दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
विशेष ध्यान खींचने के लिए प्रकृति को सहयोगी बनाएं
Sep 29, 2021
विशेष ध्यान खींचने के लिए प्रकृति को सहयोगी बनाएं
हर देश को प्रकृति से कोई उपहार मिलता है। स्वीडन की प्रकृति ने उसे बेरीज, हरी सब्जियां और सीवीड जैसे लाजवाब खाद्य पदार्थ दिए हैं, जिनका मजा आउटडोर में ही आता है। लेकिन स्वीडन वासियों ने इस उपहार का इस्तेमाल अपनी अलग पहचान बनाने में किया। जून में उन्होंने ‘दुनिया का सबसे बड़ा ओपन-एयर बार’ शुरू किया जहां मेहमान गाइड की मदद से आस-पास के जंगलों से सामग्री लाते हैं और खुद कॉकटेल बनाते हैं। बार में अभी 14 टेबल हैं और यह स्वीडन के दक्षिणी समुद्र तटों से उत्तरी आर्कटिक के पहाड़ों तक फैल सकता है।
अगर आप कोरोना के दिनों में दुनिया के सबसे बड़े, आउटडोर लेकिन सोशल डिस्टेंस वाले बार में ताजे कॉकटेल का लुत्फ लेना चाहते हैं तो स्वीडन के ‘ड्रिंकेबल कंट्री’ के बारे में जानें। यह दरअसल ‘एडिबिल कंट्री’ का विस्तार है, जो कि 2019 में मिशिलिन स्टार वाले शेफ्स द्वारा विकसित दुनिया का सबसे बड़ा डीआईवाय (डू-इट-योरसेल्फ यानी खुद बनाना) रेस्त्रां है। बार में मिलने वाले ड्रिंक चार बेवरेज (पेय) विशेषज्ञों ने बनाए गए हैं जो स्वीडन के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मजेदार है न? दुर्भाग्य से अभी गैर-यूरोपीय देशों से स्वीडन नहीं जा सकते इसलिए फिलहाल इसका आनंद इस लेख या उनकी वेबसाइट के जरिए लीजिए। इस नए वेंचर में आने वालों को ट्यूटोरियल के जरिए मिश्रण की प्रक्रिया में शामिल करते हैं। स्वीडन की प्रकृति के साथ यह एक अलग यात्रा है।
मुझे यह विश्वस्तरीय ओपन-एयर बार याद आया जब मैंने भौतिकी के 61 वर्षीय पूर्व शिक्षक के बारे में सुना, जिन्होंने केरल में कोट्टयम से 13 किलोमीटर दूर अपने गांव में फिर गन्ने की खेती शुरू की है। जोज़ कुंचाराकट्टील अब्राहम गन्ने को शहद के रंग के ऑर्गनिक गुड़ में भी बदलते हैं। सूर्य की चमक से मीठा और नदी की मिट्टी से समृद्ध हुआ गुड़ बनाकर वे अपने जिले को गुड़ बनाने वाले इलाके के रूप में पहचान दिलाने का प्रयास कर रहे हैं, जैसा वह दशकों पहले था, जब यहां शक्कर और गुड़ के 75+ कारखाने थे। यहां 20वीं सदी की शुरुआत में 8,000 हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती थी और 1936 में ही गुड़ का निर्यात 11.36 लाख रुपए तक पहुंच गया था।
लेकिन खाड़ी देशों में उछाल से यहां मजदूर घट गए और उद्योग घाटे में चला गया। सस्ते और मिलावटी गुड़ के कारण किसानों के लिए खरीदार ढूंढना मुश्किल हो गया। कोरोना और ऑर्गनिक खाने की मांग के कारण वह दौर लौट रहा है। जोज़ उन स्थानीय लोगों में हैं जो एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन (एआरएस) की मदद से इस व्यापर को फिर जिंदा करने में जुटे हैं। एआरएस ने 2009 में मध्य त्रावणकोर में बने गुड़ के लिए जीआई टैग हासिल किया था और पिछले साल 150 रुपए प्रति किग्रा की दर से 10 टन गुड़ बेचा। चूंकि इलाके में कई नदियां हैं, जो मानसून में भर जाती हैं, लोगों को अहसास हो रहा है कि पानी में डूबी मिट्टी में गन्ने की खेती करना सर्वश्रेष्ठ है और इससे गुड़ बनाकर ‘मीठी क्रांति’ ला सकते हैं।
फिलहाल 250 से 500 हेक्टेयर में ही गन्ने की खेती हो रही है। जोज़ ने 16 एकड़ जमीन लीज़ पर लेकर खेती शुरू की है। उनके यहां रोज गुड़ खरीदने की लंबी लाइन लगती है। वे देशभर में कुरियर से भी गुड़ भेजते हैं।
फंडा यह है कि अपनी सेवाओं और उत्पादों पर दुनिया का ध्यान खींचने के लिए प्रकृति के उपहार का सहारा लें।