021
यात्रा नहीं कर सकते, तो अपने सामाजिक दायरे को सींचें!
आज रविवार को हम अपने पहले लॉकडाउन का एक साल पूरा कर रहे हैं, संयोग से वह भी जनता कर्फ्यू के रूप में रविवार को ही लगाया गया था। तबसे हमने छुटि्टयों पर जाने की जैसी योजना बनाई थी, असल में वैसा हो ही नहीं पाया। कितनी बार आपके और मेरे सूटकेस अटारी से उतारे और वापस ऊपर रखे गए? शायद, पहले के सालों की तुलना में कई बार। 2020 की गर्मियों की छुटि्टयां पूरी तरह बर्बाद हो जाने के बाद, उम्मीद बढ़ रही थी कि हम परिवार के साथ जल्दी ही अपनी सालाना यात्रा पर जा सकेंगे।
हालांकि मॉर्गन स्टेनली, जिसके विश्लेषकों ने 2021 की गर्मियों की छुटि्टयों पर भी संदेह जताया है, उसका संदेश है ‘अपने बैग अनपैक कर लेंं।’ इस गुरुवार को जारी रिपोर्ट कहती है, ‘नए मामले फिर से बढ़ रहे हैं, ऐसे में पर्यटन के लिए एक और गर्मियां स्वाहा होने का खतरा बढ़ गया है और निकट समय में पाबंदियों में ढील के कम ही आसार हैं।’
शोध का सार है कि पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था जैसे इटली-स्पेन पर फिर बुरा असर पड़ेगा। इसका मतलब है कि हमारे देश में गोवा-केरल जैसे पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था वाले राज्यों में भी आने वाले लोगों की संख्या पर प्रभाव पड़ेगा। पहले से ही देश के 10 राज्य बढ़ते मामलों से चिंतित हैं और शुक्रवार को महाराष्ट्र ने लॉकडाउन का संकेत दिया है।
और ऐसे हालातों में अगर मैं कहूं कि यह आपका अपना सामाजिक दायरा बढ़ाने का समय है, तो आपको शायद लगेगा कि मैं पागल हूं। पर यूके में येल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में संगठनात्मक व्यवहार की प्रोफेसर मरिसा किंग भी यही बात बोलती हैं।
मरिसा कहती हैं कि अगर आप उनमें से हैं, जो एक साल से अपने दायरे में कैद हैं, तो आप वास्तव में सामाजिक होना भूल गए होंगे। वह कहती हैं जब महामारी नहीं थी, तब भी हमारी दोस्ती धुंधली पड़ रही थी। अध्ययन बताता है कि 150 दिनों तक एक-दूसरे को नहीं देखने पर, दोस्तों के बीच घनिष्टता 80% तक कम हो जाती है। शोध कहता है कि बीते साल लॉकडाउन के पहले तीन महीनों में हर किसी का दायरा 16% तक सिकुड़ गया। वह दावा करती हैं कि ‘अगर हमने अभी इस पर ध्यान नहीं दिया तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे।’ अपनी नई किताब ‘सोशल केमिस्ट्री’ में वह कहती हैं कि 25 से 50 साल की उम्र के बीच महिलाओं का नेटवर्क 20% तो पुरुषों का 35% फीसदी सिमट गया है। अपनी नई किताब में वह कड़े शब्दों में कहती हैं कि हमारे अधिकांश रिश्ते धीरे-धीरे दम तोड़ रहे हैं। अपना दायरा बढ़ाना उतना ज्यादा जरूरी नहीं हैं। पर अपने मौजूदा संबंधों को असाधारण रूप से अहमियत देने की जरूरत है। उस दायरे को जीवित रखने और प्रगाढ़ बनाने की कुंजी है : पत्र भेजें या सिर्फ तो फोन उठाएं।
याद रखें हममें से अधिकांश लोगों के 5 से ज्यादा नजदीकी मित्र नहीं होते, जिनके साथ हमारे गहरे संबंध होते हैं व जिनसे हम निजी बातें साझा करते हैं, पर कई सर्वे में यह बात साबित हुई है कि उनमें से एक हमारे सबसे करीब होता है। और जब हम 70 के होंगे, तो वही व्यक्ति हमें अकेलापन महसूस नहीं होने देगा। पर कई लोगों के लिए सामाजिक दायरा बढ़ाने का मतलब अपनी पेशेवर जिंदगी को बढ़ावा देने से है। पर मैं सोचता हूं कि जब मेरा आखिरी समय होगा, तो मैं पीछे मुड़कर अपनी पूरी जिंदगी में मिले लोगों की संख्या नहीं, बल्कि उनसे हुई अच्छी बातचीत देखूंगा। और महामारी के कारण जब सामाजीकरण प्रतिबंधित हैं, तो इसे कायम करने का इससे बेहतर समय क्या हो सकता है?
फंडा यह है कि अगर यात्रा नहीं कर सकते, तो चिंतित न हों पर सुनिश्चित करें कि अपने सामाजिक दायरे को सींचते रहें क्योंकि रिश्ते ही हैं, जो आपको जीवन में खुश रखेंगे।

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