दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
साल में 13 महीने कैसे जिएं


Oct 10, 2021
साल में 13 महीने कैसे जिएं?
आमतौर पर रेलवे यात्री कोच 25 साल इस्तेमाल के बाद कबाड़ हो जाते हैं। रेलवे से जुड़े लोग मेरी बात से सहमत होंगे कि यात्री कोच में सुरक्षा और आराम के सख्त मानक होते हैं, जबकि मालवाहक कोच इस मामले में उसके आसपास भी नहीं फटकते। पर कुछ समय पहले तक रेलवे में किसी ने नहीं सोचा होगा कि अपनी एक्सपायरी तारीख के बाद भी यात्री कोच माल ढुलाई के टेस्ट में पास हो जाएंगे, जब सेंट्रल रेलवे (सीआर) ने थोड़े बदलाव के साथ इन्हें मोटरगाड़ियां ले जाने लायक कोच में तब्दील करने का निर्णय लिया।
इस नई सोच से रेलवे, सड़क से ऑटोमोबाइल ट्रांसपोर्ट का कुछ हिस्सा अपने पाले में कर पाई है। इससे लोगों को उनके ट्रांसफर या नई नौकरी के बाद निजी वाहन दूसरे शहर ढोकर ले जाने में मदद मिली है। वैसे ऐसा पहले भी होता रहा है पर लोग मालगोदाम से अपनी गाड़ी शायद ही लोड कराना पसंद करते हैं, इसलिए वे सड़क ट्रांसपोर्ट चुनते थे। पुराने यात्री कोच को माल भाड़ा कोच में बदलने से ट्रांसपोर्ट रेलवे प्लेटफॉर्म से ही हो सकेगा, वो भी शुरुआती-गंतव्य दोनों स्टेशन पर। कोई आश्चर्य नहीं कि इस नई सुविधा से सीआर का ऑटोमोबाइल ट्रांसपोर्ट का व्यापार महज अप्रैल व सितंबर 2021 के बीच 133% बढ़ गया है।
ये पहल सिर्फ अपने पास मौजूद संसाधनों के प्रबंधन के बारे में है। याद करें कि कैसे दुबई ने बंजर रेगिस्तानों को आर्थिक केंद्र में बदल दिया है? याद रखें कि कैसे बिना लौह अयस्क व कोयले के जापान स्टील का सबसे बड़ा निर्यातक बना? जापान ने कुछ नहीं से कुछ पैदा किया। जब हमारे पास कुछ है, तो ये यकीन करना होगा कि कई चीजें हासिल की जा सकती हैं। संक्षेप में ये संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की बात है।
सालों पहले जब अमिताभ बच्चन आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे, तो उन्होंने कहा था, ‘मैं और मेरी पत्नी जया इस संकट से बाहर निकलने के लिए खुद को झोंक देंगे।’ और उन्होंने वाकई कड़ी मेहनत करना शुरू कर दी। कल सोमवार को वह 79 साल के हो जाएंगे और इस शो बिजनेस में अभी भी व्यस्ततम स्टार हैं।
जब बात समय-24 घंटे की हो तो कंपनियों, देशों और सेलिब्रिटी की तरह आपके और मेरे पास भी वही संसाधन हैं। मेरा सवाल है कि क्या आप उसका पर्याप्त इस्तेमाल कर रहे हैं? आइए मैं आपको बताता हूं कि कैसे सफल लोग समय नामक संसाधन का उपयोग करते हैं।
हमारा जीवनकाल जन्म व मृत्यु के बीच ही है। जन्म-मृत्यु का समय हमारे काबू में नहीं है। पर असली गणित है ‘जीवनकाल-सोने के घंटे=जागृत घंटे’। ज्यादा जागृत समय चाहते हैं तो कम सोना होगा, पर इससे शरीर पर असर पड़ सकता है। पर विज्ञान कहता है कि 6 घंटे की गहरी नींद 10 घंटे की उखड़ी नींद से कहीं बेहतर है। अगर आप इस तर्क में भरोसा करते हैं तो पहले छह घंटे के जरूरी आराम की पूर्ति के लिए नींद की गुणवत्ता सुधारें। फिर क्या होगा? दिन में दो घंटे कम सोकर हम सालभर में जागने वाला समय 730 घंटे बढ़ा सकते हैं, मतलब सालभर में 30.41 दिन। आठ घंटे सोकर जब दुनिया 12 महीने ही जीती है, ठीक उसी समय अगर आप छह घंटे की गहरी नींद लेते हैं तो न सिर्फ शरीर को पर्याप्त आराम मिलता है, पर आप 13 महीने जीते हैं!
ये सब समय नामक संसाधन का कुशलतापूर्वक प्रबंधन है। ऐसा नहीं है कि आपके पास पर्याप्त जगह नहीं है, बात सिर्फ उसके समुचित इस्तेमाल की है। ऐसा भी नहीं है कि पर्याप्त पैसे नहीं है, इसलिए आप अमीर नहीं है, बात सिर्फ पैसे नामक संसाधन को मैनेज करने की है। अमीर और अमीर होते जाते हैं क्योंकि वे पैसा सही जगह लगाते हैं।
फंडा ये है कि कौन कहता है कि आप साल में 13 महीने नहीं जी सकते- यही हर चीज के कुशलतापूर्वक उपयोग की ट्रिक है।

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