दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
युवाओ! ख्याल रखो, दुनिया में बुजुर्ग बढ़ रहे हैं


March 10, 2021
युवाओ! ख्याल रखो, दुनिया में बुजुर्ग बढ़ रहे हैं
इस सोमवार मैंने एक बेहद मर्मस्पर्शी घटनाक्रम देखा। नासिक में एक बुजुर्ग व्यक्ति पूरी तरह खाली एटीएम से कुछ पैसा निकालने गए। अचानक बाइक पर सवार तीन लड़के वहां आ धमके और कांच का दरवाजा खटखटाने लगे। उनमें एक लड़का, जो फुर्ती में पैसा निकालना चाहता था, उसने बल्ले से गेट पीटना और बुजुर्ग पर चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘कब तक इंतजार करना होगा?’ तब तक एटीएम की नकद निकासी वाली जगह में पैसे आ चुके थे। अभद्र आवाज़ को सुनकर बुजुर्ग घबरा गए और पैसे जमीन पर गिर गए। जब मैं उस लड़के की अक्ल ठिकाने लगाने की कोशिश कर रहा था, एक और बुजुर्ग अंदर गए और गिरे हुए पैसे उठाने में मदद उनकी करने लगे।
जैसे ही वे बुजुर्गवार एटीएम से बाहर आए, उन्होंने कुछ कहा और इसने वहां मौजूद सबको हिलाकर रख दिया। उन्होंने कहा, ‘बेटा मैं एक सेवानिवृत्त गरीब रेलवे कर्मचारी हूं। मेरी महीने की पेंशन तुम्हारी मोटर साइकिल की ईएमआई के बराबर होगी। सिर्फ इसलिए कि मैं तुम्हारी फुर्ती की बराबरी नहीं कर सकता, मेरे साथ व्यर्थ सामान की तरह व्यवहार मत करो। तुम भी एक दिन बूढ़े होगे। अपनी सेहत का ख्याल रखना।’
कितने सही थे वे। वैश्विक स्तर पर 2019 में 65 या उससे ज्यादा उम्र के 70.3 करोड़ लोग थे। अगले तीन दशकों में यह संख्या करीब 1.5 अरब हो जाएगी और इसमें दो तिहाई बुजुर्ग कम विकसित देशों में होंगे।
मेरा मन हुआ कि उस लड़के से कुछ कहूं पर ऐसा नहीं किया। उसका तर्क था कि वह क्रिकेट मैच के लिए लेट हो रहा था। मैं उसे कहना चाहता था कि यह मायने नहीं रखता कि कितने घंटे मैच खेला, बल्कि यह मायने रखता है कि क्रिकेट के क्षेत्र में कितने साल आपकी मौजूदगी महसूस की गई। जैसे सुनील गावस्कर ने हाल ही में इस पेशे में 50 साल पूरे किए हैं। अमिताभ बच्चन का उदाहरण देखें। उन्होंने कई फिल्मों में खलनायकों के दरवाज़े तोड़े और आज स्क्रीन पर 50 साल बाद भी टीवी प्रोग्राम के जरिए मौजूदगी दर्ज कराते हैं और हमें सलाह देते हैं, ‘आप अपना ख्याल रखिए...’ कितने खूबसूरत शब्द हैं ये।
ऐसे ही परवाह भरे शब्दों के कारण मुझे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में जनजातीय गांव कोठी की नवनिर्वाचित सरपंच, 22 वर्षीय भाग्यश्री मनोहर लेखामी जैसे लोग पसंद आते हैं। भाग्यश्री को लगता है कि युवा गांव को उपेक्षित छोड़ पढ़ाई और रोजगार के लिए बाहर चले जाते हैं और इसीलिए उसने गांव में रहकर, ॉ आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे विकसित करने का निर्णय लिया।
वह जंगल के बीच और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर निडरता से बाइक चलाती है और जगह-जगह गाड़ी रोककर हर उम्र के ग्रामीणों से उनका हाल-चाल पूछती रहती है। उसके उदार शब्दों से कई लोगों के आंसू आ जाते हैं। उसके पिता जिला परिषद स्कूल में शिक्षक थे और मां आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं। 2019 में निर्विरोध सरपंच बनने के बाद अब उसकी कोशिश है कि परंपराएं तोड़े बिना गांव में विकास की धारा बहे।
दो तरह के लोग होते हैं। एक वे जो सोचते हैं कि उन्हें अंग्रेजी आती है और वे हर जगह आधुनिक जीवनशैली का दिखावा कर सकते हैं। और दूसरी ओर वे युवा हैं, जो परंपराएं नहीं तोड़ने में विश्वास रखते हैं, खासतौर पर वृद्धों की देखभाल की परंपरा।
फंडा यह है कि युवाओ, दुनिया बूढ़ी होगी और एक दिन आप भी। इसलिए बहुत सारे प्यार और परवाह से अपने चारों ओर बुजुर्गों का साथ देने वाली दुनिया बनाओ।

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