दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
सफलता के लिए अपने पेशे का धर्म समझिए


March 22, 2021
सफलता के लिए अपने पेशे का धर्म समझिए
रविवार की सुबह मैंने जाह्नवी के बारे में पढ़ा, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पली-बढ़ी हैं। अमेरिका जाकर उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन डिएगो से इलेक्ट्रॉनिक्स में ग्रेजुएशन किया और सांता बारबरा से मास्टर्स डिग्री पाई। अपने इंजीनियर पति अजीत राव के साथ 2002 में भारत लौटने से पहले उन्होंने अमेरिका की शीर्ष टेक कंपनियों में काम किया। डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स में अपनी खुद की टेक्नोलॉजी कंपनी शुरू करने से पहले उन्होंने भारत में भी छह साल नौकरी की।
जाह्नवी का कॅरिअर सफल था। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी अच्छे इंजीनियर की तरह वे भी जटिल समस्याएं सुलझाने और मौजूदा समाधान बेहतर बनाने में विश्वास रखती हैं। इसीलिए अपने स्टार्टअप में वे वायरलेस कम्युनिकेशन को सुरक्षित बनाने की समस्या हल करी रही थीं और सुनिश्चित कर रही थीं कि सैनिक युद्धभूमि में दुश्मन की पकड़ में आए बिना अपने बेस और एक-दूसरे से बात कर सकें।
लेकिन उन्हें नहीं पता था कि एक दुश्मन उनके शरीर में भी है। उन्हें रयूमेटाइड आर्थराइटिस ऑटोइम्यून डिसऑर्डर हो गया। यह तब होता है जब आपका इम्यून सिस्टम गलती से आपके ही शरीर के टिशू पर हमला करने लगता है।
यह सब बेटे को जन्म देने के आठ महीने बाद शुरू हुआ, जब उन्हें जोड़ों में दर्द और सूजन महसूस हुई। इसी के साथ जब एक करीबी रिश्तेदार को गंभीर बीमारी हुई, तब जाह्नवी पर इस बात का काफी असर हुआ कि डॉक्टरों ने उनकी कितनी मदद की। उन्हें अंदर से आवाज आई कि उनके कॅरिअर का मानवता पर और सार्थक असर होना चाहिए। तब जाह्नवी ने इंजीनियरिंग कॅरिअर को अलविदा कहने का फैसला लिया और 2013 में एमबीबीएस प्रोग्राम में दाखिला लिया। वह भी तब, जब वे 40 वर्षीय मां, पत्नी और बहू थीं।
यह इसलिए चुनौतीपूर्ण नहीं था कि परिवार ने साथ नहीं दिया, बल्कि इसलिए चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि जाह्नवी को नहीं पता था कि ‘भारतीय’ एजुकेशन सिस्टम में परीक्षा कैसे देते हैं। अमेरिका में, खासतौर पर इंजीनियरिंग में, ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन परीक्षाएं निबंधात्मक जवाबों के बजाय छोटी और समस्या के समाधान पर आधारित थीं। औरंगाबाद छोड़ने पर जाह्नवी की तीन घंटे बैठकर परीक्षा देने की आदत भी छूट गई थी। अंतत: उन्हें हमारी जैसी परीक्षाएं देने ही आदत हुई, साथ ही उन्होंने एक साल इंटर्नशिप की, जहां 32-36 घंटे की लगातार ड्यूटी की। आखिरकार जाह्नवी ने फरवरी 2020 में सभी विषयों में प्रथम श्रेणी अंकों के साथ एमबीबीएस पूरा किया। फिर उन्होंने पिछले साल स्वतंत्र प्रैक्टिस के साथ अमेरिका के क्लिनिक्स में कुछ महीने काम किया। अब उन्होंने 47 वर्ष की उम्र में रिवरसाइड यूनिवर्सिटी हेल्थ सिस्टम, कैलिफोर्निया के एमडी प्रोग्राम में दाखिला लिया है।
सिर्फ जाह्नवी ही नहीं, अब्राहम लिंकन भी 47 की उम्र में रिपब्लिकन पार्टी से जुड़कर शुरुआत की थी और चार साल बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बने। हेनरी फोर्ड ने फोर्ड मोटर कंपनी 40 की उम्र में शुरू की थी। बोमन ईरानी 44 की उम्र में अभिनेता बने। जीआर गोपीनाथ ने उस उम्र में एविएशन कंपनी शुरू की, जब लोग रिटायर होते हैं। राजकुमार वैश्य ने 97 की उम्र में मास्टर ऑफ इकोनॉमिक्स की प्रवेश परीक्षा दी और तीन घंटे की परीक्षा में 23 उत्तरपुस्तिकाएं लीं।
फंडा यह है कि हर पेशे का एक धर्म होता है। अगर आप उसे समझकर, उसके प्रति समर्पित रहते हैं, तो कोई पेशा मुश्किल नहीं है। तब उम्र महज एक संख्या और सामाजिक जिम्मेदारी सिर्फ अतिरिक्त काम बनकर रहे जाते हैं।