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   दैनिक भास्कर - मैनजमेंट फ़ंडा    
एन. रघुरामन, मैनजमेंट गुरु 

सिर्फ प्रभावित नहीं, पराजित की मदद भी सभ्यता है

सिर्फ प्रभावित नहीं, पराजित की मदद भी सभ्यता है
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June 15, 2021

सिर्फ प्रभावित नहीं, पराजित की मदद भी सभ्यता है


जैसे ही भेदिया लक्ष्य की पहचान कर लौटा, 200 से 500 योद्धाओं ने सुव्यवस्थित कदमताल शुरू की। तय जगह पर पहुंचने के बाद मेजरों ने मिट्‌टी की मजबूत किलाबंदी तोड़ना शुरू की और छोटे सैनिक असुरक्षित बस्ती में घुसकर रहवासियों को मारने और लूटने लगे। जिनपर हमला हुआ उनके सैनिक हमलावर सैनिकों के पैर उखाड़ने लगे। कुछ तो हमलावरों के पैरों से ही चिपक गए। युद्ध एक घंटे चला। जब हमलावर अपनी छावनी में लूट के साथ लौट रहे थे, उनके कई सैनिक मैदान में घायल पड़े थे। लेकिन उन्हें छोड़ा नहीं गया क्योंकि उनके स्वस्थ साथी, मेजर उन्हें युद्धभूमि से ले आए। हमलावर थी चींटियों की नस्ल ‘मेगापोनेरा एनालिस’ और उनका शिकार थीं दीमक। कुछ समय पहले ही वैज्ञानिकों ने गैर-इंसान जानवर की अपने साथियों की मदद करने की सदियों पुरानी यह प्रवृत्ति खोजी है, जो साथी चींटियों की स्वास्थ्य देखभाल में भी सक्षम हैं।


कई साल पहले मानवविज्ञानी मार्गारेट मीड से एक छात्र ने पूछा कि वे किसी संस्कृति में सभ्यता का पहला संकेत किसे मानती हैं। छात्र को उम्मीद थी कि वे मछली के कांटे, मिट्‌टी के बर्तन या चक्की की बात करेंगी लेकिन मीड ने कहा कि प्राचीन संस्कृति में सभ्यता का पहला संकेत जांघ की एक हड्‌डी थी, जिसका टूटने पर इलाज हुआ था। मीड ने समझाया कि जानवरों के साम्राज्य में अगर आपका पैर टूटता है तो आप खतरे से भाग नहीं सकते, नदी के किनारे पानी पीने या खाना खोजने जाने पर मारे जाएंगे। कोई भी जानवर इतने समय तक नहीं बच पाता कि उसका पैर ठीक हो जाए। लेकिन ठीक हुई जांघ की हड्‌डी सबूत है कि मानव जाति में किसी ने घायल व्यक्ति को समय दिया, घाव पर पट्‌टी बांधी, उसे सुरक्षित जगह ले जाकर ठीक होने तक देखभाल की। मीड ने कहा, ‘मुसीबत में किसी की मदद करने से ही सभ्यता की शुरुआत हुई।’


मुझे ये दो संदर्भ तब याद आए जब मुझे लूलू ग्रुप डिपार्टमेंटल स्टोर के मालिक एमए यूसुफ अली के बारे में पता चला, जिनके स्टोर खाड़ी देशों और केरल में हैं। उन्होंने अबुधाबी में बेक्स कृष्णन को मौत की सजा से बचाया, जिसने धोखे से छह वर्षीय बच्चे को कार हादसे में मार दिया था।


पेशे से ऑटोमोबाइल इंजीनियर और दो वर्षीय बेटे अद्वैत के पिता कृष्णन 13 सितंबर 2012 को अबुधाबी में कार चला रहे थे लेकिन हादसे में सूडान के छह वर्षीय लड़के को उन्होंने मार दिया। कृष्णन ने दावा किया कि लड़का अचानक सामने आ गया और वे ब्रेक नहीं लगा सके, लेकिन जांचकर्ताओं ने उन पर मर्डर का आरोप लगाया और अबुधाबी सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई। सारे प्रयासों के बाद उनके परिवार ने एनआरआई बिजनेसमैन यूसुफ अली से संपर्क किया। यूएई के अधिकारियों और भारतीय दूतावास से बात कर अली ने वापस सूडान जा चुके मृतक बच्चे के परिवार को समझाने की कोशिश कि वे माफी देने के बदले मुआवजा ले लें। पांच लाख यूएई दिरहम (करीब 1 करोड़ रुपए) लेने पर उनकी सहमति पाने में कई साल और बातचीत के कई दौर लग गए। कृष्णन के लिए यह पैसे अली ने दिए। एक दशक जेल में रहने के बाद कृष्णन पिछले हफ्ते अपने घर केरल लौटे हैं।


फंडा यह कै कि आमतौर पर लोग गरीब, जरूरतमंद और घायल की मदद करते हैं लेकिन बुरी तरह घायल और हारे हुए कि मदद बहुत कम होती है। हम इंसान अपनी नस्ल को सभ्यता के अगले स्तर पर ले जाने में सक्षम हैं।

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