दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
सामाजिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे वर्चुअल हमले
Aug. 6, 2021
सामाजिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे वर्चुअल हमले
कल्पना कीजिए कि आप रसोई में व्यस्त हैं और नौंवी कक्षा में पढ़ने वाला बेटा या बेटी ऑनलाइन क्लास में व्यस्त है। अचानक बच्चा दौड़कर आया और क्लास के बीच में मोबाइल पर अचानक शुरू हुई पोर्न क्लिप दिखाने लगा। आपने मोबाइल बंद किया और तुरंत स्कूल को इसकी जानकारी दी। उन्होंने क्लास रद्द कर पुलिस में शिकायत की। आप हैरान रह गए, जब पता चला कि फिल्म पूरे 15 मिनट चलती रही!
यह काल्पनिक कहानी नहीं है। यह भयावह घटना 30 जुलाई को हुई, जब पुणे के राजगुरुनगर के स्कूल की शिक्षिका ने ऑनलाइन क्लास शुरू की। कई छात्रों ने घटना के बाद क्लास बंद कर दी, लेकिन इससे अनजान शिक्षिका ने लेक्चर जारी रखा। ई-स्कूलिंग के दौर में यह शायद शिक्षकों और माता-पिता का सबसे बुरा दु:स्वप्न है।
भले ही विभिन्न राज्य उच्च कक्षाओं के लिए शैक्षणिक संस्थान दोबारा खोल रहे हैं, एक सर्वे के मुताबिक बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर पैरेंट्स के अलग-अलग मत हैं और वे ऑनलाइन क्लास को प्राथमिकता दे रहे हैं। सर्वे में शामिल 10 में से 7 पैरेंट्स ने कहा कि वे बच्चों के लिए ऑफलाइन कक्षा के लिए तैयार नहीं हैं। कम्युनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘लोकल-सर्किल्स’ द्वारा टिअर 1, 2 और 3 शहरों में पिछले महीने किए गए सर्वे में पाया गया कि ‘टीकाकरण की कमी’ पैरेंट्स की सबसे बड़ी चिंता थी।
लेकिन ये पैरेंट्स नहीं जानते कि डिजिटल सिक्योरिटी और प्राइवेसी प्रोवाइडर अवास्ट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब एक तिहाई (28.22%) पर्सनल कम्प्यूटर (पीसी) होम यूजर को सायबर अटैक का जोखिम है। उसकी ग्लोबल पीसी रिस्क रिपोर्ट नए तरह के खतरों की आशंका जताती है, जो ऐसे खतरे हैं जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया, जो सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर की आम सुरक्षा तकनीकों को बायपास कर सकते हैं। ऐसे खतरों के लिए भारतीय होम यूजर्स का जोखिम अनुपात 5.78% है, जो वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा है।
मध्य पूर्व, एशिया, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप जैसे ज्यादा सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष वाले भौगोलिक इलाके ऑनलाइन दुनिया में ज्यादा जोखिम का समाना कर रहे हैं। दुनियाभर में मालवेयर हमलों का जोखिम बढ़ा है और भारत भी अपवाद नहीं है। महामारी में इंटरनेट कई लोगों के लिए ‘जीवन रक्षक’ और प्रियजनों से जुड़े रहने में मददगार साबित हुआ है। इसने वर्चुअल वर्कआउट सेशन, कक्षाओं और पार्टियों में शामिल होने तथा कहीं से भी नौकरी करने में मदद की है।
अवास्ट में थ्रेट इंटेलिजेंस के निदेशक माइकल सलाट कहते हैं, ‘सायबर अपराधियों का इसपर ध्यान गया है और वे कोविड-19 संबंधी हमले, सेक्सटॉर्शन अभियान, स्पायवेयर और रेंसमवेयर के जरिए बढ़ी हुई ऑनलाइन गतिविधियों का फायदा उठा रहे हैं।’
शायद इसीलिए बेंगलुरु पुलिस 15 अगस्त से सायबरक्राइम इंफॉर्मेशन रिपोर्ट (सीआईआर) लागू करने की तैयारी कर रही है क्योंकि वहां इंटरनेट का इस्तेमाल काफी ज्याादा है। मुश्किल स्वास्थ्य परिस्थिति में मरीज को बचाने के प्रयास के समय यानी ‘गोल्डन अवर’ की तर्ज पर उन्हें सायबर अपराध बचाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जहां अपराधी हमारी जानकारी के बिना बैंक खाते से बड़ी राशि निकाल लेते हैं। सीआईआर, एफआईआर दर्ज होने से पहले ही बैंक में पैसा फ्रीज करने में मदद करेगा, जिससे सायबरक्राइम से होने वाला नुकसान कम हो। संक्षेप में हम सायबर अपराधियों के लिए आसान शिकार हैं।
फंडा यह है कि ज्यादातर वर्चुअल अपराधों का व्यापक सामाजिक दायरा है। ये हमारे समाज के मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर कर रहे हैं, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए सतर्क रहें।