दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
सहजता से अपने बच्चों को वयस्क होने दें


March 7, 2021
सहजता से अपने बच्चों को वयस्क होने दें
इस शुक्रवार को शाम 6.45 पर, टी-1 सी-2 अपने 5.11 हेक्टेयर के विशाल बाड़े के दरवाजे से निकलकर अपनी मां के बिना जंगल में गई। उसके पीछे वन अधिकारियों ने नम आंखों से बाड़े का दरवाज़ा बंद किया, क्योंकि वह अब अपने पुराने घर में दोबारा वापस नहीं आ सकती, जहां उसने दो सालों से ज्यादा फिर से जंगल के माहौल में ढलने के सबक सीखे। उसने किसी इंसानी पदचाप के बिना अपने लिए खुद शिकार करना सीखा। अब पेंच टाइगर रिज़र्व का जंगल ही उसका नया घर होगा, जहां शुक्रवार को उसने प्रवेश किया। वहां वह अपने भाई टी-1 सी-1 से शायद मिले या नहीं भी, अवनि नाम से प्रसिद्ध अपनी मां आदमखोर बाघिन टी-1 के मरने के बाद से वह गायब है।
शावक से एक वयस्क बाघिन तक का बदलाव, अपनी जिंदगी खुद जीने की इस यात्रा को देखकर मुझे मेरी पहली नागपुर से बॉम्बे तक की ट्रेन यात्रा याद आ गई, जिसे मैंने अकेले करने की जिद की थी। प्लेटफॉर्म पर खड़ी मेरी मां, मेरा हाथ पकड़े हुए खिड़की से एक आखिरी सलाह दे रही थीं। उसकी सलाह से चिढ़कर मैंने कहा, ‘मुझे पता है आप मुझे ये सब पहले ही कई बार बता चुकी हैं।’ उसकी आंखें चारों ओर देख रही थीं ताकि सहयात्रियों को बता सकें कि उसका बेटा अकेला यात्रा कर रहा है, पर मेरे डर से उसकी हिम्मत नहीं हुई। ट्रेन छूटने ही वाली थी और मां ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया, ‘मुझे समझ नहीं आता कि हर बार जरूरी वक्त पर तुम्हारे पिता कहां गायब हो जाते हैं।’ वह अचानक सामने आ गए और कहा ‘अगर तुम्हंे डर लगे, तो यह तुम्हारे लिए है’ और धीरे से मेरी शर्ट की जेब में कुछ रख दिया। वहां सिर्फ ओके-ओके बोलने का ही समय था और ट्रेन की एक लंबी सीटी के साथ मेरा पुराना घर छूट रहा था, तब मुझे नहीं पता था कि मैं इसे देखने कभी नहीं लौटूंगा।
मैं अकेला बैठा खिड़की से बाहर गुजरते दृश्यों को देख रहा था। मेरे चारों ओर धक्का-मुक्की करते अनजान लोग थे। अगला स्टेशन अजनी पांच मिनट में आ गया। जैसे ही लोगों ने डिब्बे से उतरना-चढ़ना शुरू किया, मुझे महसूस होने लगा कि मैं अकेला हूं और अपने सामान की सुरक्षा करने की जरूरत है। मेरी नजरें वहां बैठे दूसरे लोगों की तुलना में अपने बैग पर बार-बार जा रही थीं। मेरे पास सिर्फ दो सबसे ज्यादा प्यारी चीज़ें थीं- एचएमटी की कलाई घड़ी और पतलून में एक ट्रांजिस्टर। जैसे ही ट्रेन ने गति पकड़ी, मैंने टॉयलेट जाने का सोचा। अचानक झटके से मेरा खूबसूरत पीले रंग का ट्रांजिस्टर टॉयलेट के छेद से नीचे पटरी पर जा गिरा। मैं घबराकर चिल्लाया, लेकिन कुछ नहीं हो सका।
जैसे ही मैं अपनी सीट पर वापस आया, एक बुजुर्ग व्यक्ति ने मेरी ओर देखकर दुखी-सा मुंह बनाया और मैं ज्यादा असहज हो गया। मैंने खिड़की की दो रॉड के बीच अपनी आंखें सटा दीं। मैं रोया, लेकिन दूसरों को लगा कि यह कोयले के कणों के कारण है। तभी मुझे याद आया कि पिता ने जेब में कुछ रखा था।
अपने कांपते हाथ मैंने वहां से हटाए और कागज का टुकड़ा टटोलना शुरू किया। यह एक छोटा-सा नोट था- ‘चिंता मत करना, अगली बोगी में 21वीं बर्थ पर चटर्जी अंकल हैं।’ अचानक मेरे आंसू सूख गए और मैं बेहद आत्मविश्वास से भर गया। और फिर बाकी सब इतिहास है। अगले रविवार को बताऊंगा कि कैसे चटर्जी अंकल ने उन 17 घंटों की यात्रा के दौरान मुझे अकेले जीने का मंत्र दिया। ठीक इसी तरह मुझे उम्मीद है कि किसी दिन टी-1 सी-2 अपने भाई सी-1 से मिले, जो उसे अकेले जीवन जीने का आत्मविश्वास दे।
फंडा यह है कि आपके बच्चे सिर्फ आपके नहीं है, इस दुनिया को और खूबसूरत बनाने के लिए ये आपसे जन्मे हैं। उस लक्ष्य को पाने में उनकी मदद करें।