दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु
सिर्फ गूगल नहीं ‘ग्लोबल’ को बनाएं लक्ष्य


Aug. 9, 2021
सिर्फ गूगल नहीं ‘ग्लोबल’ को बनाएं लक्ष्य
कुछ समय पहले तक गूगल मैप्स पर खांडरा और नाहरी सिर्फ दो लाल गुब्बारों वाले निशान थे। लेकिन जापान में हुए 2021 ओलिंपिक्स के बाद 14 मेडलिस्ट के गांव के अलावा हरियाणा के ये गांव भी वैश्विक पहचान बना चुके हैं क्योंकि वहां के युवक-युवतियों ने न सिर्फ गांव की, बल्कि पूरे राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ाई। जी हां, मैं बात कर रहा हूं बाकी मेडलिस्ट समेत नीरज चोपड़ा और रवि कुमार दाहिया की और स्वाभाविक है कि उन बहादुरों की भी जो सेमीफाइल तक पहुंचे और अपने गावों को ‘वैश्विक’ बना दिया। वे ऐसा कर पाए क्योंकि उनमें कुछ कर दिखाने की तमन्ना थी। कोई भी सीधे फ्लाइट पकड़कर टोक्यो नहीं पहुंचा। उन्होंने मेहनत की, उनके माता-पिता ने त्याग किया और छोटे-छोटे कदम बढ़ाने में मदद की, जिससे पहले उन्होंने गली, फिर गांव, फिर तहसील, जिला, राज्य और देश के बाद अब दुनियाभर के दर्शकों का दिल जीत लिया।
इसलिए मुझे वे सभी लोग पसंद हैं तो कुछ नया करने के लिए अपने असामान्य परिवेश या इलाके में छोटे-छोटे कदम बढ़ाते हैं। वे नई संस्कृति शरू करने की पहल करते हैं और धीरे-धीरे वह जगह उनके कारण नए अवतार में पहचानी जाने लगती है।
मुंबई का भायखला भी ऐसी जगह है। यह भारत का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन है। जब 1853 में भारत की पहली ट्रेन बॉम्बे के बोरीबंदर से ठाणे के बीच चली थी तो भायखला शुरुआती बिंदु था। पहली ट्रेन शुरू होने से पहले इस जगह पर यात्री भाप इंजन के ट्रायल भायखला से परेल (मुंबई) के बीच हुए थे। इंजन को 200 मजदूर सड़क मार्ग से भायखला लाए थे, फिर इसे भायखला पटरियों पर उतारा गया था।
अब आते हैं 2021 में। आज यह दक्षिण मुंबई का शोरशराबे वाला इलाका है और आप यहां किसी से टकराए बिना चल ही नहीं सकते। यहां भीड़ ज्यादा और हरियाली कम है। ऐसे भीड़ भरे इलाके में आप एक व्यक्ति मुर्तज़ा गबाजीवाला को देख सकते हैं, जो बालकनी में मधुमक्खियां पालकर शहद पैदा कर रहे हैं। अपनी छत, आंगन या बालकनी में शहद की खेती करने वालों की बढ़ती संख्या के कारण उनके इलाके में और स्वाभाविक रूप से उपनगर में हरियाली वापस आ रही है।
जब वायरस के कारण लोग घरों में कैद हो गए तो कई लोगों ने इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए घर में सब्जियां उगाना शुरू किया और मुर्तज़ा जैसे लोगों ने ऊंची बिल्डिंगों में ‘बी बॉक्स’ में मधुमक्खियां पालना शुरू कर दिया। वे भी शुद्ध शहद से खुद की इम्यूनिटी बढ़ाना चाहते थे। आप सोच रहे हैं कि उन्हें कितना शहद मिलता होगा? प्रतिमाह एक किलो से ज्यादा!
पुणे का सेंट्रल बी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (सीबीआरटीआई) सरकार के ‘हनी मिशन’ के तहत मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित कर रहा है, जिससे शहरी मधुमक्खी पालक बढ़ रहे हैं। इससे पहले संस्थान के पास सिर्फ किसान थे, लेकिन अब ऊंची इमारतों में रहने वाले शहरी लोग भी सर्टिफिकेट कोर्स कर रहे हैं।
अगर आप सोच रहे हैं कि रिहायशी इलाकों में, जहां आम लोग या पड़ोसी मधुमक्खियों से डर सकते हैं, वहां इन्हें पालने में कितनी समझदारी है, तो इसका जवाब सीबीआरटीआई में मिल जाएगा। आज मधुमक्खी पालकों का छोटा समूह है, पर यकीन मानिए विभिन्न इनोवेशन और प्रकृति में संतुलन लाने के लिए उठाए जा रहे कदमों के साथ इसे बड़ा ग्रुप बनने में समय नहीं लगेगा।
फंडा यह है कि अगर किसी में कुछ कर दिखाने की तमन्ना हो तो इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) में भी वैश्विक पहचान पाना आसान होगा।